Story By Anju:पढ़िये एक भोली-भली लड़की की कहानी जिसका भाग्य ही बना उसका दुर्भाग्य ..
संजोग(Story By Anju)
नलिनी जल्दी-जल्दी अपने लेखन का काम निपटा रही थी .बीच-बीच में उसकी दृष्टि घड़ी की सुइयों की तरफ़ जा रही थी.पति के आने का समय हो चला था और उसका काम अब तक ख़त्म नहीं हुआ . उसका हृदय ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था कि ना जाने कब पतिदेव ऑफिस से आ जाएँ.
नलिनी एक लोकप्रिय मासिक-पत्रिका “सौदामिनी”की संपादिका थी. बचपन से ही पढ़ने-लिखने में अव्वल रही थी नलिनी. उतनी ही सुंदर भी थी.हिंदी साहित्य में उसकी विशेष रुचि थी.
विद्यालय में वाद-विवाद प्रतियोगिता हो या फिर किसी भी अमुक विषय पर बोलना हो . नलिनी सदैव प्रथम पुरस्कार विजेता होती थी.
हालांकि स्कूल को-एड था मगर विद्यालय के नियमानुसार लड़कियां सिर्फ़ लड़कियों के साथ बेंच शेयर कर सकती थी और ठीक ऐसा लड़कों के साथ भी था .
कभी-कभी तो ये नियम सही लगते हैं मगर कभी लगता है कि हम उन्हें एक स्वाभाविक ,स्वतंत्र सरिता की भांति क्यों नहीं बहने देते? क्यों हम रूढ़िवादी सोच की लक्ष्मण-रेखा खींच कर उनके भीतर कौतुहल पैदा करने वाले हार्मोन का संचार कर देते हैं जिनके तार उस पार से जुड़े होते हैं.
खैर .. नलिनी अपने माता-पिता की तीसरी और सबसे छोटी संतान है. उसके बड़े भैया और दीदी अपने-अपने जॉब में कार्यरत थे.
नलिनी की माँ एक पढ़ी-लिखी, सुंदर,समझदार और कार्य-कुशल महिला है जिसके विचार लड़का और लड़की को ले कर समानता वाले हैं मगर आधुनिक युग की मटमैली हवा को भी तो वे नज़रंदाज़ नहीं कर सकती . इसलिए बेटियों को अच्छे संस्कार देने के साथ-साथ मर्यादा में रहना और अपने स्वाभिमान और आत्म-रक्षा की शिक्षा भी बखूबी दी है.
उनके घर में किसी भी लड़के मित्र का फ़ोन नहीं आता था. घर पर आना तो बहौत दूर की बात थी .उस पर नलिनी के बड़के भैया ऋतु राज अपनी बहनों पर पूरा रौब जमाते थे. नलिनी और उसकी बड़ी बहन कौमुदी की सहेलियों के कॉल भी आए तो पहले भैरव महाराज की अनुमति के पश्चात ही वे बात कर पाती थीं.
ये नलिनी के पिता शरद का बनाया अनुशासन था जिसे भंग करने का साहस किसी में भी नहीं था. पुरखों से चली आ रही इस प्रथा का विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं थी.
जब नलिनी की माँ सुधा अकेले घर पर होती थी दोनों बेटियों के साथ तो ये पता ही नहीं लगता था कि कौन माँ.. और कौन बेटी?तीनों पक्की सहेलियों की तरह बातें करती थी. अपने सपनों को जी लेना चाहती थीं वे इन क्षणों में जिनकी उम्र बस इतनी-सी होती थी लेकिन उन बित्ते भर के क्षणों में वे पूरा जीवन जी लेती थीं क्यूंकि शरद और ऋतु राज के घर लौटते ही तीनों के चेहरों पर संजीदगी का नक़ाब चढ़ जाता था.
ऐसा नहीं था कि शरद की दोनों बेटियां अपने पिता से स्नेह और सुधा अपने पति से प्रेम नहीं करती थीं.
सुधा शरद के इस रुख़ को समझती थी क्यूँकि अभी का दौर ही कुछ ऐसा था जिसमें दो पुत्रियों का पिता होना बहौत बड़ी ज़िम्मेदारी थी मगर अपनी बेटियों के सपनों को भी वो उड़ान देना चाहती थी . अपने पति की हिदायतों को भी समय-समय पर नलिनी और कौमुदी को स्मरण कराती रहती थी .
