Sanskrit Learning Online: गोस्वामी तुलसीदास स्मृति अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्भाषण शिविर का भव्य समापन समारोह संपन्न हुआ..यह निरंतर गतिमान पैंतिसवाँ संस्कृत शिविर था..
पटना, 23 जुलाई 2025 — आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान एवं विहार संस्कृत संजीवन समाज, पटना के संयुक्त तत्त्वावधान में आयोजित “गोस्वामी तुलसीदास स्मृति अंतर्जालीय अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्भाषण शिविर” का दशदिवसीय शिविर समापन सम्पन्न हुआ। शिविर के समापन समारोह ने एक बार पुनः यह सिद्ध कर दिया कि संस्कृत न केवल देवभाषा है, बल्कि आज की सामाजिक चेतना में भी जीवंत और प्रासंगिक है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रतिष्ठित विद्वान एवं संस्कृत प्रचारक डॉ. मुकेश कुमार ओझा (राष्ट्रीय अध्यक्ष, आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान एवं महासचिव, विहार संस्कृत संजीवन समाज) ने की।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में डॉक्टर ओझा ने कहा,”तुलसीदास जी ने रामचरितमानस जैसे काव्य द्वारा भारतीय समाज को आध्यात्मिक चेतना प्रदान की। उनकी रचना संस्कृत परंपरा से अनुप्राणित है। ऐसे महापुरुष की स्मृति में संस्कृत सम्भाषण का आयोजन उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।”
उद्घाटनकर्ता धर्मेन्द्र पति त्रिपाठी (पूर्व संयुक्त निदेशक, पेंशन विभाग, उत्तर प्रदेश) ने अपने वक्तव्य में कहा,”संस्कृत ही वह सेतु है जो हमारे वैदिक अतीत से आधुनिक युग तक संवाद स्थापित करता है। तुलसीदास जी का व्यक्तित्व इसी संवाद का सजीव उदाहरण है।
मुख्य अतिथि डॉ. रागिनी वर्मा (राष्ट्रीय संयोजिका, अभियान एवं आचार्या, गङ्गा देवी महिला कॉलेज) ने कहा, “संस्कृत भाषा का पुनर्जीवन आवश्यक है, और तुलसीदास जी की स्मृति में यह शिविर नई पीढ़ी को भाषा से जोड़ने का श्रेष्ठ माध्यम है।”
मुख्य वक्ता डॉक्टर राजेश कुमार मिश्रा ने तुलसीदास जी के कार्यों में संस्कृत व्याकरण, छंद और काव्य की परंपरा की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा,”तुलसीदास हिंदी में काव्य रचते हुए भी संस्कृत आचार्य की भाँति दृष्टिगोचर होते हैं।”
विशिष्ट अतिथियों डॉ. अवन्तिका कुमारी, डॉ. मधु कुमारी, डॉ. नीरा कुमारी एवं उग्रनारायण झा ने भी अपने विचार रखे। स्वागत भाषण एवं ऐक्य मंत्र का सुंदर पाठ डॉ. लीना चौहान (उपाध्यक्षा, अभियान) द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन पिंटू कुमार (राष्ट्रीय संयोजक, अभियान एवं शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय) द्वारा अत्यंत प्रभावशाली शैली में किया गया। इस अवसर पर अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्भाषण प्रतियोगिता के विजेताओं को सम्मानित किया गया।
प्रथम पुरस्कार: अदिति चोला (स्नातकोत्तर, कासगंज, उत्तर प्रदेश) एवं सुजाता घोष (शोध छात्रा, सिल्चर विश्वविद्यालय, असम)
द्वितीय पुरस्कार: ज्ञानी शारदेय (स्नातकोत्तर, जयपुर, राजस्थान) एवं मनीषा बोदरा (संस्कृत विभाग, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची)
तृतीय पुरस्कार: बीजेन्द्र सिंह (शोध छात्र, दिल्ली विश्वविद्यालय) एवं तारा विश्वकर्मा (भोपाल, मध्य प्रदेश)
विशेष पुरस्कार: रामनाथ पाण्डेय (संस्कृत शिक्षक, पटना), सौरभ शर्मा (शोध छात्र, दिल्ली विश्वविद्यालय), राहुल कुमार (संस्कृत शिक्षक, पटना) एवं मधु कुमारी (शोध छात्रा, भागलपुर विश्वविद्यालय)
उल्लेखनीय वक्तव्य:सभी प्रतिभागियों एवं वक्ताओं ने गोस्वामी तुलसीदास के कार्यों में संस्कृत के सूक्ष्म प्रभाव को स्वीकारते हुए संस्कृत संवाद को जन-जन तक पहुँचाने की आवश्यकता पर बल दिया।तुलसीदास जी की “वाणी” को संस्कृत-प्रेरित बताते हुए वक्ताओं ने कहा कि “संस्कृत सम्भाषण” के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना को फिर से पुष्ट किया जा सकता है।
निष्कर्ष के रूप में कथनीय है कि इस समापन समारोह ने यह स्पष्ट कर दिया है कि संस्कृत कोई मृत भाषा नहीं, अपितु वह आज भी प्रेरणा, चेतना और राष्ट्रीय एकता का स्रोत है। गोस्वामी तुलसीदास की स्मृति में सम्पन्न यह शिविर देवभाषा संस्कृत के पुनरुत्थान की दिशा में एक प्रभावशाली पहल रही।