Sunday, December 14, 2025
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Sanskrit in Pakistan: भारत की देवभाषा संस्कृत पाकिस्तान में पढ़ाई जायेगी – ये कैसे हो गया?

Sanskrit in Pakistan: इतिहास में नया अध्याय: विभाजन के बाद पहली बार पाकिस्तान के विश्वविद्यालय में संस्कृत की पढ़ाई, महाभारत और भगवद गीता होंगे पाठ्यक्रम का हिस्सा..

Sanskrit in Pakistan: इतिहास में नया अध्याय: विभाजन के बाद पहली बार पाकिस्तान के विश्वविद्यालय में संस्कृत की पढ़ाई, महाभारत और भगवद गीता होंगे पाठ्यक्रम का हिस्सा..

भारत–पाक विभाजन के बाद यह पहला अवसर है, जब पाकिस्तान के किसी उच्च शिक्षण संस्थान में प्राचीन भारतीय भाषा संस्कृत को औपचारिक रूप से अकादमिक पाठ्यक्रम का दर्जा दिया गया है। यह पहल न केवल शैक्षणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जा रही है, बल्कि इसे दक्षिण एशिया की साझा सांस्कृतिक विरासत की ओर एक अहम कदम के रूप में भी देखा जा रहा है।

पाकिस्तान के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज (LUMS) ने संस्कृत अध्ययन का यह नया पाठ्यक्रम शुरू किया है। इस कोर्स की विशेष बात यह है कि इसमें केवल भाषा शिक्षण तक सीमित न रहते हुए, महाभारत और भगवद गीता जैसे प्रमुख हिंदू ग्रंथों और महाकाव्यों का गहन अध्ययन भी शामिल किया गया है। यह जानकारी पाकिस्तानी अखबार द ट्रिब्यून की रिपोर्ट में सामने आई है।

रिपोर्ट के अनुसार, इस पाठ्यक्रम की नींव तीन महीने तक चली एक वीकेंड वर्कशॉप से पड़ी, जिसमें छात्रों, शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों ने अप्रत्याशित रूप से गहरी रुचि दिखाई। इस उत्साह को देखते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने इसे नियमित अकादमिक कार्यक्रम का रूप देने का निर्णय लिया।

एलयूएमएस के गुरमानी सेंटर के निदेशक डॉ. अली उस्मान कास्मी ने द ट्रिब्यून से बातचीत में बताया कि पाकिस्तान के पंजाब विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में संस्कृत पांडुलिपियों का एक अत्यंत समृद्ध, लेकिन लंबे समय से उपेक्षित संग्रह मौजूद है। उन्होंने कहा कि यह संग्रह देश की बौद्धिक धरोहर का अहम हिस्सा है, जिसे अब तक गंभीर रूप से नजरअंदाज किया जाता रहा है।

डॉ. कास्मी के अनुसार, संस्कृत की ताड़पत्र पांडुलिपियों का एक मूल्यवान संग्रह 1930 के दशक में प्रसिद्ध विद्वान जे.सी.आर. वूलनर द्वारा सूचीबद्ध किया गया था। हालांकि, 1947 के बाद किसी भी पाकिस्तानी शिक्षाविद ने इस संग्रह पर व्यवस्थित रूप से कार्य नहीं किया। अब तक इसका उपयोग मुख्य रूप से विदेशी शोधकर्ताओं तक ही सीमित रहा है। उनका मानना है कि देश के भीतर संस्कृत के जानकार विद्वानों को तैयार करने से इस स्थिति में बुनियादी परिवर्तन आएगा।

इस शैक्षणिक पहल से जुड़े प्रमुख शिक्षकों में शामिल एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शाहिद रशीद का मानना है कि संस्कृत को केवल धार्मिक चश्मे से देखना एक बड़ी भूल है। द ट्रिब्यून के अनुसार, उन्होंने कहा कि लोग अक्सर उनसे पूछते हैं कि वे संस्कृत क्यों सीख रहे हैं। उनका उत्तर होता है—हमें इसे न सीखने का कोई कारण नहीं है।

डॉ. रशीद ने यह भी स्पष्ट किया कि संस्कृत पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र को जोड़ने वाली भाषा रही है। प्रसिद्ध संस्कृत व्याकरणाचार्य पाणिनि का जन्मस्थल भी इसी भौगोलिक क्षेत्र में स्थित था। सिंधु घाटी सभ्यता के समय यहां बड़े पैमाने पर लेखन और बौद्धिक गतिविधियां होती थीं। उनके अनुसार, संस्कृत किसी एक धर्म की बपौती नहीं है, बल्कि यह एक विशाल सांस्कृतिक पर्वत के समान है, जिसे सभी को अपनाना चाहिए।

विश्वविद्यालय प्रशासन का लक्ष्य इस पहल को और आगे बढ़ाने का है। आने वाले समय में महाभारत और भगवद गीता पर केंद्रित विशेष पाठ्यक्रम शुरू करने की भी योजना बनाई जा रही है। डॉ. कास्मी ने आशा जताई कि अगले 10 से 15 वर्षों में पाकिस्तान में ही गीता और महाभारत के विशेषज्ञ विद्वान तैयार हो सकते हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि यह परिवर्तन संभव हो पाया है फोरमैन क्रिश्चियन कॉलेज में समाजशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शाहिद रशीद के निरंतर प्रयासों और बौद्धिक पहल के कारण। शिक्षाविदों का मानना है कि यह कदम न केवल अकादमिक क्षेत्र को समृद्ध करेगा, बल्कि भारत और पाकिस्तान के साझा सांस्कृतिक अतीत को समझने की दिशा में भी एक सकारात्मक प्रयास सिद्ध होगा।

(प्रस्तुति -अर्चना शैरी)

 

 

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