बस इसी तालमेल को बैठाते हुए कई वर्षों से अपने गृहस्थी को सहेज रही थी ठीक वैसे ही जैसे बनारस के घाट पर अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए कामना-दीपक प्रज्वलित कर बहौत ही संभाल कर,दोनों हाथों से सहेजते हुए प्रवाहित करती थी और देर तक निर्मल-गंगा की हिचकोले खाती लहरों में डगमग करते जलते दीपक को निहारती रहती. जानें कितनी प्रार्थनाएँ हृदय के तारामंडल से उठ कर उसके होंठों पर बुदबुदाती रहती थी.आस-दीपक के दृग-मंडल से ओझल होने के उपरांत ही सुधा अपनी धारा-मार्ग को अपने उद्गम की ओर मोड़ लेती थी.
कभी-कभी नलिनी अपनी माँ के साथ गंगा-घाट जाया करती थी. माँ गंगा की कल-कल ध्वनि , ऋषि-मुनियों का हर-हर गंगे और साँझ आरती.. पाञ्चजन्य निनाद , घंटा-ध्वनि..समस्त व्योम वधू के लाल जोड़े-सा अलंकृत
नलिनी इतने सारे एकत्रित अलंकारों को देख कर मंत्र-मुग्ध हो कर जाया करती थी.
मन ही मन उसकी बस एक ही प्रार्थना होती कि-“हे गंगा मैया मेरी माँ की हर मनोकामना पूरी करना क्यूंकि वो अपने लिए कभी कुछ नहीं माँगती है इसलिए उनकी इच्छा को भी अवश्य पूरी करना.”
अपनी अंजुली में माँ गंगा के जल को भर दूसरे हाथ की हथेली नीचे टिका कर आँखें बंद कर नलिनी माँ गंगा के उस स्वरूप में खो जाती जहाँ गंगाधर की जटाओं से निकलती गंगे आभासित हो रही है.
ऐसा बहुधा होता रहता था नलिनी के साथ. ना जाने क्यों उसे भागीरथी के इसी स्वरूप का आभास होता ही रहता था.
जब सुधा के साथ नलिनी घर लौटी तो पिताजी (शरद) घर आ चुके थे. माँ ने घर में प्रवेश करते ही बग़ैर उनसे आँखें मिलाए बिना प्रसाद उनकी हथेली पर रख दिया.
शरद के प्रश्नों की बौछार से बचने के तरीक़े सुधा अब अच्छी तरह से जान गई थी. शरद को पसंद नहीं था कि उनकी पत्नी या बेटियां उनके घर आने से पहले घर में ना हों.
आज घर पर एकादशी के कारण भीड़ अधिक थी इसलिए घर पहुँचने में थोड़ा समय लगा.
सुधा घर में सभी को प्रसाद वितरण कर रसोई में शरद के लिए चाय बनाने लगी . नलिनी भी अपने कमरे में जा कर पढ़ाई करने लगी .हिंदी साहित्य में PHD करना चाहती थी .आगामी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थी नलिनी.
सुधा जलपान ले कर हॉलनुमा कमरे में प्रविष्ट हुई . टेबल पर नाश्ता और चाय रख कर जैसे ही रसोई में जाने को हुई तो शरद ने कहा
-“ रुको सुधा.. बैठो मेरे पास.”
“जी..” सुधा ने शरद की तरफ़ मुड़ते हुए कहा.
“सुधा अपनी कौमुदी के लिए गडोलिया में रहने वाले जज साहब मानवेन्द्र बंसल जी के सुपुत्र का रिश्ता आया है. बहौत ही गुणी लड़का है . वो भी हाईकोर्ट मे बड़ा वकील है पिता (जज)की तरह. उन्होंने स्वयं आगे बढ़ कर हमारी कौमुदी का हाथ मांगा है अपने सुपुत्र के लिए.”
“अच्छा.. ये तो बहौत ख़ुशी की बात है जी.”
“हाँ सुधा..इतने बड़े घराने से संबंध की बात उठी है ,ये हमारी बेटी का सौभाग्य है लेकिन उनकी एक शर्त है.”
“ शर्त..कैसी शर्त?”
“ मानवेन्द्र जी दो लड़के हैं और वे चाहते हैं कि दोनों बेटों का विवाह एक ही मंडप में हो.”
“ओह.. मगर ऐसा क्यों?”
“क्यूंकि पत्नी पाँच वर्ष पूर्व चल बसी और उनका अपना स्वास्थ्य अब ठीक नहीं रहता.जाने कब क्या हो जाए इसलिए वे अपने दोनों बेटों का विवाह एक साथ ही कर देना चाहते हैं .”
शरद ने आगे कहा-“ बड़ा बेटा अमन हाईकोर्ट में वकील है और छोटा सुपुत्र कमल लेखक और पार्श्व गायक है.”
“ अरे छोटा सुपुत्र पिता और भाई से बिल्कुल अलग प्रोफेशन में कैसे?”सुधा ने आश्चर्यचकित होते हुए शरद से पूछा .
