Devendra Sikarwar writes: यद्यपि भारत में कई उग्रहिंदुत्ववादी गुस्से में हैं कि भारत ने युद्ध विराम क्यों कर दिया, तदापि समझने वाली बात ये है कि जो हुआ सही हुआ !..
अब चूँकि माहौल ‘अस्थाई शान्ति’ की ओर है, मैं दो-चार बातें बता देना जरूरी समझता हूँ।
1) यह युद्ध केवल भारत और पाकिस्तान में नहीं हो रहा था। यह युद्ध भारत एक साथ पाकिस्तान, चीन व तुर्की के साथ लड़ रहा था जिनमें चीन व तुर्की उसे निरंतर हथियार सप्लाई कर रहे थे। आपको जानकारी होनी चाहिए कि वैश्विक ड्रोन सप्लाई का 60%+ तुर्किये के पास और 24% चीन के पास है। और चीन के J17 के राडार से लॉक कर PL15 मिसाइल ने राफेल का नुक्सान किया वह चीन द्वारा और भी दिये जा सकते थे।
भारत के अनकंडीशनल मित्र इजरायल और हथियार साझीदार मित्र रूस अपने अपने मामलों में व्यस्त हैं और भारत को सूचना व रणनीति के अतिरिक्त विशेष सहायता देने की स्थिति में नहीं थे।
अब बचा अमेरिका जो अपने देश के अंदर व्यापारिक लॉबी संघर्ष में फंसा हुआ है, वह भारत को उस तरह से सपोर्ट नहीं कर सकता जैसे इजरायल को करता है।
आज के वैज्ञानिक युग में जंग लड़ते भले ही मनुष्य हैं पर जीती हथियारों व टेक्नोलॉजी से ही जाती हैं और अमेरिका का इस क्षेत्र में वर्चस्व है।
ऐसे में भारत अमेरिका का अनुरोध नहीं टाल सकता क्योंकि रूस अब कमजोर हो चुका है और चीन के विरुद्ध अमेरिका ही उन्नत प्रणालियों का स्रोत है।
2)भारत ने युद्धविराम अपनी शर्तों पर रोका है और वह शर्त है मोदी डॉक्ट्रीन जिसके अनुसार भारत में होने वाले किसी भी ‘इस्लामिक आतंकवादी घटना’ को पाकिस्तान प्रायोजित माना जायेगा और उसे ‘एक्ट ऑफ वॉर’ माना जायेगा।
इसलिए भारत के लिए युद्ध कभी भी प्रारम्भ करने का अवसर खुला रहेगा।
3)भारत अपने सारे लक्ष्य प्राप्त कर चुका है। आतंकवादी ठिकाने ही नहीं बल्कि पाकिस्तान के सैनिक इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ साथ उनके मनोबल को तोड़ चुका है और अब वहां अंदरूनी कलह के लिए उन्हें छोड़ दिया जाना चाहिए।
4)भारत ने अपनी वॉर मशीनरी को भी जांच लिया जिसमें एयर डिफेन्स सिस्टम 80% कामयाब रहा और पायलटों की प्रशिक्षण क्वालिटी को भी जिसे सुधारे जाने की सख्त जरूरत है। ड्रोन की संख्या और प्रभावी ड्रोनकिलिंग मशीनरी को भी विकसित किया जायेगा क्योंकि सस्ते ड्रोन्स पर मंहगी मिसाइलें जाया करना ठीक नहीं।
और सबसे अंत में, भारत ने सिंधु जल सन्धि पर अभी कुछ कहा नहीं है और कह भी दें तो भी बांधों के दरवाजे तो जब चाहे खोले और बंद किये जा सकते हैं।
और सच कहूँ तो यह समय युद्ध करने के लिए ठीक भी नहीं लगा था मुझे और इसीलिये मेरे अनुसार वास्तव में यह युद्ध विराम नहीं बल्कि अगले युद्ध की तैयारी है।
(देवेन्द्र सिकरवार)