Friday, August 8, 2025
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Dr Vivek Arya writes: ये है भारत में मजार जिहाद की उत्तराखंडी झलक

किस साजिश के अन्तर्गत उत्तराखंड के विशेषकर तराई और भाबर क्षेत्र के जंगलों में विगत 10-15 सालों से निर्बाध रूप से मजारें, मकबरे व दरगाहें बनाकर घुसपैठ कर रहे हैं।
क्या यह बंग्लादेश देश के एक वहाबी प्रोफेसर जहांगीर खां का सपना पूर्ति के लिए हो रहा है?, जिन्होंने “बंग्लादेश, पाकिस्तान, काश्मीर तथा पश्चिमी बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, व हरियाणा के कुछ मुस्लिम बहुल भागों को मिलाकर मुगलिस्तान नामक इस्लामी राष्ट्र बनाने का सपना संजोया है।” (मुसलमान रिसर्च इंस्टीट्यूट, जहांगीर नगर, बंग्लादेश, 2000)
मामला वाट्सएप, फेसबुक व मीडिया में उछलने के बाद वन विभाग, मुख्यालय ने इसकी जांच कराने का फैसला लिया है। वन विभाग के प्रमुख विनोद कुमार सिंघल के अनुसार वन क्षेत्रों में ये स्थल कब-कब कुकरमुत्तों की तरह उगें?, क्या वन-भूमि लीज या अवैध रूप से बिंदुओं पर प्रभागों व संरक्षित क्षेत्रों के निदेशकों से रिपोर्ट मांगी जा रही है।
जंगलों में केवल आरक्षित वन क्षेत्रों, बल्कि राजाजी से लेकर कार्बेट टाइगर रिजर्व तक के सबसे सुरक्षित कहे जाने वाले कोर जोन तक में ऐसे स्थलों में कब्जे आदि पनपे हैं। राजाजी टाइगर रिजर्व के मोतीचूर, श्यामपुर, धौलखंड और कार्बेट टाइगर रिजर्व के कालागढ़, बिजरानी जैसे दूसरे क्षेत्र भी इसकी चपेट में हैं।
कई ऐसे कब्जा-स्थलों के बोर्ड सड़क अथवा पैदल मार्गों पर देखे जा सकते हैं। ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जंगल के जिन क्षेत्रों में आमजन को आने-जाने की मनाही है, वहां ये स्थल कैसे स्थापित हो गए? इससे विभाग की कार्यशैली पर भी प्रश्नचिह्न लग रहे हैं।
आशंका जताई जा रही है कि उत्तर भारत में मुगलिस्तान साम्राज्य स्थापन की योजना में एकमात्र बाधक उत्तराखंड के जंगल में ऐसे स्थल बनाकर क्षेत्र का इस्लामीकरण का मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है। इन मजहबी आयोजन की आड़ में कौन-कौन आतंकी आ-जा रहा है, इसका कोई ब्योरा नहीं है। इस सबके चलते वन विभाग की नींद उड़ी है।
इसके अलावा तब्लीगी जमातों के आवागन, कट्टरपंथी मजहबी आयोजन व विचारधारा के प्रसार-प्रचार, तेज रोशनी व ध्वनि प्रदूषण से वन्यजीवन में खलल व उनके भोज्यपदार्थों के उपयोग से उनकी संख्या का हास्र भी हो रहा है। वन विभाग की दलील के अनुसार कुछ मजहबी स्थल वन अधिनियम -1980 के अस्तित्व में आने से पूर्व के हो सकें हैं, पर जंगलों में बड़ी संख्या में ऐसे उद्गमस्थल अस्तित्व में आने को विभाग स्वीकार कर रहा, लेकिन ये कैसे हुआ, इसका कोई जवाब किसी के पास नहीं है?
