Wednesday, October 22, 2025
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Parakh Saxena writes: मुर्शिदाबाद है गंदी मिसाल – और प्रदेश है पश्चिम बंगाल

Parakh Saxena की कलम से पढ़िये ज़ब बात बंगाल की आती है तो कलम स्वतः नस्लभेदी हो जाती है, मुर्शिदाबाद तो क्या बंगाल मे कही भी हुए नरसंहार से ना तो कोई हमदर्दी है ना ही उसके लिये दुख है..

Parakh Saxena की कलम से पढ़िये ज़ब बात बंगाल की आती है तो कलम स्वतः नस्लभेदी हो जाती है, मुर्शिदाबाद तो क्या बंगाल मे कही भी हुए नरसंहार से न तो कोई हमदर्दी है न ही उसके लिये दुख है..
बीजेपी की मज़बूरी है उसे देश जोड़े रखना है इसलिए बंगाल के लिये आवाज़ उठाती रहती है मगर व्यक्तिगत स्तर पर यही कहूंगा कि ये कौम कल मिटती हो तो आज मिट जाए फिर चाहे किसी भी धर्म की क्यों ना हो।
बंगालियो के लिये बीजेपी और संघ की मेहनत समझ से ही परे है, इनके लिये विंस्टन चर्चिल पहले ही बोल चुका है कि चूहों की तरह जियेंगे तो वैसे ही मौत मरेंगे भी।
जिस मुर्शिदाबाद के लिये गैर बंगाली रो रहे है वहाँ 70% हिन्दू है, लेकिन लोकसभा चुनाव मे ममता बनर्जी को 45% और ऊपर से कम्युनिस्टो को 34% वोट मिले है। अब आप बताइये मरेंगे नहीं तो क्या होगा?
तर्क दिया जाता है कि ममता बनर्जी के गुंडे हिंसा करते है तो भाई आप तो स्वघोषित क्रांतिकारी हो। एक घमंड है बंगाल का साहित्य, संस्कृति और इतिहास का। उस समय सब कहाँ चला जाता है। माना ममता बनर्जी के गुंडे हिंसा करते है लेकिन लालू की तरह बूथ तो नहीं लूट सकते।
मुर्शिदाबाद मे बीजेपी का वोट प्रतिशत 12% है क्या ये कही से भी जायज है? बंगाली हिन्दू वास्तव मे एक कायर और बुजदिल कौम है, इसका सफाया कल होता हो तो आज हो जाए।
अभी कैमरे के सामने आकर बंगाली महिलाये रो रही है लेकिन चुनाव मे यही महिलाये 500 रूपये मे ममता बनर्जी को वोट करेंगी। इसलिए ये जो गैर बंगाली बेकार मे अपना सिर पीट रहे है, आप भले ही मत पीटो।
बीजेपी को समर्थन कर रहे हो उसे लाभ पहुँचाना है तो प्रयत्न कर लो मगर जो बीजेपी के ही विरोधी है वे दुखी ना हो। बंगाली समाज इसी का हकदार है, ये ममता बनर्जी का बंगाल है इसे सुभाष चंद्र बोस से कंफ्यूज करने का कोई कारण नहीं है।
पुनरावृति करूँगा कि कल मिटते हो तो आज मिट जाए, 500 रुपये मे अपना देश और अपनी संस्कृति ममता बनर्जी को बेचने वाली कौम है ये। 25 साल कम्युनिस्टो की गुलामी की, 15 साल ममता के जूते खाये मगर आज भी रस्सी का बल कायम है।
ऊपर से घमंड से कहते है कि सबसे ज्यादा नोबल पुरुस्कार हमने जीते। वास्तव मे बांग्लादेशी मुसलमानो ने महज चाक़ू चलाकर इन पर रहम ही खाया है।
ये बहुत अधिक नस्लभेदी लेख हो गया है, बंगालियों से कोई क्षमा याचना नहीं मगर जिन गैर बंगालियों की भावनाये आहत हुई हो उनसे क्षमा चाहूंगा। मगर असम, झारखंड और छत्तीसगढ़ के हिन्दुओ से अनुरोध करूँगा कि ये जो बंगालियों का पलायन आपके यहाँ हो रहा है इस फंगस को पालने की गलती मत करना।
ये आपके क्षेत्रो मे सिर्फ कम्युनिस्टो और ममता बनर्जीयों को पैदा करेंगे।
(परख सक्सेना)
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