Wednesday, June 25, 2025
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Savyasachi Subhash writes: मोसाद का सबसे खतरनाक जासूस- जिसने इजराइल को 6 दिन में अरब देशों पर जीत दिला दी

Savyasachi Subhash की कलम एक ऐसे जासूस के बारे में बता रही है जिस पर मोसाद को अभिमान है..

Savyasachi Subhash की कलम एक ऐसे जासूस के बारे में बता रही है जिस पर मोसाद को अभिमान है..

मोसाद का सबसे खतरनाक जासूस, जिसकी दम पर इजराइल ने सिर्फ 6 दिनों में अरब देशों की संयुक्त सेनाओं को पराजित कर दिया और अपने देश के क्षेत्रफल में 20 गुना से ज्यादा बढ़ोतरी कर ली.

दुनिया की सबसे खतरनाक खुफिया एजेंसी मोसाद, जो अपने दुश्मन को किसी भी हद तक नहीं छोड़ती और अपना मिशन पूरा ही करती है. 1960 के दशक में जब सीरिया की ओर से इजरायल पर हमला किया जाने लगा, तो मोसाद ने एक जासूस की तलाश शुरू की जो सीरिया में रहकर कुछ जानकारी जुटा सके.
इसी कड़ी में सामने आते हैं, एली कोहेन. जो पैदा मिस्त्र में हुए, पिता यहूदी थे और मां सीरियाई. मिस्त्र के बाद अर्जेंटीना पहुंचे और फिर इजरायल. पिता ने इजरायल में रुकने का फैसला लिया, लेकिन एली कोहेन अपनी पढ़ाई के लिए मिस्त्र में रुके. पहले पढ़ाई पूरी की, फिर बाद में एक कोर्स जासूसी का भी किया.
एली कोहेन 1960 में इजरायली खुफिया विभाग से जुड़े और काम शुरू किया. एक साल बाद ही उन्हें सीरिया में जासूसी करने के लिए ट्रेन करना शुरू कर दिया गया और एक कारोबारी बनाकर किसी तरह सीरिया पहुंचाया गया.

फील्ड एजेंट के तौर पर एली का पूरा मिशन गुप्त रहने वाला था। अपनी पत्नी नादिया से उन्होंने बताया कि वह रक्षा मंत्रालय के फर्नीचर वगैरह खरीदने विदेश जा रहे हैं। इजरायल से निकलकर एली साल 1961 में अर्जेंटीना के ब्यूनोस ऐरेस पहुंचे, जहां उनका नया नामकरण हुआ…कामेल अमीन ताबेत..! इसके आगे अब यही नाम उनकी पहचान बन गया।

प्लान के मुताबिक, यहां उन्होंने सीरियाई व्यापारियों और सीरियन एंबैसी के मिलिट्री अटैच जनरल अमीन अल हफीज से संबंध बनाए। उन्हें बताया कि कैसे सीरिया से आए उनके मां-बाप ने अर्जेंटीना में अपना बिजनेस फैलाया और अब उनके देहांत के बाद वह अपने वतन सीरिया लौटना चाहते हैं और ये सारा पैसा वहां के विकास पर खर्च करना चाहते हैं। तमाम मुश्किलों से बचते-बचाते वह आखिरकार सीरिया पहुंच गए।
कामिल अमीन थाबेत जो एक एक्सपोर्ट का काम करता था, उसने सीरिया के दमिश्क में अपना बिजनेस शुरू किया.

दमिश्क राजधानी थी, इसलिए सत्ता यहां पर ही थी. पैसों का इस्तेमाल कर कामिल अमीन थाबेत उर्फ एली कोहेन बड़े लोगों की नजर में आना शुरू हो गए. जिसके बाद उन्होंने सेना में अधिकारियों से संबंध बढ़ाए, जनरल के भतीजे से दोस्ती कर ली. उसी की मदद से बॉर्डर तक पहुंचे, ऐसे स्थानों पर पहुंचे जहां से सीरिया इजरायल के खिलाफ साजिश रचता था.

