Sushobhit Writes: सुशोभित की कलम से पढ़िये अंतरिक्ष में 900 घंटों की रिसर्च और 62 घंटों की स्पेसवॉक कर चुकीं सुनीता विलियम्स की आज धरती पर वापसी की हो रही है शुरुआत..
सुनीता विलियम्स के घर लौटने की तैयारियाँ हो रही हैं। लेकिन घर क्या है?
यह सवाल पृथ्वी की ग्रैविटी से बँधे हममें से बहुतों के मन में नहीं गूँजता हो, लेकिन सुनीता- जो अब तक अंतरिक्ष में 600 से ज़्यादा दिन बिता चुकी हैं- के लिए यह सवाल नित्यप्रति का पार्श्वसंगीत होगा।
पृथ्वी पर उनका घर टेक्सस के ह्यूस्टन में है, जहाँ उनके पति उनका इंतज़ार कर रहे हैं। उनके कोई बच्चे नहीं हैं, लेकिन उन्हें अपने पालतू जानवरों से बहुत लगाव है।
एक बार उन्होंने अहमदाबाद की एक लड़की को एडाप्ट करने की भी इच्छा जताई थी। लेकिन अंतरिक्ष के निचाट-व्योम में- जहाँ पृथ्वी के नियम, उसके विधान, उसकी आसक्तियाँ, उसकी रूढ़ियाँ सब धुँधला जाती हैं-
सुनीता अकसर सोचती होंगी कि घर कहाँ पर है? क्या इस सृष्टि में मनुष्य की अजनबी आत्मा का कोई घर है भी?
फिलवक़्त तो इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन एक अरसे से सुनीता का अनिच्छुक-आवास बना हुआ है। वे वहाँ तीन बार जा चुकी हैं।
पिछली बार 5 जून को जब उन्होंने पृथ्वी की धूप, हवा, पानी और गुरुत्वाकर्षण को विदा कहकर इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में डेरा डाला, तब वे वहाँ केवल 9 दिनों की मेहमान होने जा रही थीं।
लेकिन विपदाओं के चलते यह प्रवास 9 महीनों से भी अधिक का हो गया है। सुनीता को अब ‘स्ट्रैंडेड-एस्ट्रोनॉट’ की संज्ञा दी जा चुकी है- अंतरिक्ष में विपथगा!
जो व्यक्ति 9 दिनों के लिए घर छोड़कर जाता हो, यह सोचकर कि जल्द ही लौटना होगा, वो अगर 9 माह तक लौट ना सके- अपने गाँव-क़स्बे, देश-दुआरे ही नहीं, पृथ्वी पर भी जिसकी वापसी न हो- जो अंतरिक्ष में तैरते एक कैप्सूल में सिमटा रहता हो बिना यह जाने कि लौटना कब होगा, कभी होगा भी या नहीं-92
उसकी मनोदशा कैसी होती होगी? क्या उसे घर की याद आती होगी, बशर्ते उसे यह पता हो कि घर कहाँ है?
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से सुनीता ने बहुत सारे वीडियो बनाकर जारी किए हैं। वे कौतूहल और आमोद से भरी स्त्री हैं। वे पृथ्वी पर बैठे अपने दर्शकों को आईएसएस का टूर करवाती हैं।
उन्हें बताती हैं कि ज़ीरो-ग्रैविटी में दाँतों को ब्रश कैसे किया जाता है। पानी का बुलबुला जो बोतल खुलते ही निर्वात में उड़ने लगता है, उसे निष्णात कुशलता से गप्प कैसे किया जाए।
अंतरिक्ष में व्यायाम कैसे करते हैं, सोते कहाँ हैं, खाते कैसे हैं। बाज़ दफ़े वे आईएसएस की खिड़की (Cupola) में जाकर बैठ जातीं और अपने साथ दर्शकों को नीचे तैरती हुई वह भीमकाय नीली गेंद दिखलातीं, जिसे हम पृथ्वी कहते हैं।
क्या तब उनके मन में अपने घर के लिए हूक जगती होगी? लेकिन क्या सुनीता पृथ्वी को अपने घर की तरह देखती भी होंगी? क्या वे स्वयं को सही मायनों में कॉस्मोपोलिटन नहीं समझती होंगी- कॉसमॉस की नागरिक- विश्ववासिनी?
गहरी अनासक्ति, विवेक, वैराग्य और स्थितप्रज्ञता के बिना यह सम्भव नहीं। तब अगर आप अपने घर की याद करके विषाद में डूबेंगे तो अंतरिक्ष से पहले अवसाद आपको निगल जाएगा।
यों हम किसी स्थान, परिस्थिति, सम्बंध के गुरुत्वाकर्षण से तभी तक बँधे होते हैं, जब तक कि हमारी उसमें आसक्ति होती है, उसके प्रति हममें ममत्व होता है।
ज्यों उससे छूटे, फिर मनुष्य की आत्मा से बड़ा निर्मोही कोई और नहीं। उस निर्मोह में- कदाचित्- सुख है। किन्तु वैसा सुख नहीं, जिसे हम यहाँ धरती पर जानते, और जिसके लिए विकलते हैं।
अंतरिक्ष में 900 घंटों की रिसर्च और 62 घंटों की स्पेसवॉक कर चुकीं सुनीता आज धरती पर लौटकर आ रही हैं।
किन्तु क्या वे घर भी लौटकर आ रही हैं? घर कहाँ पर है?- जिसके मन में यह प्रश्न एक बार जगा, फिर वह इयत्ता की ग्रैविटी से मुक्त और निर्भार होकर निर्वात में तैरने लगता है- चेतना की तरह, स्मृति और कल्पना की तरह, मृतात्मा की तरह, पार्थिव के बोध से मुक्त हुई सुनीता की कृशगात देह की तरह!
(सुशोभित)