“हाँ तुमने सही कहा सुधा क्यूंकि मानवेन्द्र जी की पत्नी एक स्थापित लेखिका और गायिका थीं. वही से ये गुण कमल को विरासत में अपनी माताजी से मिला.”
“ अच्छा.. “सुधा ने कहा.
“ लेकिन नलिनी तो अभी पढ़ ही रही है. अभी उसके विवाह के विषय में हम कैसे सोच सकते हैं ?”
सुनकर शरद थोड़े गंभीर हो गए.फिर अचानक बोले
“ सुधा घराना बहौत अच्छा है , ख़ानदानी लोग हैं .पढ़ाई तो विवाह के बाद भी हो सकती है. मानवेन्द्र जी बहौत स्वतंत्र विचारों के हैं. मुझे विश्वास है कि बेटी-बहू में उनके लिए कोई अंतर नहीं होगा. हमारी बेटियां वहाँ राज करेंगी.”
“मगर नीलू (नलिनी) के पापा ससुराल कितना भी अच्छा हो परंतु मायका फिर भी मायका ही होता है.विवाहोपरांत जिम्मेदारियों का बोझ एक स्त्री पर आ जाता है और वो जितनी सहजता और सरलता से सब कुछ मायके में कर लेती है वहाँ नहीं कर सकती. सौ बार सोचना पड़ता है.”
शरद सुधा की ओर घूरने वाली दृष्टि से देख रहे थे कि क्या सुधा के साथ भी कुछ ऐसा था?सुधा मानवेन्द्र के इस भाव को भाँप गई और तुरंत कहा कि-“ हमारा ज़माना कुछ और था नीलू के पापा. आज हर लड़की अपने पैर पर खड़ी होने के बाद ही विवाह करना चाहती है जैसे कौमुदी. उसने अपनी CA की पढ़ाई पूरी की और अब बड़ी कंपनी में CFO के पद पर कार्यरत है.हमें ये अवसर नीलू को भी तो देना चाहिए ना .. “
शरद चुप रहे.एक पल के लिए सन्नाटा छ गया. दोनों ही कुछ नहीं बोले फिर शरद ने मौन तोड़ा-“ हाँ तुम शायद सही हो सुधा मगर अच्छे रिश्ते रोज़-रोज़ नहीं आते. मैं स्वयं मानवेन्द्र जी से कहूँगा कि वो नीलू बिटिया की पढ़ाई आगे चलने दें. मैं इनको बहौत अच्छी तरह से जानता हूँ . उनको कोई एतराज नहीं होगा सुधा.”
शरद की इस दलील पर सुधा चुप मार गई मगर उसे भीतर ही भीतर चिंता खाये जा रही थी कि ये जानने के बाद नलिनी की क्या प्रतिक्रिया होगी?
शरद ने चाय ख़त्म करके ज्यूँ ही ख़ाली कप मेज़ पर रखा फ़ोन पर घंटी बजी. शरद ने मोबाइल देखा तो मानवेन्द्र जी का ही कॉल आ रहा था. शरद ने सुधा को इशारे से चुप रहने को कहा और फ़ोन उठाया.
“हेलो..हाँ नमस्कार मानवेन्द्र जी “
“ जी नमस्कार ..”
“ जी कहिए ..”
“ शरद जी मैंने आपको कॉल इसलिए किया कि आपने मेरे प्रस्ताव पर कुछ विचार किया? क्या राय है आपकी?”
“ जी मानवेन्द्र जी सोचना क्या.. ये तो हमारा सौभाग्य है कि आप मेरी बेटियों को अपनी पुत्रवधू बनाना चाहते हैं.”
“ जी शरद जी आप सौभाग्यशाली हैं कि आपके घर लक्ष्मी का वास है और मैं आपकी दोनों पुत्रियों को अपने घर की रौनक बनाना चाहता हूँ इसलिए आप राजा हैं और मैं फ़क़ीर.”
“ अरे आप ऐसा ना कहें मानवेन्द्र जी..”
“हा हा हा .. शरद जी बेटी का पिता सदैव पुत्र के पिता से ऊँचा होता है क्यूँकि वह अपने कुल के दीपक को दूसरे कुल का उजाला बनाता है. कन्या का दान सबसे बड़ा दान है और इसके लिए कलेजा चाहिए. इसलिए आप सदैव मुझसे ऊपर ही रहेंगें.”
मानवेन्द्र जी की बातें सुनकर शरद का हृदय गदगद हो उठा और वो मुस्कुराने लगे.
“ शरद जी यदि आपकी अनुमति हो तो कल हम आपके घर आ सकते हैं अपने बेटों के साथ?”
“ नेकी और पूछ-पूछ मानवेन्द्र जी . आपका ही घर है अवश्य पधारें.”
