Pearl Harbor: पर्ल हार्बर हमला 1941: 1 घंटा 15 मिनट की जापानी बमबारी जिसने अमेरिका को युद्ध में झोंक दिया और दुनिया का इतिहास बदल दिया..
कई बार इतिहास की दिशा बदलने के लिए किसी बड़े युद्ध की नहीं, बल्कि एक अचानक हुई घटना ही काफी होती है। ऐसा ही एक भयावह मोड़ 7 दिसंबर 1941 की सुबह आया था, जब जापान ने अचानक अमेरिका के हवाई द्वीप समूह में स्थित पर्ल हार्बर नौसैनिक अड्डे पर हमला कर दिया। शांत और सामान्य दिख रही उस सुबह को किसी ने नहीं सोचा था कि कुछ ही मिनटों में वह आधुनिक इतिहास की सबसे डरावनी सुबहों में बदल जाएगी।
प्रशांत महासागर के बीच बसे हवाई द्वीप पर उस दिन वातावरण पूरी तरह सामान्य था। अमेरिकी नौसेना के जवान रोज़मर्रा की तरह अपनी ड्यूटी में व्यस्त थे। तभी सुबह करीब 8 बजे आसमान में तेज़ गड़गड़ाहट गूंजी। कुछ ही पलों में जापान के दर्जनों लड़ाकू विमान पर्ल हार्बर पर टूट पड़े। बमों और गोलियों की बारिश ने पूरे नौसैनिक अड्डे को आग और धुएं के समंदर में बदल दिया।
सिर्फ सवा घंटे जिसने अमेरिका का सब्र तोड़ दिया
यह हमला कुल मिलाकर लगभग 1 घंटा 15 मिनट तक चला, लेकिन इसका असर दशकों तक महसूस किया गया। इतने कम समय में अमेरिका की सैन्य ताकत को ऐसा झटका लगा जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। अमेरिकी नौसेना के आठ युद्धपोत पूरी तरह तबाह हो गए, जिनमें से चार जहाज़ समुद्र में डूब गए। इसके अलावा 19 जहाज़ या तो नष्ट हो गए या लड़ने लायक नहीं बचे।
हवाई हमले में 328 अमेरिकी विमान पूरी तरह या आंशिक रूप से नष्ट हो गए। सबसे दर्दनाक आंकड़ा था – 2400 से अधिक अमेरिकी सैनिकों और नौसेना कर्मियों की मौत। यह हमला इतना अचानक और तेज़ था कि सैनिकों को जवाब देने का मौका तक नहीं मिला।
बिना चेतावनी, बिना युद्ध घोषणा
इस हमले की सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि जापान ने किसी भी तरह की युद्ध घोषणा या पूर्व चेतावनी नहीं दी। उसी समय वॉशिंगटन में जापानी राजनयिक अमेरिकी विदेश मंत्री कॉर्डेल हल से जापान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों को हटाने को लेकर बातचीत कर रहे थे। चीन में जापान की बढ़ती सैन्य गतिविधियों के कारण अमेरिका ने उस पर कड़े प्रतिबंध लगाए थे, जिन्हें जापान ने अपनी राष्ट्रीय प्रतिष्ठा पर हमला माना।
इसी आक्रोश ने जापान को यह कदम उठाने के लिए उकसाया, लेकिन उसकी यह रणनीति आखिरकार उलटी साबित हुई।
जिस हमले ने अमेरिका को द्वितीय विश्व युद्ध में झोंक दिया
पर्ल हार्बर पर हुआ यह हमला अमेरिका की तटस्थ नीति का अंत था। अगले ही दिन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा— “7 दिसंबर 1941, अपमान का दिन बनकर इतिहास में दर्ज रहेगा।”
इसके साथ ही अमेरिका औपचारिक रूप से द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल हो गया और मित्र राष्ट्रों की ओर से निर्णायक भूमिका निभाने लगा। यह वही मोड़ था जिसने युद्ध की दिशा और गति दोनों बदल दीं।
पर्ल हार्बर का बदला: हिरोशिमा और नागासाकी
चार साल बाद, 1945 में, अमेरिका ने जापान के शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए। इतिहासकारों का मानना है कि इसे पर्ल हार्बर हमले का प्रतिशोध माना गया।
हिरोशिमा में लगभग 1.5 लाख लोग और नागासाकी में करीब 80 हजार लोग मारे गए। यह मानव इतिहास की सबसे भयावह त्रासदियों में से एक बन गई। पर्ल हार्बर से जन्मा डर और गुस्सा दुनिया ने इस रूप में झेला।
दुश्मनी से दोस्ती तक का सफर
पर्ल हार्बर के बाद अमेरिका और जापान के रिश्तों में लंबे समय तक तनाव, अविश्वास और कटुता बनी रही। लेकिन समय के साथ हालात बदले।
2016 में, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा हिरोशिमा पहुंचे और परमाणु हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी। इसके कुछ समय बाद ओबामा और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे पर्ल हार्बर की 75वीं वर्षगांठ पर एक साथ उसी स्थान पर पहुंचे, जहां से इतिहास की दिशा पलट गई थी। यह कदम दोनों देशों के बीच विश्वास और सम्मान की नई शुरुआत बना।
84 साल बाद भी पर्ल हार्बर की सीख
आज पर्ल हार्बर हमले को 84 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन यह घटना अब भी पूरी दुनिया को चेतावनी देती है। यह दिखाती है कि एक हमला, एक फैसला और एक सुबह पूरे विश्व का भविष्य बदल सकती है। जापान ने सोचा था कि अमेरिका को डराकर पीछे हटाया जा सकता है, लेकिन इस हमले ने अमेरिका को युद्ध में उतार दिया और अंततः जापान की हार तय हो गई।
1941 की वह सुबह आज भी याद दिलाती है कि युद्ध कभी समाधान नहीं होता, वह सिर्फ मानवता को गहरे घाव देता है—ऐसे घाव, जिनके निशान पीढ़ियों तक मिटते नहीं।
(प्रस्तुति -त्रिपाठी पारिजात)



