Speak Sanskrit: देवभाषा संस्कृत को सम्मान सहित सनातनी राष्ट्र भारतवर्ष में ही नहीं विश्वस्तर पर भी वार्तालाप की भाषा के रूप में प्रतिष्ठा प्रदान करने का लक्ष्य लिये डॉक्टर मुकेश कुमार ओझा जी के नेतृत्व में संस्कृत प्रसार का महाअभियान अविराम गतिमान है..
पटना 23 सितंबर। मार्कण्डेय ऋषि भारतीय परम्परा में अमरता,शिवभक्ति और अद्वितीय ज्ञान के प्रतीक माने जाते हैं। उनके जीवन से यह शिक्षा मिलती है कि सच्ची और साधना से मृत्यु जैसे अजेय शक्ति भी परास्त हो सकती है
उपरोक्त महत्वपूर्ण बातें आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं विहार संस्कृत संजीवन समाज के महासचिव डॉ मुकेश कुमार ओझा ने महर्षि मार्कण्डेय स्मृति अन्तर्जालीय अन्तर्राष्ट्रीय दशदिवसात्मक संस्कृत सम्भाषण के निरन्तर 36वें शिविर के समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए कही।
अपने उद्घाटन भाषण में अभियान के प्रधान संरक्षक एवम् उत्तर प्रदेश सरकार के पूर्व गृह सचिव डॉ अनिल कुमार सिंह ने कहा कि मार्कण्डेय ऋषि न केवल अमर ऋषि है, अपितु मार्कण्डेय पुराण के रचनाकार भी हैं, जिसमें दुर्गा सप्तशती का वर्णन है।
मुख्यातिथि श्री धर्मेन्द्रपति त्रिपाठी, राष्ट्रीय संयोजिका प्रो रागिनी वर्मा, अभियान के संरक्षक डॉ मिथिलेश झा, मुख्य वक्ता श्री शैलेन्द्र सिन्हा, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री उग्र नारायण झा एवं डॉ लीना चौहान, विशिष्टातिथि डॉ अनिल कुमार चौबे, डॉ नीरा कुमारी, डॉ मधु कुमारी डॉ बिधू बाला ने भी संस्कृत सम्भाषण शिविर एवं मार्कण्डेय ऋषि के जीवन पर विस्तार से जानकारी दी।
इस महत्वपूर्ण अवसर पर मार्कण्डेय स्मृति संस्कृत भाषण प्रतियोगिता का आयोजन भी किया गया, जिसमें तारा विश्वकर्मा को प्रथम पुरस्कार, सुजाता घोष एवं अदिति चोला को द्वितीय पुरस्कार तथा मुरलीधर शुक्ल को तृतीय पुरस्कार एवं बीजेन्द्र सिंह, डॉ पल्लवी, डॉ रागिनी कुमारी को विशेष पुरस्कार प्रदान किया गया।
वैदिक मंगलाचरण का दायित्व श्री उग्र नारायण झा ने निर्वहन किया वहीं धन्यवाद ज्ञापन का कर्तव्य डॉक्टर लीना चौहान ने निभाया। ऐक्य मन्त्र की प्रस्तुति तारा विश्वकर्मा ने की।