“ जी ठीक है .. कल सवेरे साढ़े दस बजे मैं अमन और कमल के साथ आ रहा हूँ.”
“ जी बिल्कुल पधारिये”
कह कर शरद ने फ़ोन रख दिया.
फिर सुधा को आवाज़ दे कर बुलाया-“ अजी सुनती हो! कल मानवेन्द्र जी अपने दोनों बेटों के साथ हमारे घर पधार रहे हैं. कौमुदी और नलिनी को बता दो और सारी तैयारियां भी कर लेना. देखना कहीं कोई कमी ना हो.”
“जी ठीक है..”
सुधा ने हाँ तो कह दिया मगर वह यही सोच रही थी कि नलिनी को वो कैसे मनाएगी विवाह के लिए. वो जानती थी कि ये उसके साथ ज़्यादती होगी मगर शरद का विरोध करना उसके लिए असंभव था.
कौमुदी को सुधा ने सब बता दिया और कल के लिए हिदायतों भी दे दीं मगर अभी भी सबसे कठिन कार्य बाकी था. हिम्मत कर के सुधा नलिनी के कमरे की ओर मुड़ी. काँपते कदमों से कमरे में प्रवेश किया. नलिनी कुछ लिखने में व्यस्त थी. साथ ही गीत भी गुनगुना रही थी. बहौत ख़ुश लग रही थी नीलू.
सुधा सोच रही थी कि कितनी ख़ुश लग रही है मेरी बच्ची. कैसे बताएगी उसे ये सब कि किस प्रकार उसके सपनों का गला घोंटने पर आमादा हो गए हैं उसके अपने माता-पिता.
इसी उहा-पोह में थी सुधा कि कैसे बात शुरू करे तभी नलिनी की दृष्टि अपनी माँ पर पड़ गई .
नलिनी लपक कर सुधा के पास पहुँची और उचक कर सुधा के गले से लग गई.
“ माँ ओ मेरी प्यारी माँ..”
सुधा ने उसके सर पर प्यार भरा हाथ रखा और ख़ुद को नलिनी से अलग करते हुए मुस्कुरा कर सहज होने का स्वांग करते हुए बोली-“ क्या हुआ नीलू आज माँ पर कुछ ज़्यादा ही प्यार आ रहा है ?”
नलिनी भी मुस्कुराने लगी
“क्या माँ तुम भी ना.. मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ.आपके बिना एक दिन भी नहीं रह सकती आप जानती हैं ना?”
सुधा ने हँसते हुए कहा “ हाँ बाबा मैं जानती हूँ परंतु एक दिन तो तुझे अपनी प्यारी माँ को छोड़ कर जाना ही होगा .”
“ लेकिन क्यों माँ , मैं क्यों जाने लगी आपको छोड़ कर.मुझे रात को नींद भी नहीं आती जब तक आप मुझे आ कर नहीं सुलातीं. मैं कहीं नहीं जाने वाली आपको छोड़ कर.”
“अच्छा .. लेकिन एक जगह है जहाँ तू ख़ुशी-ख़ुशी जाएगी मुझे छोड़ कर.” कह कर सुधा हँसने लगी.
“ऐसी कौन-दी जगह है माँ. ना ना ना .. ऐसा इस संसार
में कोई स्थान नहीं जो मेरी माँ से बढ़ कर हो. मैं कहीं नहीं जाऊँगी आपको छोड़ कर.” कहकर नलिनी फिर से अपनी स्टडी टेबल की ओर मुड़ने लगी कि तभी सुधा ने उसका हाथ पकड़ लिया.
“जाना तो होगा लाडो तुझे.”सुधा ने नलिनी से कहा.
नलिनी सुधा के ऐसा कहने पर चौंक गई!!
“कहाँ माँ?.. ऐसा क्यों कह रही हैं आप?
सुधा मौन रही.
“ बोलो ना माँ.. चुप क्यों हो?आपने ऐसा क्यों कहा? कहाँ जा रही हूँ मैं?प्लीज़ कुछ तो बताओ. मेरा दिल.. ज़ोर से धड़क रहा है माँ और कल मेरे हिंदी दोहे के प्रोजेक्ट का submission है. मुझे पढ़ना है माँ और आप मुझसे ऐसा मज़ाक़ कर रही हैं?
“मैं मज़ाक़ नहीं कर रही लाडो,तेरे पिताजी..” कह कर सुधा फिर मौन हो गई. उसका गला भर्रा गया और वो आगे कुछ कह ना पायी.
“पिताजी क्या माँ..?कहिये ना.”
नलिनी के बार-बार पूछने पर सुधा हिम्मत बटोर कर कहने लगी..” बेटा तेरे पिताजी तुम दोनों बहनों का..”
“हम दोनों बहनों का क्या माँ..?”
