Parakh Saxena की कलम से पढ़िये जाति-जनगणना का वो सच जो जातियों में बंटे देश के हिन्दुओं को जानना चाहिये..
राहुल गाँधी तो पिछले डेढ़ साल से जातिगत जन गणना को रो रहा है, फिर भी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा, महाराष्ट्र और अब दिल्ली मे बुरी तरह पराजित हुआ। “राहुल का दबाव” कांग्रेसियो का एक ख्याली पुलाव है।
भगवान जाने ऐसी क्या मज़बूरी फ़स गयी कि जातिगत जनगणना लागू करनी पड़ गयी हालांकि मोदीजी ने अतीत मे भी बहुत बार ऐसे फैसले लेकर चौकाया जरूर है। काफी बाद मे समझ आता है कि कोई मास्टर स्ट्रोक लगा था।
ये बीजेपी की परंपरा हो चुकी है राहुल गाँधी को 2-3 साल किसी एक मुद्दे पर चीखने देते है फिर अचानक उसका मुद्दा खत्म भी कर देते है।
काफी हद तक ये बिहार के चुनाव के लिये हो रहा है, सवर्णों की परीक्षा का एक नया अध्याय। निजी आग्रह तो यही है कि मैं खुद सवर्ण हुँ मगर यदि दलितों को लगता है कि हमारी वजह से उनकी जिंदगी मे समस्या आ रही है तो उन्हें 50 तो क्या पूरा ही आरक्षण ले लेने दो।
हिंदुत्व के लिये हर त्याग स्वीकार है, लेकिन जल्द से जल्द ये जातिवाद बंद होना चाहिए। ज़ब कलमा ना बोल पाने पर काट ही दिये जाओगे तो जाति का क्या करोगे? समझ सकता हुँ हम सवर्णों के लिये ये कष्ट समय है मगर ये परीक्षा का समय भी है।
पिछले डेढ़ साल मे राहुल गाँधी ने और कोई मुद्दा उठाया नहीं है वो हाथ धोकर सवर्णों के पीछे पड़ा है। सवर्णों मे भी एक ग्रुप है जो ये सब देखकर भी उसके साथ है तो आप ही सोचिये हमारा संख्याबल पहले ही कम है ऊपर से बंटा हुआ है।
बावजूद इसके यदि बिहार मे किसी को बीजेपी से आपत्ति है तो कृपा करके अपना वोट प्रशांत किशोर को दे देना मगर दोबारा जंगलराज मत चुन बैठना। ये राजनीतिक आत्महत्या हो जायेगी यदि आप कांग्रेस या लालू को वोट दे गए।
दूसरी तरफ अब मुझे कांग्रेसियो का मानसिक स्तर पाकिस्तानियो जैसा ही लगने लगा है, इन्हे जाने कहाँ से लग रहा है कि राहुल गाँधी के दबाव मे बीजेपी ने जाति जनगणना की बात मानी है।
इन्हे जाने क्यों लग रहा है कि 53 से 99 सीटें लाकर राहुल गाँधी ने कद्दू पर तीर मार दिया है।
जिन्हे राजनीति के बेसिक भी पता है वे जानते है कि 10 साल की एंटी इनकमबेंसी मे कम से कम 100 सीटें तो बिना कुछ किये भी बढ़ सकती थी। बीजेपी को 63 सीटों का नुकसान हुआ, उसमे से 32 सीटें तो वो समाजवादी से हारी है और 10-12 अन्य क्षेत्रीय दलों से।
मतलब कांग्रेस ने बीजेपी को महज 15-20 सीटों पर ही हराया शेष बढ़ोत्तरी खुद के ही सहयोगी दलों की सीटें लेने की वजह से हुई है। इतना साधारण अंक गणित है जिसे कांग्रेसी राहुल गाँधी का रॉकेट साइंस समझ रहे है।
ये हमें भी पता है कि बीजेपी ने बिना इस मुद्दे के 6 राज्यों के चुनाव जीतकर दिखाए है, इसलिए दबाव तो एक प्रतिशत भी नहीं है। बस एक बात हो सकती है कि ये जातिगत गणना असल मे नीतीश कुमार के दिमाग़ की उपज थी।
वक़्फ़ बिल पर नीतीश का समर्थन मिला फिर ये हुआ, संभव है इसमें कोई कनेक्शन हो। बाकि राहुल गाँधी का दबाव वाली बात कोरी बकवास है।
एक आंकलन और भी है कि राजनीति मे कभी कभी हारा भी जाता है। आप सोचकर देखिये यदि NDA बिहार हार जाए और प्रशांत किशोर बाजी मार ले तो जहाँ नीतीश बीजेपी की मज़बूरी है वही अब बीजेपी नीतीश की मजबूरी बन जायेगी।
राजनीति हर बार वैसी नहीं होती जैसी दिखाई जाती है, विजय हो या पराजय हर परिणाम का अपना राजनीतिक महत्व और मूल्य होता है।
(परख सक्सेना)