Archana Anand Bharti writes: किसे याद आयेंगी मुबारक बेगम और कम से कम आज के ओटीटी वाले दौर में तो उनको याद ही करना पड़ेगा..पर उनकी गायकी तो हमेशा ही यादगार है..
मुबारक बेगम का जन्म 1936 में राजस्थान के झुंझुनूं जिले में एक गरीब परिवार में हुआ था। पिता तबला वादक थे तो संगीत का शौक विरासत में मिला। अध्ययन के अधिक अवसर नहीं मिले लेकिन गायन की परंपरागत शिक्षा ली। आकाशवाणी ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उनके गीत प्रसारित किए।
पिता को फिल्में देखने का बड़ा शौक था तो यह चकाचौंध मुबारक को मुंबई (तत्कालीन बंबई) खींच लाई। लेकिन संगीत से अत्यधिक प्रेम करने वाली मुबारक बेगम व्यवसाय कुशल न थीं। उन्हें पैसों से अधिक प्रेम अपने संगीत से था तो जब प्रस्ताव आते तो स्वीकार लेतीं लेकिन कभी संगीतकारों के चक्कर नहीं काटे।
‘मुझको अपने गले लगा लो’ उनका सबसे प्रसिद्ध गीत है। इस गीत में उनकी दिलकश आवाज मन मोह लेती है। ‘कभी तन्हाइयों में यूं हमारी याद आएगी’, ‘नींद उड़ जाए तेरी, चैन से सोने वाले’, ‘बेमुरव्वत, बेवफा, बेगाना ए दिल आप हैं’ आदि मुबारक बेगम के गाए गीत हैं जिसमें उनकी आवाज श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती है।
50 से 70 के दशक में वह एक सक्रिय गायिका रहीं व हिन्दी, उर्दू, मराठी आदि कई भाषाओं में उन्होंने सैकड़ों गीत गाए। शंकर जयकिशन, एस डी बर्मन, खय्याम जैसे मंजे हुए संगीतकारों के साथ काम किया लेकिन वह दौर लता मंगेशकर का था तो लता नाम के वटवृक्ष के आगे ऐसे कई सुन्दर पौधे दम तोड़ गए।
मुबारक बेगम के गाए कई गीतों को कुछ प्रशंसक भूलवश लता मंगेशकर का गीत समझ लेते हैं। हम भूल जाते हैं कि लता निस्संदेह उस समय की सर्वश्रेष्ठ गायिका थीं लेकिन एकमात्र गायिका नहीं थीं।
अत्यंत प्रतिभाशाली लेकिन हिसाब की कच्ची मुबारक गुजरते समय के साथ बिसरा दी गईं। मुंबई में एक कमरे के छोटे से मकान में रहती हुई मुबारक गुमनाम सा जीवन जीती रहीं और 80 वर्ष की अवस्था में 2016 में विपन्नता भरा जीवन जीते हुए चल बसीं। उनके पुत्र टैक्सी चालक हैं और साधारण सा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। मुबारक बेगम हमारे बीच आज भले ही नहीं हैं लेकिन उनकी अद्भुत आवाज का जादू उनके प्रशंसकों के हृदय में आज भी प्रतिध्वनित होता है।
(अर्चना आनन्द भारती)



