Tuesday, October 21, 2025
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Acharya Anil Vats presents: जब शिव भस्म लगाते हैं — तब वो क्या सोचते हैं?

(Acharya Anil Vats presentation)

जब शिव भस्म लगाते हैं — तब वो क्या सोचते हैं?

एक जटाजूटधारी योगी…
संसार के शोर से दूर,
तांडव में रौद्र, और मौन में समाधिस्थ…

हर सुबह अपने तन पर भस्म लगाता है —

🕉️ कभी सोचा है —
शिव, जो देवों के भी देव हैं… जो हिमालय की ऊँचाइयों में समाधि लगाए रहते हैं…
जब वे अपना त्रिपुंड खींचते हैं,
भाल पर भस्म मलते हैं,
तो उनके मन में क्या चलता होगा?

🕉️ पर क्या आपने कभी पूछा, कि जब शिव भस्म लगाते हैं — तब वो क्या सोचते हैं?

वो ये नहीं सोचते कि लोग क्या कहेंगे…
ना ही ये कि उन्हें कोई चमत्कारी देखे।

वो सोचते हैं — कि ये शरीर, ये सौंदर्य, ये अधिकार… सब एक दिन इसी भस्म में मिल जाएगा।

वो सोचते हैं — कि उन्होंने सती को भी खोया,
और आज भी हर भस्म की रेखा में वो एक जली हुई देह को दोबारा छूते हैं…
हर भस्म की लकीर — एक स्मृति है, एक क्रांति है, एक संन्यास है।

🕉️भस्म की हर रेखा शिव का मौन संवाद है:

“हे संसार…
मुझे मत पूजो मेरे रूप से।
मुझे समझो मेरे त्याग से।

मैंने सब कुछ खोया — और सब कुछ पा लिया।
क्योंकि जो भस्म को ओढ़ ले,
उसे फिर न कुछ चाहिए,
न कुछ खोने का भय रहता है…” – महादेव

🕉️ शिव के भीतर का मौन शोक:

वो मुस्कुराते हैं — लेकिन सब कुछ जानते हैं…
उन्होंने मोह का शव अपने कांधे पर उठाया है…
और विरक्ति का ज्वालामुखी अपने भीतर सँजोया है।

🙏एक दिव्य संवाद शिव और पाठक के बीच…

पाठक: “महादेव, आप हर दिन खुद को भस्म में ढँकते हैं…
क्या आपको भी कभी किसी की याद सताती है?”

🕉️शिव (मौन में):

“हाँ…
सती की, संसार की, और उस मैं की,
जिसे मैंने कब का जला दिया…”

शिव मुस्कराते हैं… और कहते हैं —
“भस्म… सिर्फ राख नहीं है।

ये उन इच्छाओं की राख है,
जो कभी मुझे मोहित नहीं कर पाईं।
ये उन क्रोधों की राख है,
जो मैंने पी लिए, ताकि जग बचे।
ये उस अहंकार की राख है,
जो हर बार मेरे स्पर्श से शांत हुआ।

और…
हर उस भक्त की याद भी मुझे रोज सालती है, जो अब भस्म बनकर मुझसे लिपटा है।
जिसे ये संसार, परिवार और कभी-कभी देवता तक छोड़ कर चले गए —

पर मैंने उसे अपने तन पर लगाया।
ताकि उसे ये याद रहे कि उसकी अंतिम गति मैं ही था।”

🙏अब आपसे प्रश्न —
क्या आप कभी उस भस्म को माथे पर लगाकर देख पाए हैं,
जो महादेव हर दिन खुद पर लगाते हैं —
ना शक्ति दिखाने के लिए,
बल्कि अपने अस्तित्व की सीमाओं को मिटाने के लिए?

“क्या आपने भी कभी कुछ खोया है,
जो राख बन चुका है —
लेकिन हर दिन आपके भीतर सुलगता है?”

क्या आपने कभी सोचा है कि जो आप अभी हैं,
वो भी कल भस्म बन जाएगा?”

अगर आप इस पोस्ट तक पढ़ आए हैं,
तो शायद आपने आज शिव को सिर्फ जाना नहीं —
उनसे मिल लिया है।

🕉️ शिव सत्य हैं। शिव मौन हैं। शिव भस्म हैं।
हर हर महादेव।

(आचार्य अनिल वत्स)

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