UNSC की अस्थायी अध्यक्षता मिली है पाकिस्तान को..इसे कहते हैं अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की कुटिल चालें..
हाल ही में पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की अस्थाई अध्यक्षता मिली है। सवाल उठता है कि जिस देश पर आतंकवाद को बढ़ावा देने जैसे गंभीर आरोप हैं, उसे इतनी जिम्मेदारी कैसे मिल गई? क्या पाकिस्तान इस पद का फायदा उठाकर कुछ कूटनीतिक चालें चल सकता है?
क्या है UNSC?
UNSC यानी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, दुनिया का सबसे ताकतवर अंतरराष्ट्रीय मंच है जो वैश्विक शांति और सुरक्षा बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। इसमें कुल 15 सदस्य होते हैं — पाँच स्थाई (अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, ब्रिटेन) और दस अस्थाई, जो हर दो साल में बदलते हैं।
अध्यक्षता रोटेशन के आधार पर हर सदस्य देश को मिलती है, एक महीने के लिए। इस बार जुलाई में पाकिस्तान की बारी आई है।
अध्यक्ष देश की जिम्मेदारियाँ
बैठक का एजेंडा तय करना
चर्चा के विषय निर्धारित करना
आपात बैठक बुलाना
मीडिया को जानकारी देना
प्रेसिडेंशियल बयान जारी करना
हालांकि, अध्यक्ष के पास निर्णय लेने की शक्ति नहीं होती। असली निर्णय स्थाई सदस्य लेते हैं, जिनके पास वीटो का अधिकार होता है।
आतंकवाद के आरोपों के बावजूद अध्यक्षता?
तकनीकी रूप से, हां। जब तक कोई देश UNSC का सदस्य है, उसे अध्यक्षता मिलेगी, चाहे उस पर आरोप हों या न हों। यह एक तय प्रक्रिया है, वोटिंग से नहीं होती।
पाकिस्तान क्या फायदा उठा सकता है?
फैसले तो अकेले नहीं ले सकता, लेकिन एजेंडा तय करना उसके हाथ में है। पाकिस्तान के राजदूत ने कश्मीर पर चर्चा की बात भी शुरू कर दी है — जो भारत-पाक का द्विपक्षीय मामला है। वह ऐसे मुद्दों को तवज्जो दे सकता है जो उसे सूट करते हैं, जैसे सिंधु जल संधि का मामला।
मीडिया भी अध्यक्ष देश की बात को प्रमुखता देता है, ऐसे में पाकिस्तान खुद को शांति-प्रिय या पीड़ित दिखाने की कोशिश कर सकता है।
भारत को क्या चिंता होनी चाहिए?
हालांकि पाकिस्तान एजेंडा को मोड़ सकता है, लेकिन असली ताकत स्थाई सदस्यों के पास है। रूस, अमेरिका, जापान और काफी हद तक ब्रिटेन भारत के साथ खड़े रहते हैं। चीन जरूर पाकिस्तान के साथ है, लेकिन फिलहाल घरेलू मुद्दों में उलझा हुआ है और कश्मीर पर भी शांत है।
इसलिए, पाकिस्तान को भले ही मंच मिल गया हो, उससे भारत की स्थिति पर गहरी असर पड़ने की संभावना कम है।
(प्रस्तुति -त्रिपाठी सुमन पारिजात)