Vande Maataram: हमारे अभिमान की पहचान है ‘वंदे मातरम्’: राष्ट्रीय गीत से जुड़े 5 ज़रूरी तथ्य, जिन्हें हर भारतीय को जानना चाहिए..
भारत में बहुत कम लोग ऐसे होंगे जिन्होंने ‘वंदे मातरम्’ न सुना हो। यह गीत जब भी बजता है, चाहे 15 अगस्त हो या 26 जनवरी, दिल में देशभक्ति की भावना अपने आप जाग उठती है और रोंगटे खड़े हो जाते हैं। लेकिन भारत का यह राष्ट्रीय गीत केवल एक गीत नहीं, बल्कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम की आत्मा है। इसकी रचना, इतिहास और महत्व को जानना हर नागरिक के लिए बेहद आवश्यक है।
आज संसद में भी राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे होने के अवसर पर चर्चा हो रही है। सरकार ने शीतकालीन सत्र के 10 महत्वपूर्ण संसदीय घंटे इस विषय पर विचार-विमर्श के लिए तय किए हैं। सभी लोग इस गीत को सुनते जरूर हैं, लेकिन इससे जुड़े कई ऐसे तथ्य हैं, जिनकी जानकारी बहुत कम लोगों को होती है। आइए जानते हैं ‘वंदे मातरम्’ से जुड़ी वे 5 अहम बातें, जिन्हें हर भारतीय को जानना चाहिए।
इस अमर गीत की रचना किसने की
अधिकांश लोग ‘वंदे मातरम्’ को जानते और गुनगुनाते हैं, लेकिन इसके रचनाकार के बारे में सबको पूरी जानकारी नहीं होती। यह गीत बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखा गया था। खास बात यह है कि इसकी भाषा न पूरी तरह संस्कृत है और न ही केवल बांग्ला, बल्कि यह संस्कृत और बांग्ला के मिश्रण में रचित है।
पहली बार कब और कहां गाया गया
यह जानना भी बेहद दिलचस्प है कि ‘वंदे मातरम्’ पहली बार मंच से कब गूंजा। यह गीत पहली बार साल 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में प्रस्तुत किया गया था। इसे रवीन्द्रनाथ टैगोर ने गाया था, और तभी से यह गीत देशभक्तों की आवाज़ बन गया।
सबसे पहले कब और कहां प्रकाशित हुआ
बहुत कम लोग जानते हैं कि ‘वंदे मातरम्’ सबसे पहले किसी गीत संग्रह में नहीं, बल्कि एक उपन्यास में प्रकाशित हुआ था। यह गीत 1882 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ में पहली बार छपा था।
राष्ट्रीय गीत का दर्जा कब मिला
‘वंदे मातरम्’ लंबे समय से देशभक्ति का प्रतीक रहा, लेकिन इसे आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय गीत का दर्जा कब मिला, यह जानना भी जरूरी है। 24 जनवरी 1950 को, संविधान लागू होने से ठीक पहले, भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय गीत के रूप में मान्यता दी थी।
स्वतंत्रता संग्राम में इसका महत्व
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ‘वंदे मातरम्’ केवल एक गीत नहीं रहा, बल्कि यह राष्ट्रीय नारा बन गया था। ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करते समय यह गीत लोगों को एकजुट करता था और उनमें राष्ट्रवाद और आज़ादी की भावना को मजबूती से जगाता था। यह आज़ादी की लड़ाई की आवाज़ बन चुका था।
वंदे मातरम् को लेकर विवाद
यह भी सच है कि भारत में ‘वंदे मातरम्’ को लेकर लंबे समय से विवाद चलते रहे हैं। मुस्लिम समुदाय के कुछ लोग इसे राष्ट्रीय गीत के रूप में स्वीकार नहीं करते। कई लोग पूरे गीत को गाने से परहेज करते हैं और कुछ लोग ‘वंदे मातरम्’ का नारा लगाने से भी बचते हैं।
गौरतलब है कि 7 नवंबर को ‘वंदे मातरम्’ के 150 वर्ष पूरे हुए, और इस मौके पर केंद्र सरकार के साथ-साथ कई राज्य सरकारों ने देशभर में विविध कार्यक्रमों का आयोजन किया था।
‘वंदे मातरम्’ आज भी देश की आत्मा, इतिहास और गौरव का प्रतीक बना हुआ है, जो हमें अपने संघर्ष, बलिदान और आज़ादी की याद दिलाता है।
(प्रस्तुति -त्रिपाठी पारिजात)



