Parakh Saxena का यह आलेख भूत से वर्तमान और वर्तमान से भविष्य की यात्रा करते हुए बताता है कि अखंड भारत बनने से कोई नहीं रख सकता किन्तु पाक-बांग्ला-अफगानी मुसलमानों का क्या किया जायेगा -यह प्रश्न अभी अनुत्तरित है..
Parakh Saxena writes: अंत में अखंड भारत तो बनेगा ही, पाक, कंग्लादेश & अफगानिस्तान के लोगों का क्या होगा?
Parakh Saxena का यह आलेख भूत से वर्तमान और वर्तमान से भविष्य की यात्रा करते हुए बताता है कि अखंड भारत बनने से कोई नहीं रख सकता किन्तु पाक-बांग्ला-अफगानी मुसलमानों का क्या किया जायेगा -यह प्रश्न अभी अनुत्तरित है..
1937 मे भारत मे आंतरिक चुनाव हुए। कांग्रेस एक अखंड और धर्मनिरपेक्ष भारत का मुद्दा उठा रही थी वही मुस्लिम लीग मुसलमानो के लिये अलग देश मांग रही थी।
कांग्रेस ने मुस्लिम लीग को पटखनी दे दी, मुसलमानों की विशेष सीटों पर भी कांग्रेस ही जीती और ये साफ हो गया कि जिन्ना मुस्लिमो का नेता नहीं है। इस चुनाव के बाद जिन्ना ठंडा पड़ चुका था।
1939 मे द्वितीय विश्वयुद्ध शुरु हुआ, पहले गांधीजी का भारत छोड़ो आंदोलन फिर कांग्रेस का जेल भरो अभियान। इस चक़्कर मे कांग्रेस की आधी लीडरशीप जेल मे बैठी थी। मुस्लिम लीग ने मौके का फायदा उठाया और मुसलमानों को उकसाना शुरू किया।
जवाब मे हिन्दू महासभा के सावरकर जी ने हिन्दुराष्ट्र की बात छेड़ दी। सावरकर चाहते थे कि अंग्रेजो के रहते हिन्दू हथियार चलाने सीख ले क्योंकि मुसलमान तो भारत को बांटकर रहेंगे, ऊपर से कांग्रेस के सेक्युलर नेता जेल मे बंद थे।
1946 मे फिर से चुनाव हुए मगर इस बार कांग्रेस मुस्लिम इलाको मे कमजोर पड़ गयी और मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम लीग 90% से ज्यादा सीटें जीती, इसी के साथ अब ये साफ हो गया कि जिन्ना ही मुसलमानो का नेता है।
ब्रिटेन मे भी चुनाव हुए, विन्सटन चर्चिल को हराकर क्लिमेंट एटली अगले प्रधानमंत्री बने, इंग्लैंड के राजा जॉर्ज छठ भारत के विभाजन के खिलाफ थे। ऐसे मे एटली एक नया प्लान पेश करते है।
इस प्लान के हिसाब से भारत का बंटवारा नहीं होगा मगर उसके तीन प्रान्त बनेंगे। पंजाब, सिंध और बंगाल पर मुस्लिम लीग शासन करेंगी और शेष हिस्से पर कांग्रेस। केंद्रीय नेतृत्व भी कांग्रेस को मिला।
लेकिन इन प्रांतो के पास स्वायत्ता थी, और ये भी प्रावधान था कि मान लो कल को गुजरात मुस्लिम लीग के प्रांत मे आना चाहे तो आ सकता था। पटेल नेहरू को समझाते है कि ये प्रस्ताव मान लो एक बार सत्ता हाथ मे आयी तो ये प्रांत वाला सिस्टम ही खत्म कर देंगे।
लेकिन नेहरू और मौलाना आज़ाद का मानना था कि शक्ति केंद्र के पास कम है और जिन्ना ये प्रस्ताव मान लेगा साथ ही कोशिश करेगा कि अपना क्षेत्र बढ़ाकर पूरे भारत पर ही कब्जा कर ले। यहाँ नेहरू और मौलाना आज़ाद की बात सही सिद्ध होती है।
जिन्ना बिल्कुल यही सोच रहा था, जिन्ना को बस सत्ता की भूख थी और इसके लिये वो तब का केजरीवाल बनने को तैयार था। इसलिए फिर पटेल भी ये प्रस्ताव अस्वीकार कर देते है।
गुस्साया जिन्ना डायरेक्ट एक्शन डे की घोषणा करता है और 16 अगस्त 1946 को कोलकाता मे हिन्दुओ का कत्लेआम शुरू हो जाता है और यहाँ सावरकर जी की शस्त्र सीखने की सलाह काम आती है।
पहले हिन्दू बेकफुट पर थे मगर फिर मुसलमानो का नरसंहार हुआ। हालांकि इसमें जिन्ना का एजेंडा सही हो गया वो मुसलमानो मे जो डर पैदा करना चाहता था वो पैदा कर दिया।
