Devendra Sikarwar की कलम से पढ़िये कि मूर्ति-प्रतिष्ठाओं में भी तुष्टिकरण की जो गंदी प्रवृत्ति सत्तर साल के कांग्रेस राज में चल रही थी, उसमें बदलाव आज भी नहीं है..
अगर नेहरू गांधी परिवार ने केवल अपने परिवार व गाँधी को ही हाई लाइट किया व उनकी मूर्तियाँ, संस्थान, चौक व सड़क उनके नाम पर बनाये तो एक हल्की सी गलती भाजपा सरकार भी कर रही है।
इसमें कोई संदेह नहीं कि भारतीय समाज मोटे तौर पर विशेषतः हिंदू स्वयं भले ही भीरु, यौनकुंठित व चरित्रहीन हो लेकिन वह सदैव से ही वीरता के साथ-साथ यौन रूप से चरित्रवान नायकों को पूजता आया है। यह मानव मन की एक साधारण सी मनोवैज्ञानिक प्रतिक्रिया होती है और इसमें विवाद की कोई गुंजाइश नहीं है।
और यही कारण है कि छत्रपति शिवाजी व महाराणा प्रताप हिंदू जनमानस में वह स्थान बना पाए जो अन्य वीर नायक न बना सके अतः अखिल भारतीय स्तर पर इनकी मूर्तियां व समारक स्थापित होना उचित ही है।
लेकिन इस फेर में यह हो रहा है कि प्राचीन व मध्ययुगीन अन्य नायकों को विसमृत किया जा रहा है जो उचित नहीं।
अयोध्या व उत्तरप्रदेश में सम्राट इक्ष्वाकु, सगर,भगीरथ, दिलीप, रघु, अज, निषादराज गुह और दिल्ली हरियाणा में भरत, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, एकलव्य जैसे पौराणिक महावीर छोड़िये आधुनिक प्राचीन महानायक जैसे महापद्मनंद, चन्द्रगुप्त मौर्य, अशोक, पुष्यमित्र, अग्निमित्र, मालव राष्ट्रपति विक्रमादित्य, खारवेल, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमदित्य, स्कन्दगुप्त, यशोधर्मन, ललितादित्य मुक्तापीड़, यशोवर्मन, नागभट्ट प्रथम, नागभट्ट द्वितीय, बप्पा रावल, जयपाल, आनंदपाल, भीमपाल, तिगिनशाह, अग्गुक, राजराज चोल, राजेंद्र चोल, अनंगपाल तोमर, राणा कुम्भा, मानसिंह तोमर, राणा सांगा, हेमचंद्र विक्रमादित्य, दुर्गादास राठौर, राणा राज सिंह जैसे महावीरों को विस्मृत कर दिया गया है।
भारत के तपस्वी वर्ग में अगस्त्य, विश्वामित्र, पाणिनि, माधव विद्यारण्य, तुलसीदास, एकनाथ, नयनार व अलवार संत, समर्थ गुरु रामदास आदि को उपेक्षित कर दिया गया है।
प्राचीन टोटम नायकों में गरुड़ व जटायु, श्रमिक वर्ग के प्रतीक कोणार्क निर्माता विशु व धर्मपद, व्यापारी वर्ग में श्रेष्ठि अनाथपिंडक व भामाशाह, प्राचीन गणों के प्रतीक के रूप में महाली व कठ आदि का कोई उल्लेख ही नहीं।
कांग्रेस ने गांधी, नेहरू व इंदिरा को ही हाईलाइट किया तो भाजपा केवल महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी व बाबा साहेब को ही हाई लाइट करती है।
मूर्तियों संस्थानों आदि की स्थापना का उद्देश्य महापुरुषों के प्रति सम्मान के अतिरिक्त आने वाली पीढ़ी को उनके माध्यम से इतिहास की शिक्षा देना भी है और वस्तुतः यही मूल उद्देश्य है लेकिन मूर्ति, चौक व सड़कों के नामकरण को घटिया राजनीति व जातीय तुष्टिकरण का माध्यम बना लिया गया है।
यही कारण है कि जरासंध जैसे यूजलैस खलनायक को जातीय नायक के रूप में स्थापित कर उसकी मूर्ति लगाने जैसे विशुद्ध मूर्खतापूर्ण कार्य किये जा रहे हैं।
(देवेन्द्र शिकरवार)