आजकल इधर सोशल मीडिया पर एक प्रश्नात्मक एजेंडा खूब उछाला जा रहा है.. कि आपको उत्तराखंड में भू कानून चाहिए या समान नागरिक संहिता चाहिए ?
प्रश्न न केवल अनपेक्षित अप्रासंगिक है , बल्कि राजनीतिक स्वार्थ के लिए उत्पन्न की जा रही विभेद कारी मानसिकता की भी उपज है.
दोनों ही क़ानून आवश्यक
उत्तराखंड की परिस्थितियों का अवलोकन करने पर यहां के समाज की और देवतात्मा हिमालय की सुरक्षा के लिए दोनों ही कानून अति आवश्यक हैं, फिर इनमें प्रतिद्वंदिता, या एक के चुनाव का प्रश्न क्यों ?
प्रतिद्वंद्विता की आवश्यकता क्यों पड़ी?
समान नागरिक संहिता लागू हो चुकी है इसलिए ऐसे समय पर यह राजनीति प्रेरित विवाद अनावश्यक है। आपको भू कानून चाहिए तो उस की बात कीजिए,, समान नागरिक संहिता से प्रतिद्वंदिता की जरूरत क्यों पड़ी कहीं इसकी आड़ में दंगात् _अमनी , भाई च् चारा के गुप्त खेल ?.. अस्तित्व बचा रहे इसके लिए दोनों ही कानून आवश्यक हैं ।

डेमोग्राफी बदलने पर अस्तित्व संकट में
वैसे मेरी व्यक्तिगत राय के अनुसार समान नागरिक संहिता पहले आवश्यक है, भू कानून के लाभ तो आप स्वयं जन जागरण से भी प्राप्त कर सकते हैं कौन आपको अपनी जमीन बेचने को बाध्य कर रहा है मत बेचिए !
भू कानून न बन सकने पर आप किंचित हानि में रहेंगे किंतु समान नागरिक संहिता न होने पर डेमोग्राफी बदलने पर अस्तित्व ही संकट में आ जाएगा, न आपकी जमीन बचेगी और न उस पर रहने वालों की वर्तमान संस्कृति.. रहने को तो अफगानिस्तान में भी शिवभक्त गांधार राज के वंशज हैं मगर किस रूप में ?
इतिहास गवाह है
सैकड़ों वर्षों का इतिहास देख लीजिएगा, अफगानिस्तान, पाकिस्तान , कश्मीर के कई क्षेत्र हमारे जैसी ही भौगोलिक स्थिति से मिलते जुलते हैं। सिंधु नदी भी गंगा के समान ही पवित्र मानी जाती थी , आपके हिंगुलाज शक्तिपीठ पर भी कभी चारधाम यात्रा जैसी ही भीड़ रहती थी, उधर आप ऐसी मांग भी नहीं कर सकते हैं ?
किसी भवन में आपका कमरा सुरक्षित रहने के लिए उस नगर मुहल्ले का और उस भवन का सुरक्षित रहना पहले आवश्यक है। कमरे की बाड़ चौकीदारी करें और मुहल्ले को और पूरे मकान को खुला बाड़ा असुरक्षित छोड़ दें इसमें कोई समझदारी नहीं है। घर का आंगन ढहने से घर के कमरे भी सुरक्षित नहीं रह सकते हैं।
तहसील स्तर तक चल रहा है डेमोग्राफी बदलने का खेल
डेमोग्राफी बदलने के खेल तहसील स्तर तक चल रहे हैं, हम सहस्राब्दियों से स्थापित पूजित भगवान शिव को उनके ही परम पवित्र वाराणसी जितने महत्वपूर्ण स्थान पर पूजन करने के अधिकार के लिए अदालतों में चक्कर काट रहे हैं, और वो तो इसी बीच किसी ने श्री बांके बिहारी जी की भूमि भी विधर्मियों को कब्रिस्तान के लिए दे डाली है.
बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगा, यमुना, सरयू ,बागेश्वर , सभी अपने सनातन स्वरूप में बने रहें इस के लिए दोनों ही कानून आवश्यक हैं दोनो की मांग करें , तुलनात्मक भ्रम फैलाने वाले छक्कूलरों के एजेंडे में न फंसें।
(महेश कुरियाल)
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