Mahakumbh 2025 – संगम यात्रा के आध्यात्मिक अवसर पर मेनका जी की कलम से उदित हुई शुभ कवितात्मक चिर-स्मृति..
यह यात्रा नहीं, सौभाग्य था,
संगम तट का आह्वान था।
आरती की योजना,
हर पल का सम्मान था।
मेनका, पुष्कर संग अभिराम,
बने प्रेम के मीठे संग्राम।
नितिन ने स्नेह का दीप जलाया,
हर कदम पर साथ निभाया।
मानसिंह की सूझ-बूझ निराली,
हर राह को बना दी गुलाली।
सुरक्षित, सुगम किया सफर,
उनके सहारे सब कुछ सरल।
संगम का जल, गंगा की धारा,
भावों का सागर, श्रद्धा का प्याला।
हम सब बँध गए प्रेम की डोर,
यात्रा बनी मधुर स्नेह संजोग ।
इस संगम की स्मृति रहे अमर,
साथ चले ये प्रेम सदा प्रखर!
(मेनका त्रिपाठी)