Tuesday, October 21, 2025
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Story: पापा, आपको जो रिटायरमेंट पर 80 लाख मिले हैं उनमें से आधे मुझे दे दीजिए

Story: रिश्तों की कीमत पैसों से नहीं तोली जा सकती। माँ-बाप ने पूरी उम्र बच्चों के लिए जीते हैं लेकिन बुढ़ापे में अगर बच्चे केवल पैसा माँगें, तो वो सबसे बड़ा धोखा होता है..

Story: रिश्तों की कीमत पैसों से नहीं तोली जा सकती। माँ-बाप ने पूरी उम्र बच्चों के लिए जीते हैं लेकिन बुढ़ापे में अगर बच्चे केवल पैसा माँगें, तो वो सबसे बड़ा धोखा होता है..

 

महेश अपने पिता के पास बैठा था। रिटायरमेंट की मिठाई खाते हुए वो बोला, “पापा, आपको जो रिटायरमेंट पर 80 लाख रुपये मिले हैं, उनमें से आधे मुझे दे दीजिए।” पिता शांत थे, उन्होंने बेटे के चेहरे को ध्यान से देखा.

कुछ क्षणों के बाद पापा ने पूछा, “क्या करोगे इन पैसों का, बेटा?” महेश बिना हिचकिचाहट बोला, “एक गाड़ी लेनी है और बाकी पैसों से आपकी बहू को गहने दिलवाने हैं। वो काफी समय से कह रही थी कि उसे शादी के बाद से कभी ढंग का सोना नहीं मिला।”

पापा थोड़ी देर चुप रहे, फिर बोले, “तुम्हारे पास तो अच्छी नौकरी है, EMI पर ले सकते हो। रिटायरमेंट का पैसा मैंने पूरी उम्र की मेहनत से जोड़ा है, अभी मुझे और तुम्हारी माँ को जिंदगी जीनी है।”

महेश की आंखों में हल्का गुस्सा था, “मतलब आपने तो रिटायर हो लिया, अब खर्चे भी कम होंगे, तो पैसे का क्या करोगे? हम ही तो आपके बाद के वारिस हैं।” पापा फिर भी शांत थे। माँ वहीं रसोई में खड़ी थी, उसकी आंखें भर आई थीं। माँ जानती थी कि आज जिस बेटे के लिए उन्होंने न जाने क्या-क्या त्याग किए, वही अब पैसों की गिनती कर रहा है।

पापा ने धीरे से कहा, “महेश, क्या तुमने कभी सोचा है कि इस उम्र में जब हमें सहारे की जरूरत होती है, तब हमें सिर्फ पैसों के तौर पर देखा जाए? क्या ये रिश्ता इतना सस्ता है?”

महेश ने बात पलटने की कोशिश की, “नहीं पापा, मेरा वो मतलब नहीं था, मैं तो बस सोच रहा था कि बहू को कुछ दिला दूं।” तभी घर में छोटे बेटे मुकेश की एंट्री हुई, उसने आते ही कहा, “पापा, मैंने आज जॉब इंटरव्यू क्लियर कर लिया है।” पापा के चेहरे पर मुस्कान आ गई, “शाबाश बेटा, क्या पैकेज मिला?” “पांच लाख सालाना से शुरुआत है पापा, और कंपनी ने फ्लैट देने का भी वादा किया है,”

मुकेश खुश था। महेश चिढ़ गया, “छोटे भाई को देखिए, अभी कुछ कमाने लगा नहीं और खुद को हीरो समझ रहा है। और आप हैं कि इसे सर पर चढ़ा रहे हैं।”

पापा की आवाज थोड़ी सख्त हुई, “क्यों नहीं चढ़ाऊँ? ये कभी मुझसे पैसे नहीं मांगता, बल्कि कहता है पापा आप आराम करो, मैं कमा लूंगा। और तुम? तुम तो हर बार कुछ न कुछ मांगते हो, कभी गाड़ी, कभी गहने, कभी विदेश यात्रा।”

