मैं हिन्दू हूँ तो भगवान श्रीराम जी को याद करना और उनका नमन करना मेरा अधिकार भी है और कर्त्तव्य भी है। उनके आदर्शों पर चलने की कोशिश करना मेरा जन्मजात कर्तव्य है।
इस दुनिया का कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म का अनुयायी हो उसे अपने धर्म विशेष का पालन अवश्य करना चाहिए। तभी व्यक्ति अपने मानव धर्म और राष्ट्र धर्म के प्रति ईमानदार हो सकता है। हमारे जन्म के साथ ही हमारी माँ हमारे जीवन की सोच के एक बहुत ही बड़े हिस्से को रेखांकित कर देती हैं। माँ ही हैं जिनके कारण हमारा अपने जन्मजात धर्म और मातृभूमि से परिचय होता है।
आज के लेख का उद्देश्य समाज में सद्भावना के विचार और आचरण को प्रेरित करना है। आज से (31 जुलाई 2020), बल्कि कल से ही (30 जुलाई 2020) आने वाली 5 तारीख (5 अगस्त 2020) तक का समय अत्यंत ही पवित्र है। दुनिया के सारे धर्मों में 7 अंक का बड़ा ही महत्व है। धर्मों में ही क्यों इस सृष्टि में भी अंक 7 का अपना विशिष्ट स्थान है। रंग सात, सप्ताह के दिन 7 आदि आदि। 30 जुलाई 2020 से 5 अगस्त 2020 तक भी 7 दिन होते हैं। यानी 30 जुलाई का समय परमशक्ति की उपासना से शुरू होते हुए 5 अगस्त को परमशक्ति की आराधना तक, 7 दिन का समय पूरी दुनिया को अलौकिक प्रकाश से प्रकाशित करेगा।
मुझे पूरा विश्वास है कि सभी धर्मों के अनुयायी एक बात पर अवश्य ध्यान देंगे। यदि राजनीतिक दृष्टि को छोड़ दें तो किसी को भी किसी से कोई बैर या समस्या नहीं है क्योंकि मैं हिन्दू हूँ और हिंदुत्व को समझता हूँ । अतः, अपने दृष्टकोण को प्रस्तुत करने के लिए अपने संस्कारों में रचेबसे शब्दों को ही अपना माध्यम बना पाऊंगा।
यद्यपि मेरे मन में सभी धर्मो के प्रति समान सम्मान है । मुझे लगता है कि एक विशेष समानता सभी धर्मो में जो है वो है कर्म। सभी धर्मों ने कर्म को ही सम्मान दिया है। और सभी धर्मों की उत्त्पत्ति मानव और अदृश्य परमशक्ति के बीच सेतु बनाने के लिये ही हुई है।
एक और रोमांचित कर देने वाली समानता सभी धर्मो में है वो है : इस ब्रह्मांड में भगवान श्रीकृष्ण जी को छोड़ कर किसी ने भी अपनेआपको ईश्वर नहीं कहा। वो फिर चाहे भगवान श्रीराम जी हों या भगवान श्रीपरशुरामजी हों या भगवान श्री महावीर स्वामी हों या भगवान बुद्ध हों या ईसा मसीह हों या पैगम्बर मोहम्मद साहब हों या गुरुदेव श्री नानक देव हों।
सभी में समानता ये है कि ये सभी पूज्यनीय पहले मानव रूप में पृथ्वी पर आए उसके बाद उन्होंने जीवन को समझा उसको भलीभाँति अपने तर्कों पर तौला और फिर अपने विचारों के कर्मो द्वारा पूरी विश्व को मार्ग दिखाया।
इस सभी धर्मुगुरुओं के नियमों और आदर्शों का पालन करने वाले अनुयायी पूरी दुनिया में फैले हैं। इस बिंदु पर ध्यान केंद्रित करने पर यह अनुभव होता है कि जीवन में कर्म ही सदा-सर्वदा सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। ये सभी अपने अपने कर्मों के कारण ही ईश्वर-तुल्य माने गए हैं।
श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने जो मार्ग गुडाकेश अर्जुन के माध्यम से संपूर्ण विश्व को दर्शित किया है उसका बीज मंत्र कर्म ही है। भगवान ने स्पष्ट कहा है कि जन्म और मृत्यु के बीच का समय तुम्हारा है, मैंने तुम्हें बुद्धि और विवेक के साथ भेजा है और अब ये तुम पर निर्भर करता है कि अपने-अपने हिस्से की बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल कैसे करते हो।
यहाँ भगवान श्रीकृष्ण ने एक बात और कही है कि तुम सबकी उत्पत्ति मुझसे ही हुई है और जीवन के पश्चात तुम सब का विलय भी मुझमें ही होगा। अर्थात हम सब परमपिता के ही अंश हैं। अस्तु, कहा गया है कि मानव धर्म सर्वप्रथम धर्म है और सर्वप्रथम कर्म भी यही है।
अंततोगत्वा कहना ही होगा कि यह एक गहन चर्चा का विषय है। भविष्य में इस पर अधिक विस्तार से कलम चलाउंगा एवं विज्ञान के प्रमाण के साथ अपने विचार अपने भावी लेख में प्रस्तुत करूंगा. आज तो बस सभी भाइयों को श्रीराम मंदिर की बधाई। जय श्री राम।
(आशीष वाजपेयी)