सुधा ने आगे कहा -“ तुम दोनों बहनों का रि….”
“रिश्ता तय कर दिया है!!”-तभी पीछे से आवाज़ आई. सुधा ने मुड़कर देखा तो शरद खड़े थे और उन्होंने ही सुधा की इस बात को पूरा कर दिया था.
नलिनी ने अपने पिता के मुख से ये बात सुनी और वो सुधा का चेहरा देखने लगी . अनगिनत सवाल कर रही थी नलिनी के चेहरे की मुद्रायें कि ये क्या चल रहा है? अचानक ये निर्णय क्यों? अभी तो उसकी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई है .
शरद नलिनी के मुख-मंडल पर आते-जाते भावों को भाँप गए थे . उन्होंने नलिनी को अपने पास बैठा कर सब कुछ समझाया कि क्यों वे दोनों बहनों का विवाह एक साथ करना चाहते हैं. नलिनी मौन-मूक हो सब कुछ सुनती रही बिना किसी प्रतिक्रिया के.
वैसे भी शरद के समक्ष कुछ भी कह पाना किसी के लिए भी मुश्किल था. सब कुछ कह कर वे नलिनी के सर पर हाथ फेर कर उठ खड़े हुए और कमरे के बाहर चले गए.शरद के बाहर जाते ही नलिनी दौड़कर सुधा से लिपट गई और फूट-फूट कर रोने लगी .
सुधा की भी आँखे भर आई थीं मगर उसने स्वयं को संभाला और रोती हुई नलिनी को कुर्सी पर बैठाया. नलिनी लगातार रोए जा रही थी .सुधा ने उसके आँसू पोंछे और पानी पिलाया.
नलिनी अब थोड़ी शांत हो गई थी. कुछ देर माँ-बेटी के बीच चुप्पी छाई रही फिर नलिनी ने पूछा -“ माँ ये सब क्या है. आप तो जानती हैं ना कि मैं अपनी PHD की पढ़ाई पूरी करना चाहती हूँ . उसके उपरांत ही सोचूँगी विवाह का.
क्या ये मेरे साथ ग़लत नहीं हो रहा? चुप क्यों हैं आप बोलिए ना?”
सुधा चुप थी , सोच रही थी कि क्या उत्तर दे बेटी के प्रश्नों का. ठीक ही तो कह रही थी नलिनी.उसने कहा” नीलू मैं सब जानती हूँ और तेरे पिताजी भी मगर तू भी ये अच्छी तरह जानती है कि वे तुम दोनों बहनों का भला ही चाहते हैं और उनका निर्णय लोहे की लकीर है. उनको उनके वचन से कोई नहीं डिगा सकता. “
सुबकते हुए नलिनी कह
रही थी “ लेकिन माँ मेरी पढ़ाई का क्या होगा? कौमुदी दीदी की पढ़ाई पूरी हो गई परंतु मेरी नहीं. आप उनका ब्याह कर दीजिए . मुझे अभी पढ़ने दीजिए ना. “
“तेरे पिताजी से कुछ भी कहना व्यर्थ है ,ये तू अच्छी तरह जानती है और तेरे पिताजी ने कहा है कि तू ससुराल में भी अपनी पढ़ाई पूरी कर सकती है.वे मानवेन्द्र जी से बात कर लेंगें इस विषय में. “
सुधा ने आगे कहा “ बेटा अच्छा और ऊँचा घराना है. ऐसे रिश्ते बात-बार नहीं आते.फिर तेरे पिताजी की भी तो नौकरी ही है ना . उन्हें भी तो तुमलोगों की चिंता होती है.वे चाहते हूँ कि समय रहते तुम तीनों बच्चे अपनी गृहस्थी और करियर जमा लो ताकि उनकी भी चिंता मिटे.”
“क्या तुम्हारे पिताजी ने ऐसा सोच कर ग़लत किया? बोलो नीलू..?”
नलिनी चुप थी मगर वो जानती थी कि माता-पिता भी अपनी जगह सही होते हैं और उसने अपनी स्वीकृति दे दी इस विवाह के लिए और सुधा से लिपट कर सुबकने लगी.
सुधा कल की तैयारियों में लग गई. अपनी बहन अनु को उसने फ़ोन करके हाथ बँटाने के लिए बुला लिया. अनु को भी सुन कर थोड़ा गुस्सा आया था शरद जी पर परंतु फिर उसने सुधा को कहा कि वह निश्चिन्त हो जाए. कौमुदी और नलिनी दोनों को तैयार करने की ज़िम्मेदारी उसने ले ली.
