Delhi Elections 2025 के दौरान इस बार संघ और बीजेपी के नेता तो हीरो है ही मगर इस बार कांग्रेस ने भी अच्छा काम किया। ये बात ठीक है कि उसे सीटें नहीं मिली लेकिन प्रदेश स्तर पर उसके कार्यकर्ताओं ने बेहतरीन काम किया।
केजरीवाल का शराब घोटाला एक्सपोज़ करने वाली दिल्ली प्रदेश कांग्रेस ही थी, शीशमहल पर कांग्रेस ने मजबूत घेरा। कांग्रेस की समस्या उसका केंद्रीय नेतृत्व है, राहुल गाँधी को कुछ समझाना मतलब अपना सिर दीवार से फोड़ना।
ज़ब शराब घोटाला एक्सपोज हुआ तो प्रदेश मे कांग्रेस का कार्यकर्ता पसीना बहा रहा था वही राहुल गाँधी केजरीवाल से गठबंधन की बात कर रहा था और इस गठबंधन की क़ीमत दिल्लीं लोकसभा की सिर्फ तीन सीटें थी।
पंजाब मे अलग अलग लड़े, बस दिल्ली मे तीन सीटें जीतने के लिये राहुल गाँधी ने अपने ही कार्यकर्ताओं की मेहनत पर पानी फेर दिया।
दिल्ली की जनता ने 7 सीटें बीजेपी को दे दी, साथ ही जनता मे कांग्रेस का भी एक परसेप्शन सेट हुआ कि कांग्रेस के कार्यकर्ता ठीक है मगर राहुल गाँधी पर आप भरोसा नहीं कर सकते कि वो चुनाव होने के बाद कहाँ जाएगा।
ये समस्या राहुल गाँधी की नहीं है अपितु इंदिरा गाँधी के बाद आये गाँधी परिवार के हर सदस्य की है। इनका कार्यकर्ता लड़ना चाहता है मगर ये लोग सरेंडर कर देते है। बीजेपी 27 साल बाद भी लौट आती है लेकिन कांग्रेस यदि तीन बार हार जाए तो गठबंधन के दरवाजे खटखटाती है।
तीन बार शून्य देखकर हँसी तो आती है लेकिन इसका जिम्मेदार सिर्फ गाँधी परिवार है। प्रदेश के कार्यकर्ता मेहनत करके केजरीवाल को एक्सपोज़ करते और गाँधी परिवार हाथ मिलाता मानो जनता तो मूर्ख बनने के लिये ही है।
केजरीवाल का असली अंत तो अब शुरू हुआ है, क्योंकि अब केजरीवाल की कोई आवाज़ नहीं बची। वो किसी संवैधानिक पद पर नहीं है उसके पास ऐसी कोई शक्ति नहीं जिससे वो खुद को कुछ सिद्ध कर सके।
अब मीडिया मे पार्टी की पहचान आतिशी ही रहेगी जिसका कोई बड़ा जनाधार नहीं है, दूसरी ओर मोदीजी ने केग रिपोर्ट की घोषणा की है। केजरीवाल का जेल जाना अब निश्चित है और अबकी बार गया तो समझो इसका खेल खत्म।
बीजेपी को मुख्यमंत्री बनाकर किसी भी हाल मे बस यमुना और प्रदूषण का मुद्दा सुलझाना है, उसके बाद तो केजरीवाल यमुना मे डूब भी जाए तो जनता को मतलब नहीं रहेगा।
लेकिन जिन तीन मुस्लिम बहुल सीटों पर बीजेपी जीती है वो बीजेपी के लिये अवलोकन का विषय है। हिन्दू ने एकजुट होकर वोट किये भी हो तो ये कुल हिन्दू वोटो के 60-70 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकते। बीजेपी इन सीटों को बिना कुछ मुस्लिम वोटो के जीत ही नहीं सकती थी।
भले ही 100 मे से 10 मुसलमानो ने वोट किया हो मगर एक गुट ने वोट तो किया है। संभव है ये मुस्लिम महिलाओ के वोट हो या फिर शायद उन मुसलमानो के जो खुद उलेमाओ से त्रस्त है। जो भी हो इस वोट का आंकलन करना पड़ेगा।
मैंने कल भी कई अति कटटर हिन्दुओ को बीजेपी की जीत पर दुखी होते देखा है, कई हिंदूवादी तो 5 तारीख तक बीजेपी पर कटाक्ष कर रहे थे जबकि चुनाव सिर पर थे।
ये बहुत बड़ा अलार्म है ये ज़ब खुद वोट करेंगे तो बीजेपी से स्विंग करेंगे इसलिए इनका विकल्प इसी मुस्लिम सेगमेंट मे ढूंढना पड़ेगा। दिल्ली और महाराष्ट्र दोनों जगह ये प्रयोग सफल रहा है।
निजी आंकलन तो यही है कि मुस्लिम महिलाओ के एक छोटे वर्ग ने बीजेपी को वोट डाला है। यदि ऐसा है तो हमारे हित मे है, शायद कुछ और बात हो।
(परख सक्सेना)