एली ने कई बड़ी साजिशों का पता लगा लिया। एली ने ही इजरायल को बताया कि कैसे सीरिया इजरायल के लिए पानी के एकमात्र स्रोत ‘सी ऑफ गैलिली’ में जाने वाले दो नदियों के पानी को मोड़ने का प्लान बना रहा है। इजरायल ने दक्षिणी सीरिया में चल रही इस गुप्त तैयारी को एयर स्ट्राइक कर एक झटके में ध्वस्त कर दिया।

1961 से 1965 तक एली कोहेन ने सीरिया के दमिश्क में रहकर इजरायल की मोसाद को छोटी से छोटी जानकारी दी. जिसमें सीरिया के पास क्या हथियार हैं, वो कब कितने जवानों को कहां पर तैनात कर रहा है. यहां तक कि घुसपैठ के लिए किस रास्ते का इस्तेमाल हो रहा, इजरायल-सीरिया के बीच गोल्डन हाइट्स जिसे इजरायल ने जीत लिया था वहां पर यूकेलिप्टस के पेड़ लगाने का आइडिया सीरिया को एली कोहेन ने ही दिया.

इन पेड़ों के लगाने के बाद से ही इजरायल को हिंट मिला कि आखिर सीरियाई जवान बॉर्डर पर कहां तैनात हैं और कब हमला करने से फायदा होगा..कैसे पकड़े गए और फिर बीच चौराहे में टांग दिया गया..

1965 का वो दौर जब सीरिया को लगातार झटके पर झटके लग रहे थे, क्योंकि एली कोहेन ने काफी खुफिया जानकारी इजरायल को दे दी थी. लेकिन लगातार ट्रांसमिशन से बात करने की वजह से सीरिया के जनरल के चीफ ऑफ स्टाफ को एली कोहेम पर शक हुआ, शहर में जब ट्रांसमिशन की जांच शुरू हुई तो एली कोहेन धरे गए. वो भी तब जब उन्हें सीरियाई सरकार में रक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी दी जा रही थी.

लगातार मिल रही नाकामियों से तंग आकर सीरिया के राष्ट्रपति अमीन अल हफीज ने एली उर्फ कामेल अमीन ताबेत को सीरिया का रक्षा मंत्री बनने का ऑफर दिया। हफीज को नहीं पता था कि जिसे वह रक्षा मंत्री बनाने जा रहा है, वही उसकी सारी नाकामियों की जड़ है।

हालांकि एली रक्षा मंत्री बन पाते, उससे पहले ही हफीज के रक्षा सलाहकार अहमद सुइदानी को शक हो गया कि कोई अंदर का आदमी ही है, जो जासूसी कर रहा है। सुइदानी ने सोवियत की मदद से एक ट्रैकिंग डिवाइस मंगाई, जिसने दमिश्क में घूम-घूमकर रेडियो ट्रांसमिशन का पता लगाना शुरू कर दिया। 2-3 दिन चले इस ऑपरेशन में आखिरकार सुइदानी को कामयाबी मिल गई।

पता चला कि जिस कामेल अमीन ताबेत पर पूरा सीरिया भरोसा कर रहा था, असल में वही इजरायली जासूस है। सुइदानी ने पूरी फोर्स के साथ एली के घर पर धावा बोला और उन्हें रेडियो ट्रांसमिशन करते अप्रैल 1965 में रंगे हाथों पकड़ लिया। करीब एक महीने तक चले टॉर्चर के बाद 18 मई 1965 को दमिश्क के मरजेह स्क्वेयर पर एली को सरेआम फांसी दे दी गई। एली के शव को चौराहे पर 8 घंटे तक लटकाकर रखा गया और लोगों को उनके शव पर जूते-चप्पल बरसाने की छूट दी गई।

एली कोहेन को 1966 में दमिश्क में एक चौराहे पर फांसी दी गई थी. उनके गले में एक बैनर डाला गया था, जिसपर लिखा था ‘सीरिया में मौजूद अरबी लोगों की ओर से.’ इजरायल की ओर से उनका शव वापस लाने की कई कोशिशें की गईं, लेकिन सीरिया ने एली कोहेन का शव नहीं लौटाया. हाल ही में पिछले साल इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने एली कोहेन की घड़ी को ढूंढ निकाला था, जो उन्होंने सीरिया में पहनी थी.

योगक्षेमं वहाम्यहम्

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