Parakh Saxena writes में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के बारे में पढ़िए कि जब अंत आता है तो मनुष्य स्वयं आत्मघात कर लेता है..
एमके स्टालिन ने अब जाकर कुछ अच्छा काम किया है, ये वो ही गलती है जो कभी उद्धव ठाकरे ने की थी तो कभी अरविन्द केजरीवाल ने।
दरसल इन दोनों को भी ये ही लग रहा था कि राजनीति मे इनसे बड़ा कुटिल कभी कोई पैदा ही नहीं हुआ। अब ये ही गलतफहमी स्टालिन को हो गयी, हमारे लिये तो ठीक ही है।
भारत मे ज़ब राजतंत्र था तो तमिलनाडु मे संस्कृत आधिकारिक भाषा थी और बोलचाल के लिये तमिल प्रयोग होती थी।
1818 के समय तक स्थिति कुछ ऐसी हो गयी कि तमिलनाडु मे ज्यादातर पदो पर ब्राह्मण वर्ग का दबदबा हो गया क्योंकि संस्कृत मे वे उत्कृष्ट थे और यही से आज की राजनीति शुरू हुई।
अंग्रेजो के आने के बाद जातिवाद भी उस समय तक शुरू हो चुका था, ब्राह्मण समाज के खिलाफ आक्रोश बढ़ने लगा ऐसे मे एक राजनीतिक निर्वात बना और जस्टिस पार्टी बनी। इनका उद्देश्य एंटी ब्राह्मण, एंटी नॉन तमिल ख़ासकर संस्कृत और हिन्दी ही रहा।
1967 तक तमिलनाडु मे कांग्रेस का शासन रहा मगर पंडित नेहरू की मृत्यु पूर्व ही उन्होंने हिन्दी को हर राज्य मे लागू करने की योजना बनाई थी। जिसकी वजह से तमिलनाडु मे DMK विरोध कर रही थी।
1967 के चुनाव मे कांग्रेस हार गयी और DMK का के करुणानिधि मुख्यमंत्री बना, स्टालिन उसी की संतान है। इसमें एक खिलाडी AIADMK भी है जिसकी नेता जयललिता थी, ये पार्टी DMK की अपेक्षा थोड़ी सॉफ्ट है।
तमिलनाडु मे लोगो को हिन्दी पढ़नी नहीं आती तो इनके लिये एजेंडा फैलाना आसान होता है। तमिलनाडु के अखबारो पर DMK का दबदबा है, ये आसानी से बीजेपी कांग्रेस के खिलाफ एजेंडा फैला देते है। बीजेपी कांग्रेस के पास बडे चेहरे ही नहीं थे तो सफाई भी नहीं दे सकते थे।
कांग्रेस ने तो स्टालिन के आगे सरेंडर करके नेहरूजी को तिलांजलि दे दी। बीजेपी को किसी मैदान मे अन्नामलाई नाम का IPS अधिकारी मिला जो एक जननेता के रूप मे उभर रहा है।
2021 के चुनाव मे AIADMK बीजेपी के साथ थी, आंतरिक कलह से जूझ रही थी ऊपर से 10 साल से सत्ता मे थी तो उसकी एंटी इनकमबेंसी थी सो अलग… इसीलिए DMK चुनाव जीत गयी और स्टालिन मुख्यमंत्री बन गया।
इन चार सालो मे तमिलनाडु कर्ज मे नहा चुका है। कहने को अमीर राज्य है मगर स्थिति फिर भी नाजुक है।
DMK की दुर्दशा वही हो रही है जो उद्धव ठाकरे और अरविंद केजरीवाल की हुई। इसलिए ध्यान भटकाने के लिये सामाजिक तीर चला रहा है।
पिछले दो गधो ने भी यही किया था, शायद राजनीति मे ज़ब किसी का अंत आता है तो वो यही सब करता है जो अब स्टालिन कर रहा है। खैर चाणक्य नीति है कि शत्रु गलती कर रहा हो तो उसे डिस्टर्ब मत करो।
(परख सक्सेना)