बहू वहीं पास में आ गई, “पापा जी, आप गलत समझ रहे हैं, महेश तो बस मेरी खुशी के लिए…” पापा ने हाथ उठाया, “बिल्कुल नहीं बहू, मैं सब समझता हूँ। खुशी देने के लिए सिर्फ गहने और गाड़ी जरूरी नहीं होते। एक वृद्ध माँ-बाप की इज्जत भी एक बड़ी खुशी होती है।”

घर में सन्नाटा छा गया। महेश को जैसे अपनी गलती का एहसास हुआ, लेकिन अहंकार ने उसे बोलने नहीं दिया। माँ ने धीरे से कहा, “बेटा, हमने तुम्हारे लिए हमेशा अच्छा चाहा। कभी ये नहीं सोचा कि बदले में कुछ चाहिए, लेकिन आज जब तुमने 40 लाख की मांग की, तो दिल टूट गया।”

महेश ने सिर झुका लिया। अगले दिन पापा ने अपने बैंक मैनेजर को बुलाया और कह दिया, “मेरे रिटायरमेंट फंड को FD कर दीजिए, और एक संयुक्त अकाउंट खोलिए मेरे और मेरी पत्नी के नाम पर, ताकि कोई भी बिना हमारी अनुमति के पैसे न निकाल सके।”

महेश ने सुन लिया था। वो कुछ बोल नहीं पाया। लेकिन बहू के चेहरे पर एक अलग ही रंग था — जैसे उसे उम्मीद थी कि शायद बूढ़े माँ-बाप इतने सख्त नहीं होंगे, लेकिन इस बार कहानी बदल चुकी थी।

अगले कुछ हफ्तों में महेश और उसकी पत्नी धीरे-धीरे दूरी बनाने लगे। वो अब पापा से ज्यादा बातें नहीं करते थे। माँ हर दिन मंदिर जाती, लेकिन अब उसके चेहरे पर वो रौनक नहीं रही। एक दिन मुकेश ने कहा, “पापा, आप मेरे साथ कुछ दिन शहर चलिए, माँ को भी घुमा लाऊँगा।”

पापा ने माँ की तरफ देखा और दोनों मुस्कुरा दिए। कुछ दिन के लिए वे बाहर चले गए। जब लौटे तो घर की दीवारों पर सन्नाटा था। महेश और उसकी पत्नी ने अपने कमरे का सामान समेट लिया था। उन्होंने किराए का फ्लैट ले लिया था, ताकि अब उन्हें अपने हिस्से के पैसों का इंतज़ार न करना पड़े।

पापा ने कुछ नहीं कहा। माँ ने भी नहीं रोका। लेकिन उनकी आंखें बहुत कुछ बोल रही थीं। कई महीने बीत गए। एक दिन महेश का फोन आया — “पापा, माँ कैसी हैं?” “ठीक हैं।” — पापा का जवाब छोटा था।

“पापा, दरअसल… मुझे थोड़ी मदद चाहिए थी… पत्नी अस्पताल में है…” पापा ने कहा, “महेश, FD अभी नहीं टूटी है। जब समय आएगा, तब देखा जाएगा। लेकिन एक बात जान लो, ये पैसा अब केवल जरूरत पर खर्च होगा, किसी की लालच पर नहीं।”

महेश ने कॉल काट दिया। अगले दिन पापा ने माँ से कहा, “चलो मंदिर चलते हैं, भगवान से यही प्रार्थना करेंगे कि हमारे बच्चों को सद्बुद्धि मिले।”

रिश्तों की कीमत पैसों से नहीं तोली जा सकती। माँ-बाप ने पूरी उम्र बच्चों के लिए जिया,लेकिन बुढ़ापे में अगर बच्चे केवल पैसा माँगें,तो वो सबसे बड़ा धोखा होता है..!!

(प्रस्तुति – वैद्य डीके शर्मा)

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