Raj Kapoor: एक याद राज कपूर की अनुरोध शर्मा के जिन्दा शब्दों से जागती हुई इस आलेख में आपके लिये..
गरीब, मैले-कुचैले कपड़ों में लिपटा कोई अनजान आदमी अगर हमारे गली-मौहल्ले में घुस आये तो हम उसे शक की निगाह से देखेंगे।
“कुछ चुराने तो नहीं आया, निगाह रखना इस पर”
‘कपड़ों से पहचानने’ की आदत हमारे मूल में है, अगर हमारा हाकिम इस आदत को अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल करता है तो ये उसकी धूर्तता तो है ही, लेकिन ये हमारे मूल स्वभाव की कमज़ोरी भी है, हम भी तो इसके लिए ज़िम्म्मेदार हैं।
तो ऐसा ही एक मज़दूर अपनी प्यास मिटाने के लिए एक सोसायटी में घुस जाता है और चोर समझ लिया जाता है। एक लोटा पानी के लिए भटकता ये मज़दूर सोसायटी के हर घर में चलते गोरखधंधे को देखता है, पर अपनी प्यास नहीं मिटा पाता। पूरी रात चलते इस हंगामे के बाद जब भोर नज़दीक आती है, तब रात के सन्नाटे को चीरती हुई मधुर आवाज़ आती है –
“जग उजियारा छाए, मन का अँधेरा जाए
किरनों की रानी गाये, जागो हे मेरे मन मोहन प्यारे…”
ये आवाज़ स्वर साम्राज्ञी #लता_मंगेशकर की है, इस आवाज़ की टक्कर #हिंदी_सिनेमा में दूसरी नहीं मिलती पर फिर भी…
…फिर भी हम आगे सुनते हैं। क्या पता हम उन्हें सुन पायें, जिन पर अक्सर हमारा ध्यान नहीं जाता।
अब “जागते रहो” के इस गाने को सुनें तो हमारे मन में #राजकपूर, #नर्गिस, लता मंगेशकर, #सलिल_चौधरी और #शैलेन्द्र के नाम प्रमुखता से उभरकर आते हैं। और ज़्यादा सोच लेंगे तो अपने ज़माने की स्टार बाल कलाकार डेज़ी ईरानी का नाम भी ले लेंगे। पर उनका नाम शायद ही लेंगे जिनका नाम मुझे भी नहीं पता। इसीलिए कहता हूँ, हम इस गीत को आगे सुनकर देखते हैं।
डर से काँपता हुआ प्यासा मज़दूर, उसे सहारा देता एक नन्हीं बच्ची, धीमे-धीमे कांपते पैरों से खड़ा हो रहा है। पार्श्व में बजते ये अद्भुत वाद्य यन्त्र… क्या ये मिलकर उसे हिम्मत बंधा रहे हैं या देखने वालों को भी जगाने के लिए ये नाद पैदा हुआ है?
कमज़ोर घबराया हुआ मजदूर अब सामने कुछ देखता है और उसके हाथ स्वतः ही नमस्कार की मुद्रा में जुड़ते चले जाते हैं। क्या उसने भगवान की कोई तस्वीर देखी है, या किसी देवता की कोई मूर्ति जिसके आगे वो नतमस्तक हुआ जा रहा है, या उसने स्वयं ईश्वर के दर्शन कर लिए हैं?
