एक दिन सब्ज़ी बेचने वाले सोबरन अपने ठेले को धकेलते हुए घर लौट रहे थे। अचानक उन्हें झाड़ियों के पीछे से किसी बच्चे के रोने की आवाज़ आई। वे झाड़ियों के पास गए और देखा कि कूड़े के ढेर पर एक मासूम बच्ची पड़ी थी, जो ज़ोर-ज़ोर से रो रही थी।
उन्होंने इधर-उधर देखा, कुछ देर इंतज़ार किया, पर जब कोई नज़र नहीं आया, तो उन्होंने उस बच्ची को गोद में उठा लिया। वह एक नवजात बालिका थी।
वे उसे घर ले आए और उसे पालने का निश्चय किया। सोबरन ने उस बच्ची का नाम ज्योति रखा। उन्होंने उसे स्कूल भेजा और उसकी हर ज़रूरत पूरी करने की कोशिश की।
भले ही उन्हें कई बार भूखा रहना पड़ता था, पर उन्होंने कभी अपनी बेटी को किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने दी।
साल बीतते गए…
और 2013 में ज्योति ने कंप्यूटर साइंस में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद उसने प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी शुरू कर दी।
2014 में, ज्योति ने असम लोक सेवा आयोग (Assam Public Service Commission) की परीक्षा में शानदार प्रदर्शन किया और सहायक आयकर आयुक्त (Assistant Income Tax Commissioner) के पद पर नियुक्त हुई।
जब सोबरन ने अपनी बेटी को अपने सारे सपने पूरे करते देखा, तो उनकी आंखें खुशी के आंसुओं से भीग गईं।
आज ज्योति अपने पिता की बहुत अच्छी तरह देखभाल करती है और उनकी हर इच्छा पूरी करने का प्रयास करती है।
हालांकि वह अपने पिता से कहती है कि अब उन्हें आराम करना चाहिए, लेकिन सोबरन आज भी अपना सब्ज़ी का ठेला चलाते हैं।
सोबरन कहते हैं —
“मैंने किसी कूड़े के ढेर से बच्ची नहीं उठाई थी, बल्कि कोयले की खान से एक हीरा पाया था, जिसने मेरी ज़िंदगी को दिव्य प्रकाश से भर दिया।”
(संजीव मिश्रा)