उसके बाद तो हर रोज कही ना कही दंगे होने लगे और आख़िरकार नेहरू, पटेल तथा गाँधी को अपनी राय बदलकर विभाजन की शर्त ही माननी पड़ी क्योंकि दंगे पूरे देश मे भड़क रहे थे। सावरकर विभाजन के खिलाफ थे लेकिन दूसरी तरफ हिन्दुओ को हिंसा के लिये तैयार रहने को कह रहे थे।
लंदन मे राजा जॉर्ज भारत मे हो रहे खून खराबे को लेकर चिंता मे थे। वो लॉर्ड माउंटबेटन को भारत का वायसराय बना देते है, अंग्रेज भी मुस्लिम लीग से चिढ चुके थे क्योंकि दंगों की वजह से शासन व्यवस्था बिगड रही थी और अंग्रेज जिन्ना की भूख समझ रहे थे।
माउंटबेटन की योजना यह थी कि बंटवारे मे ज्यादातर इलाका कांग्रेस के पास जाए, इसलिए पाकिस्तान का क्षेत्र पूरे भारत के बजाय सिर्फ पंजाब, सिंध और बंगाल मे तय हुआ। जिन्ना फिर चिढ गया क्योंकि उसकी नजर आज के केरल, गुजरात, उत्तरप्रदेश और कश्मीर पर भी थी।
लेकिन माउंटबेटन एक नहीं सुनते और आजादी से कुछ दिन पहले ही रेड्क्लीफ आबादी के हिसाब से हिस्से बांट देते है और दोबारा खून खराबा होता है क्योंकि पंजाब और बंगाल के कई गाँवों मे लोगो को पता भी नहीं था कि वे भारत मे है या पाकिस्तान मे, आखिर 17 अगस्त 1947 तक चीजें थोड़ी शांत हुई।
जब बंटवारा हुआ तो 40 करोड़ की नकदी पाकिस्तान को मिलनी थी। नेहरूजी ने सिर्फ 10 करोड़ दी और बाकि की रोक दी। गाँधी जी धरने पर बैठ गए तो 10 करोड़ और दे दी। गाँधी जी फिर अड़ गए तो नाथूराम गोडसे ने उन्हें मार दिया।
वही जिन्ना ने जिस सत्ता के लिये इतना खून मचाया वो उसे एक साल ही नसीब हुई और 1948 मे वो भी मर गया। जिन्ना के मरते ही मुस्लिम लीग कमजोर हो गयी और पाकिस्तान सेना के हाथ मे जाकर आज तक बर्बाद ही है।
यहाँ भारत मे अलग ही राजनीति शुरू हो गयी नेहरूजी ने पाकिस्तान देखकर भी सेक्युलरिज्म की नीति नहीं त्यागी। जिस वज़ह से भारत मे लोग आज भी कंफ्यूज है।
1946 से पहले नेहरू जी खुद बंटवारे के खिलाफ थे, मुस्लिम लीग को काउंटर करने के लिये सेक्युलरिज्म को हावी रखना उनकी नीति कहो या मज़बूरी मगर परिस्थिति के हिसाब से जो था अच्छा था।
नेहरू का दोष ये हुआ कि वे 1947 के बाद भी सेक्युलर बने रहे, क्योंकि बंटवारा जिस अखंड देश का हुआ वो मुसलमानो का नहीं हिन्दुओ का देश था। इसी वज़ह से हिंदुत्व का पॉवर वेक्यूम बना और नेहरू जी का विरोध भी जायज हो गया।
वही जो सावरकर 1947 से पहले विलेन लग रहे थे, उन पर सांप्रदायिकता और अंग्रेजो से मिलने के आरोप लगे। मगर ज़ब हिन्दू भारत की लड़ाई जीता तो उसकी पगड़ी सावरकर के सिर ही बँधी।
सावरकर सही थे हिन्दुओ को हथियार सीखना काम आया। नेहरू भी सही थे यदि मुसलमान बहकावे मे ना आते, अखंड भारत बना रहता तो उनके ज्यादा हित मे होता।
लेकिन जब मुसलमानो ने पाकिस्तान बना लिया तो भारत हिन्दुराष्ट्र क्यों नहीं है? नेहरू के इसी वेक्यूम को बीजेपी ने भरा और आज कांग्रेस को लंगड़ी लगा कर खुद सत्ता के शिखर पर बैठी है।
जिन्ना की सत्ता की भूख आज 53 करोड़ पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुसलमानो को बर्बाद कर चुकी है। भारत के मुसलमानो के लिये ये एक सबक है। वही कांग्रेस आज सत्ता के लिये करो या मरो वाला संघर्ष कर रही है।
इस बंटवारे की कहानी को आप किसी भी एंगल से देखने का आंकलन करो, अंत यही है कि अखंड भारत तो बनना ही है अब बस उसमे पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुसलमानो को लेना है या नहीं, हाँ तो कैसे नहीं तो कैसे, वही विवाद शेष है।
(परख सक्सेना)