उत्तराखंड के जंगलों में सैकड़ों मजारे, दरगाहें बनने की खबरों के बीच अब कई गांव, कस्बों में कबाड़ियों, फेरी आदि के बिना सत्यापन के आने पर लोगों में रोष पनप रहा है।
अल्मोड़ा जिले के मानिला क्षेत्र के दुनैणा गांव में एक चार मिनारा जियारत-स्थल बना दिया गया है। खास बात यह है कि मानिला मंदिर शक्तिपीठ के निकट इसे बनाया गया है। बनाने वाले और कोई नहीं घुसपैठिए मजदूर हैं, जो कुछ बरसों पहले यहां आये और स्थानीय लोगों के साथ घुलमिल गए। इस मजार का वीडियो भी गांव वालों ने वायरल किया है।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में कालागढ़ से लेकर रामनगर के मध्य स्थित मजारों के अलावा सात या आठ मजार कालू सैय्यद बाबा के नाम से हैं। घने संरक्षित जंगल में ये मजारे किसने और कब बना दी?
कॉर्बेट के जंगल में शोध करने वाले डॉ शाह बिलाल बताते हैं कि माना कि कोई एक मजार कथित पीर-पैगम्बर की होगी, तो बाकी स्थानों पर क्या गधे, खच्चर व कुत्तों की मजारे हैं? ऐसी ही एक शिक्षाप्रद गधे व धोबी की कहानी 70 के दशक में स्कूलों में पढ़ाई जाती थी, जो शिक्षा में इस्लामी करण के चलते विस्मृत कर दी गई। ताकि मूर्ख व अज्ञानी हिन्दू अपने पूर्वजों के हत्यारे-ब्लात्कारी की कब्रों पर जाकर मत्था टेके और क्षेत्र के इस्लामी करण में योगदान दे।
श्री बिलाल बताते हैं कि जिन वाइल्डलाइफ सेंचुरी या टाइगर रिजर्व में इंसानों का जाना मुश्किल होता है, वहां आपको मजार दिख जाएगी, जबकि इनका जंगल के अभिलेखों में कहीं जिक्र नहीं है।
जानकारी के मुताबिक उत्तराखंड में नदियों किनारे वन भूमि पर खनन होता है। हजारों की संख्या में मजदूर यहां आकर झोपड़ियां डाल कर बसते जा रहे हैं और इनमें ज्यादातर रोहिंग्या और बांग्लादेशी होने की बात कही जा रही है।
उल्लेखनीय है कि नदी किनारे डेरा डाले इन घुसपैठिए मजदूरों की बस्तियों के बीच में दो से तीन मजारें अवश्य मिल जाएंगी। रामनगर, हल्द्वानी, बाजपुर, हरिद्वार, टनकपुर आदि क्षेत्रों में कम से कम दो लाख घुसपैठिए के पास न आधार कार्ड है, न ही कोई अन्य पहचान पत्र। इनमें ज्यादातर रोहिंग्या और बांग्लादेशी हैं, जो भाषा बोली से स्वमेव स्पष्ट है।
कई गांवों के बाहर स्थानीय लोगों ने बोर्ड लगा दिए हैं कि कबाड़ी, फेरी वाले बिना ग्राम प्रधान की अनुमति के क्षेत्र में प्रवेश नहीं करेंगे। कुछ गांवों से ऐसे भी वीडियो सामने आए हैं, जिसमें स्थानीय गांववासी कबाड़ियों और फेरी वालों से उनके सत्यापन-पत्र मांगते देखे जा रहे हैं। जिन्हें वो नहीं दिखा पा रहे हैं और वे लोगों के गुस्से का शिकार हो रहे हैं।
उत्तराखंड में बढ़ती मुस्लिम आबादी और रोहिंग्या, बांग्लादेशी घुसपैठियों की खबरों पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पुलिस-प्रशासन को बाहरी लोगों के सत्यापन करने को कहा था। इस बारे में डीजीपी अशोक कुमार ने बताया है कि करीब 48,000 लोगों का सत्यापन हुआ है, जिनमें से 1700 से ज्यादा लोगों के चालान किये गए हैं। इसमें किरायेदार, फेरी वाले और मजदूर हैं।
(डॉक्टर विवेक आर्य)
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