शरद ने अपने बेटे ऋतुराज को भी बताया कि मानवेन्द्र जी अपने बेटों के साथ कल आ रहे हैं तो वह भी या समय घर पर रहे. ऋतुराज बहौत प्रसन्न था परंतु उसे एक ज़रूरी मीटिंग के लिए सवेरे ही दिल्ली जाना था. उसने कहा “पिताजी ज़रूरी नहीं होता तो मैं नहीं जाता.”
शरद ने मुस्कुराते हुए कहा “कोई बात नहीं बेटा काम पहले ज़रूरी है बाकी सब बाद में .तुम लौट आओ फिर बात करेंगें.”ऋतुराज ने अपने पिता के चरण छुए और सोने चला गया. दूसरे दिन सवेरे तड़के ही ऋतुराज हवाई-अड्डे के लिए रवाना हो गया .
इधर रात भर नलिनी करवट बदलती रही वहीं कौमुदी को इस उत्सुकता में नींद नहीं आई कि कल क्या होगा? भोर के उजाले के साथ ही सुधा घर के कार्यों और तैयारियों में व्यस्त हो गई . बीच-बीच में बेटियों के कमरों में जलपान पहुँचाने और देखने पहुँच जाती कि अनु उनको कैसे तैयार कर रही है.
ठीक ग्यारह बजे लड़के वाले आ गए. शरद ने उनका स्वागत किया . सुधा ने सबको नमस्कार कर बैठने के लिए कहा. घर पर काम करने वाली सारंध्री सबके लिए ठंडा शरबत ले कर हॉल में दाखिल हुई . सुधा ने सबको अपने हाथों से शरबत परोसा और ग्रहण करने का आग्रह किया.
जेठ की गर्मी वैसे ही झुलसा देती है. ऐसे में ठंडे बेल का शरबत किसी अमृत-रस से कम नहीं लग रहा था. मानवेन्द्र जी ने मुस्कुराते हुए शरबत पी कर ग्लास मेज़ पर रखते हुए कहा-“ भई शरद जी आनंद आ गया शरबत पी कर . भाभीजी के हाथों में तो जादू है. साक्षात अन्नपूर्णा हैं..”
सुन कर शरद मुस्कुराने लगे . अपने दोनों पुत्रों का परिचय मानवेन्द्र जी में पूरे परिवार से करवाया. दोनों ही पुत्र सुंदर.. बांके .. गोरा रंग.. गहरे काले केश और गर्विली मूँछें. बहौत सुंदर व्यक्तित्व था उनका. ऊपर से उच्च-शिक्षित, नख से शिख तक अनुपम व्यक्तित्व के स्वामी.
उनके चेहरे पर बड़े ख़ानदानी राजघरानों-सा तेज था. शरद अपलक निहारते रह गए. सुधा भी उन दोनों राजकुमारों को देख निहाल हुई जा रही थी . सोच रही थी कि वास्तव में शरद जी का निर्णय सही है. उसकी दोनों बच्चियों के तो भाग्य खुल गए हैं कि ऐसे शाही-घराने और शिक्षित सुंदर राजकुमार उन्हें ब्याहने आए हैं.
बरबस ही उसकी आँखों की कोरों में ममता का गंगा-जल भर आया . उसने मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दिया और ख़ुद को संभालते हुए कौमुदी के कमरे की ओर गई जहाँ अनु दोनों बच्चियों को अपने हुनरमंद हाथों से सजा-संवार रही थी. उसके सधे और अनुभवी हाथों ने कौमुदी और नलिनी की सुंदरता को चार-चाँद लगा दिए थे.
सुधा दोनो को मंत्र-मुग्ध सी देखते जा रही थी . बार-बार बलैयाँ ले कर बारी-बारी दोनों का माथा चूम रही थी.
अनु भी पास खड़ी मुस्कुरा रही थी और कहा-“ देख लो दीदी कोई कमी तो नहीं लग रही ना. बता दो अभी ठीक कर दूँगी.”
“अरी नहीं! तूने तो इनके रूप को और भी अनुपम बना दिया है कि चेहरे से नज़र ही नहीं हट रही.”
सुधा ने दोनों बेटियों को गले से लगा कर आशीर्वाद दिया तभी सारंध्री आ गई और कहने लगी -“काका बाबू दीदी रा के डाकछेन “(काका बाबू दीदियों को बुला रहे है )
सुधा ने कहा “हाँ हाँ अभी आती हैं.”
फिर सुधा ने कौमुदी और नलिनी को घर के मंदिर में प्रणाम करने को कहा.तत्पश्चात अनु दोनों को हॉल में ले गई.
हॉल में प्रवेश करते ही दोनों बहनों ने सबको नमस्कार किया.मानवेंद्र जी शरद जी की दोनों बेटियों को देख मुस्कुराए और कहा “आओ ना बेटा ,यहाँ बैठो आप दोनों.”
