Shrawan 2025: कांवड़ की कहानी नहीं है ये किन्तु उससे जुड़ी ये एक चमत्कारी घटना अविस्मरणीय है और प्रेरणास्पद भी सभी के लिये..
संत एकनाथ ने एक बार हरिद्वार से गंगाजल लेकर रामेश्वर में चढ़ाने का संकल्प लिया। रास्ता बहुत लंबा था और बीच में एक बड़ा सूखा और सुनसान इलाका आया। दूर-दूर तक न हरियाली थी, न पानी। साथ लाया गया पानी भी खत्म हो गया था, और सभी कांवड़िये जल्दी से अगला गांव पहुँचने की कोशिश में थे ताकि वहाँ कुछ पानी मिल सके।
इसी दौरान सबकी नज़र एक गधे पर पड़ी जो ज़मीन पर पड़ा प्यास से तड़प रहा था। सब लोग उसे नजरअंदाज करते हुए आगे बढ़ गए, क्योंकि किसी के पास पानी नहीं था और अपने प्राण बचाना सबसे जरूरी था।
लेकिन पीछे चल रहे संत एकनाथ वहीं रुक गए।
जिसके मन में अद्वैत और वेदांत की भावना सिर्फ सिद्धांत नहीं, जीवन का अनुभव बन चुकी हो—उसके लिए गधा भी ईश्वर का अंश ही होता है।
एकनाथ जी ने अपनी कांवड़ ज़मीन पर रख दी और उसमें भरा सारा गंगाजल उस तड़पते गधे को पिला दिया। पानी मिलते ही जैसे उसमें जान लौट आई। वह उठ खड़ा हुआ।
एकनाथ जी की आंखों में आँसू आ गए। उन्होंने हाथ जोड़कर भावविभोर होकर कहा—
“हे देवों के देव, आपने मेरे इस छोटे से प्रयास को स्वीकार कर लिया। आपने जल ग्रहण करके मेरे सेवा को सार्थक बना दिया।”
उधर कैलाश पर भगवान शिव मुस्कराए और बोले—
“युगों बाद, मेरे विष से जले गले को आज कुछ ठंडक महसूस हुई है। मेरे प्रिय एकनाथ, तुम्हारा कोटि-कोटि धन्यवाद।”
कांवड़ यात्रा हुल्लड़ करने वालों का तमाशा नहीं है।
यह एक गंभीर और कठिन तपस्या है – संवेदनशील, समर्पित भक्तों की परीक्षा। इसमें शराबी, तोड़फोड़ करने वाले अराजक तत्वों और कानफोड़ू लाउडस्पीकर बजाने वालों का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
दुर्भाग्य है कि आज यही सब चीजें बढ़ती जा रही हैं।