एक समूहगान गूँज उठता है और हमें भी उन तस्वीरों के दर्शन होते हैं, #गांधी, #रवीन्द्रनाथ, #विवेकानंद और #नेहरु … इसी क्रम में हमारे सामने आते हैं –
“जागो रे जागो रे सब कलियाँ जागी
नगर नगर सब गलियाँ जागी
जागो रे जागो रे जागो रे…”
ये महापुरुष न सिर्फ कहानी के किरदार को सहारा दे रहे हैं बल्कि देखने वाले दर्शक को भी कह रहे हैं कि अब जाग जाओ, जिन क्षुद्र बंधनों में तुम खुद को जकड़े हुए हो, उनसे आज़ाद हो जाओ।
इन तस्वीरों को देखकर मजदूर के भय को मिलती हुई दिलासा। यूँ लगता है कि इस मजदूर के भीतर भी कोई रौशनी कौंधी है जो इतिहास की इन पुण्यात्माओं से फूटकर निकली है। मजदूर के चेहरे पर सुबह की रौशनी पड़ रही है, उसका आँखें चमक रही हैं। कहानी के निर्माता यहाँ धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल भी कर सकते थे, लेकिन उन्होंने नहीं किया? क्यूँ? इसका जवाब आप सोचिए।
ये सब मिलकर अद्भुत प्रभाव बन पड़ता है। इस तीस सेकंड को गौर से देखिए, रौंगटे खड़े करने वाला दृश्य है।
पर मैं यहाँ उन अनजान आवाजों की बात कर रहा हूँ जिन्होंने मिलकर ये समां बाँधा। कुछ अनजान आवाजें, जिनका कोई नामलेवा भी नहीं, वो समूह में गाती हैं और अद्भुत प्रभाव पैदा करती हैं।
ये कोरस है। एक साथ एक मण्डली में मिलकर कुछ लोग गा रहे हों तो उसे कोरस कह सकते हैं, या फिर गीत का वो हिस्सा जो एक गाने में बार-बार दोहराया जाता है और साथ में जो उस गीत का प्रतिनिधित्व करता हो, वो कोरस कहलाता है।
“#जागते_रहो” का ये गीत तो है ही, इसके अलावा ‘बूट पॉलिश’ का गीत ‘रात गई और दिन आता है’ सुनिए, कमाल का है। सात मिनट लम्बे इस गीत में कोरस बेहद प्रभावशाली रूप से हमारे सामने आता है, साथ में बेबी नाज़ का बेहद आसान से दिखने वाला नयनाभिराम नृत्य।
राजकपूर ने अपनी फिल्मों में इस विधा का बहुत खूबी से प्रयोग किया है। उनकी हर फिल्म में कोरस के साथ एक न एक गीत तो आपको मिल ही जाएगा। और यूँ ही नहीं कि बस रखने के लिए रखा गया हो, वो गीत अपने पूरे रुआब के साथ आएगा।
‘मेरा नाम जोकर’ में ‘जीना यहाँ मरना यहाँ’ जब अपने उरूज पर पहुँचता है तो कोरस का सहारा लिया गया है। ‘राम तेरी गंगा मैली’ का टाइटल गीत में प्रभावशाली कोरस है।
और भी कई सारे गीत होंगे, कई सारी फ़िल्में होंगी, वो आप बताइए।
राजस्थान के लोक की बात की जाए तो दो नाम बड़े इज्ज़त से वहां लिए जाते हैं, एक विजयदान देथा ‘बिज्जी’ जिन्होंने एक से बढ़कर एक लोक कथाएं लिखी और दूसरे कोमल कोठारी जिन्होंने लोक के संरक्षण में बहुत काम किया, अपना पूरा जीवन लगा दिया।
शायद आपने लंगा-मांगणियारों का नाम सुना हो, शायद ना सुना हो। ये राजस्थान के लोक गीतों को गाने वाला मुस्लिम समुदाय है जो पीढ़ियों से बस यही काम कर रहा है। इन्हें अब अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त है, और इसका श्रेय कोमल कोठारी को दिया जाता है। फिल्म वाले भी इनके गानों का इस्तेमाल करते रहते हैं। ‘हम दिल दे चुके सनम’ में ‘निम्बूड़ा’ गीत इन्हीं लोगों का है, राजस्थान के लोक का है। जब ये लोग समूह में गाते हैं तो अद्भुत ऊँचाई तक पहुँचते हैं।
दिवंगत कोमल कोठारी ने कभी इनके लिए कहा था कि ये अगर अकेले गायें तो हो सकता है आप इनके गायन से प्रभावित ना हो पायें, लेकिन जब ये समूह में गाते हैं तो बड़े से बड़े शास्त्रीय गायक को टक्कर देते हैं।
ठीक उसी तरह, जैसा मैंने ‘जागते रहो’ के गीत का उदाहरण दिया, वहां समूहगान कहीं भी लता मंगेशकर की आवाज़ के आगे फीका नहीं पड़ता। अनजान आवाजें मिलकर स्वर साम्राज्ञी को टक्कर देती नज़र आती हैं।
ये #कोरस की ताकत है, ये समूह की ताकत है। हम उन आवाजों के नाम तो नहीं जानते, लेकिन उन्होंने मिलकर जो प्रभाव पैदा किया वो हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।
(अनुरोध शर्मा)