इधर अमन और कमल की नज़रें भी दोनों बहनों के रूप से हट नहीं रही थी. सौंदर्यस्वामिनी होने के साथ वे दोनों बहौत शालीन भी थीं.कौमुदी और नलिनी धीरे-से अपने पिता के नज़दीक आ कर बैठ गई .
शरद भी अपनी दोनों बेटियों को देख कर बहौत प्रसन्न थे. एक बेटी के पिता के चेहरे पर ये मुस्कान बता रही थी कि उनको कितना गर्व है अपनी दोनों बेटियों पर .
एक बार के लिए सब शांत हो गए थे तभी सुधा की बहन अनु ने चुप्पी तोड़ी और सभी को जलपान करने का अनुरोध किया. मानवेन्द्र जी खाने की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे.
इसी बीच शरद जी ने मानवेन्द्र जी से कहा कि क्यों ना हम बच्चों को बात करने की स्वतंत्रता दें क्यूंकि जीवन तो इनको ही बिताना है साथ. मानवेन्द्र जी ठहाका मार कर हंस पड़े और अपनी सहमति जताते हुए उठ खड़े हुए.
शरद जी मानवेन्द्र जी को ले कर अपनी छत पर चले गए और जाते समय सुधा और अनु को भी वहाँ से जाने का संकेत दे दिया. सुधा जैसे ही जाने लगी नलिनी ने उसका हाथ कस कर पकड़ लिया . सुधा ने आँखों के इशारे से उसे हाथ छोड़ने के लिए कहा परंतु नलिनी नहीं मानी.
कमल ये सब देख कर मुस्कुरा रहा था.उसने सुधा से कहा “ आंटी आप यहीं रुकिए प्लीज़, शायद वो डर रही हैं और uncomfortable महसूस कर रही हैं.”
सुधा कमल की बात सुन कर मुस्कुराने लगी.तभी नलिनी ने तपाक से कहा “ हम नहीं डरते किसी से.”
उसकी बातें सुन कर कमल और सुधा दोनों हँसने लगे.
इधर अमन और कौमुदी बात करते-करते बगीचे में पहुँच गए और एक-दूसरे की पसंद-नापसंद पर चर्चा करने लगे.
कमल ने सज्जनता दिखाते हुए नलिनी को बैठने को कहा.
नलिनी को वहाँ बैठा कर सुधा चली गई. कमल भाँप गया था कि नलिनी नर्वस है इसलिए वह उसे comfortable फील कराने के लिए पहेलियाँ पूछने लगा. पहले कुछ मिनट नलिनी संभल-संभल कर उत्तर दे रही थी परंतु कुछ ही मिनटों में वह कमल के साथ सहज हो कर वार्तालाप करने लगी. हँसने-खिलखिलाने लगी.
फिर दौर शुरू हुआ गीत और कविताओं का.कमल नलिनी की सुंदर रचना के अनुपम भावों में डूबने-उतरने लगा और नलिनी कमल के गायन पर मंत्र-मुग्ध हो गई. ऐसे ही राजकुमार की तो कल्पना किया करती है वो जो उसके प्रतक्ष्य था.वो पलक झपका-झपकाकर उसे निहार रही थी.कमल ने ये देख लिया था और अपनी चोरी पकड़ी जाने पर नलिनी ने अपनी दृष्टि ज़मीन पर गड़ा ली.
ये देख कर कमल हँसने लगा. तभी शरद मानवेन्द्र जी के साथ हॉल में पहुँचे. तब तक अमन और कौमुदी भी वहाँ लौट आए . मानवेन्द्र जी ने चारों को पूछा कि क्या उनको यह रिश्ता पसंद है.चारों ने सहमति में सर हिलाया.
ये देख कर शरद और मानवेन्द्र जी एक-दूसरे के गले लग गए . शरद ने सुधा को आवाज़ लगा कर मिठाई लाने को कहा.
सुधा-अनु और सारंध्री दौड़ी चली आई और चारों की बलैयाँ लेने लगी सुधा. उसी समय रिश्ता पक्का करने के लिए मानवेन्द्र जी ने अपनी जेब से दो हीरे की अंगूठी निकाली और अपने दोनों बेटों की ओर बढ़ा दी.
कमल ने अंगूठी ले ली. अमन ज्यूँ ही अंगूठी पकड़ने लगा तो वो उसके हाथों से छूट कर गिर गई और सरक कर हॉल में रखे बड़े और भारी-भरकम शोकेस (दराज़)के नीचे चली गई.
