Hindu: “वैचारिक दोहरापन और लिजलिजापन” है हिन्दू रणनीतिक समझ की पहली विफलता..
किसी किशोर, तरुण या युवा को सबसे अधिक अपील क्या चीज़ करती है- “विचारधारा या विचार के प्रति किसी की जबरदस्त निष्ठा और हर हाल में उस पर कायम रखने की उसकी प्रतिबद्धता”
बहुत पहले दूरदर्शन पर सीरियल आता था, मशहूर अभिनेता विजय राज उसमें एक कॉलेज स्टूडेंट की भूमिका में थे, विद्रोही से युवक, जिसको सिस्टम से चिढ़ है, जिसको करप्शन से चिढ़ है टाइप। माने इतना कि वो युवक बाद में लगभग नक्सली होकर विक्षिप्त हो गया था।
लेकिन, उसके इसी वैचारिक निष्ठा और डायलॉग डिलीवरी ने उसके प्रति उस लड़की को दीवाना बना दिया जो उस कॉलेज की सबसे ब्रिलियंट स्टूडेंट थी। जब तो करप्ट सिस्टम पर लेक्चर देता था, तो वो लड़की उसे चाहत भरी नजरों से देखती थी, जब वो तर्क करता था तो उस लड़की का दिल होता था कि सबसे सामने उसे गले लगा ले या चूम ले।
विजय राज की शख्सियत उस सीरियल में जो दिखाया था, वो था बिल्कुल सामान्य शक्लो-सूरत के एक गरीब लड़के की, जिसको शर्ट भी ठीक से पहनने नहीं आता, न परफ्यूम, न पॉलिश्ड जूते और न शानदार हेयर स्टाइल, रहता भी किसी सस्ते से हॉस्टल में था, पर लड़की का दिल जीत गया – “उसकी वैचारिक प्रबुद्धता और स्पष्टता ने, तर्क करने की उसकी क्षमता ने”
उस प्रखर लड़की को इस बात में कोई भी…कोई भी दिलचस्पी नहीं थी कि ये युवक जिस विचार की पैरवी कर रहा है, वो अंततः राजद्रोह का है, उसे इस बात की भी फ़िक्र नहीं थी कि ऐसे शख्स के साथ जो सिस्टम का विद्रोही है, उसका भविष्य खराब हो जायेगा, वो मंत्रमुग्ध थी तो बस उसकी वैचारिक स्पष्टता से, उसके तर्कों से।
एक आयु में सबका, विशेषकर लड़कियों का कोमल मन यही स्पष्टता चाहता है, यही बौद्धिक प्रबुद्घता चाहता है, यही कन्विंसिंग आंसर चाहता है, मुग्ध कर देने वाले आर्गुमेंट चाहता है और जो ऐसा करने या देने में सक्षम है, वो उसकी ओर चली जाती है।
इसलिए कोई हैरत नहीं है कि अधिसंख्यक बहुसंख्यक बच्चियां आज वामपंथी छात्र यूनियनों की पोस्टर गर्ल हैं और उमर खालिदों और शरजील इमामों के साथ देश तोड़ने का नारा लगाती है।
गुरमेहर कौर याद है?
पिता कारगिल के बलिदानी थे पर कॉलेज में वो जिस सोहबत में गई, वहां उसको ऐसे ही स्पष्ट आर्गुमेंट देने वाले, उसकी थॉट प्रोसेस को पूरी तरह बदल देने वाले लड़के मिले और अंततः उसने क्या बयान दिया-
“Pakistan did not kill my father, war killed him.”
तुम जब वैचारिक रूप से अस्पष्ट और लिजलिजे बनकर चलते हो तो अपनी प्रासंगिकता वहीं खो देते हो और किसी और का ब्रेनवाश तो दूर, अपनों की वैचारिकता में भी घुन लगा देते हो। गुरमेहर नाम की जिस लड़की को प्रखर राष्ट्रभक्ति की धारा बहानी थी, वो उसी के विरोध में चली गई।
ये थी तुम्हारी विफलता….. लिजलिजापन… पराजय!
सत्ता में न रहने के दौरान के आपके बौद्धिक भाषण, लेख, पुस्तकें और सत्ता में आने के बाद के आपके कृत्य और अपने उन्हीं विचारों से विपरीत जब आप जाते हो, तो आप उस बड़े वर्ग को खो देते हो, जिसको बौद्धिक, तार्किक और वैचारिक स्पष्टता पसंद है। अपने को तो खैर असहज करते ही हो।
“वैचारिक दोहरापन और लिजलिजापन” है हिन्दू रणनीतिक समझ की पहली विफलता।