इतनी ख़ुशी के बीच तनाव की स्थिति बन गई. दराज़ बहौत भारी था. चार आदमी भी मिलकर उसे हिला ना सके.सब सोच रहे थे की क्या किया जाए.तभी नलिनी बगीचे से पेड़ की लंबी टहनी ले कर आई और उसके मुँह पर गोंद लगा कर शोकेस के नीचे उस टहनी को घुमाने लगी. सबकी समझ से बाहर था कि ये लड़की आख़िर इस पतली सी टहनी से इतने बड़े शोकेस के नीचे से छोटी सी अंगूठी कैसे निकाल पायेगी?
नलिनी ने एक छोटा-सा गोल दर्पण ज़मीन पर सुला कर रखा और हॉल में अँधेरा कर दिया . फिर वह झुक कर अँगूठी निकालने लगी . अँधेरे में हीरे की अंगूठी का रिफ्लेक्शन दर्पण पर पड़ा तो नलिनी को समझ आ गया कि अंगूठी इतने बड़े शोकेस के नीचे कहाँ गिरी है.
अंगूठी की पोजीशन मिलते ही नलिनी ने टहनी को वही डाल कर घुमाया और अंगूठी टहनी पर लगे गौंद से चिपक कर बाहर निकल आई .सबने नलिनी की बुद्धिमता की बहौत प्रशंसा की.
मानवेन्द्र जी ने नलिनी और कौमुदी दोनों को खूब आशीर्वाद दिया. नलिनी ने अँगूठी निकाल कर अमन की ओर बढ़ा दी . अमन नलिनी के रूप और बुद्धिमता को देख चकित था. उसने अंगूठी ले ली और दोनों भाइयों ने दोनों बहनों को अंगूठी पहना दी. सगाई का कार्यक्रम बहौत अच्छे से संपन्न हो गया.
सुधा और शरद ने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि उनकी दोनों बेटियों का संबंध इतने अच्छे घराने में हुआ.. मानवेन्द्र जी ने उनको धन्यवाद देते हुए चलने की इच्छा व्यक्त की और अगले रविवार सबको अपने घर आने का न्योता दिया ताकि ब्याह की तिथि और बाक़ी बातें तय कर की जा सके.
सब बाहर की ओर जा रहे थे तभी अमन ने सभी को और फिर नलिनी को अलग से बाय कहा. सभी हँसने लगे कि जीजाजी को अभी से अपनी साली साहिबा की इतनी फ़िक्र होने लगी और सभी ठहाका लगा कर हंस पड़े. नलिनी भी झेंप गई.
कार में सवार होने के बाद कमल नलिनी को देख कर मुस्कुरा रहा था और नलिनी भी उसे देख कर लजा रही थी तभी उसने नोटिस किया कि अमन भी उसे देख कर मुस्कुरा रहा है .. हाथ हिला रहा है..
उसे अजीब लगा क्यूंकि कौमुदी भी वहाँ थी लेकिन अमन उसे नहीं नलिनी को देख कर हाथ हिला रहा था. नलिनी को थोड़ा अटपटा-सा लगा मगर फिर उसने इस बात को इतनी तूल नहीं दी और अमन की तरफ़ हाथ हिला कर मुस्कुरा दिया.
सब चले गए. शरद जी बहौत प्रसन्न थे कि सब कुछ अच्छे से हो गया.अब वे ऋतुराज के आने की भी प्रतीक्षा में थे कि उसे आते ही ये सुखद समाचार सुनाएँगे.कौमुदी और नलिनी भी बहौत थक गए थे तो सुधा ने उन दोनों को जल्दी खाना खा कर सो जाने को कहा.
आज शरद और सुधा की आँखों में नींद नहीं थी. दोनों बातें करते हुए अपने दोनों बेटियों के भावी जीवन की सुखद कल्पना में खोये हुए थे कि तभी उनको एक ज़ोरदार चीख सुनाई दी.
शरद और सुधा ने एक-दूसरे की ओर देखा और अचानक दोनों कुछ समझ कर नलिनी के कमरे की ओर भागे.
कमरे का दरवाज़ा खुला था. अँधेरे में नलिनी ज़ोर-ज़ोर से साँसे लेते हुए एक कोने में दुबकी हुई थी! बदहवास दोनों भागते हुए नलिनी के पास पहुँचे तो नलिनी सुधा से माँ-माँ कहते हुए घबरा कर लिपट गई.शरद जी ने लाइट जलाई तो देखा कि नलिनी पसीने से तर-बतर थी .. उसकी आँखों में डर साफ़ दिख रहा था और वह कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थी.शरद और सुधा उससे लगातार पूछे जा रहे थे कि आख़िर ऐसा क्या हुआ.. वो क्यों चीखी इतनी ज़ोर से.. नलिनी के हाथ-पैर बिलकुल बर्फ पड गए थे और वह सुधा का हाथ नहीं छोड़ रही थी.
आगे क्या हुआ जानें कहानी के दूसरे अंक में
क्रमशः…….
.(अंजू डोकानिया)