Wednesday, June 25, 2025
Google search engine
HomeदुनियादारीDevendra Sikarwar writes: भारत का तन कर खड़ा होना रास नहीं आ...

Devendra Sikarwar writes: भारत का तन कर खड़ा होना रास नहीं आ रहा अमेरिका को

Devendra Sikarwar writes: ये अमेरिकन कुंठा है जिसका कोई इलाज नहीं है..इनको वक्त ही आइना दिखायेगा क्योंकि वक्त आज हिंदुस्तान के साथ है..

Devendra Sikarwar writes: ये अमेरिकन कुंठा है जिसका कोई इलाज नहीं है..इनको वक्त ही आइना दिखायेगा क्योंकि वक्त आज हिंदुस्तान के साथ है..
नरेन्द्र कोहली की प्रसिद्ध कृति ‘महासमर’ में पाण्डवों के राजसूय यज्ञ से लौटने के पश्चात कुंठित दुर्योधन से धृतराष्ट्र पूछता है कि आखिर तुम्हें पाण्डवों से समस्या क्या है? अब तो तुम्हें हस्तिनापुर भी मिल गया और वे अलग इंद्रप्रस्थ में बस गये हैं।
कुछ क्षणों की चुप्पी के बाद तमतमाया दुर्योधन उत्तर देता है, “आपके नेत्र नहीं हैं, लेकिन मैंने पांडवो को देखा था दयनीय अवस्था में जब वे काका पाण्डु की मृत्यु के बाद हस्तिनापुर लौटे थे। भिखारियों की तरह दयनीय थे वे और उनकी आँखे राजमहल के वैभव को देखकर फटी पड़ रहीं थीं।”
दुर्योधन क्रोध में हाँफने लगा।
“अब वही भिखारी चक्रवर्ती सम्राट हो गये हैं और वह मोटा भीम महावीर कहलाता है।”
“नहीं पिताश्री, मैंने उन्हें भिखारियों के रूप में देखा है और उन्हें उसी रुप में ही स्वीकार कर सकता हूँ। मैं उन्हें इस शक्तिशाली रूप में स्वीकार नहीं कर सकता।”
महाभारत के कई कारण थे लेकिन तीसरी पीढ़ी का कारण सिर्फ और सिर्फ दुर्योधन की कुंठा थी जो पांडवो के उत्कर्ष को स्वीकार करने को तैयार नहीं थी।
व्यक्तियों की तरह राष्ट्रों का भी एक स्वभाव होता है जो उसके सामूहिक चरित्र से बनता है।
अधिकांश अमेरिकियों ने भारत को 1947 के बाद से ही भूखे, नंगे, गंदे और कमजोर देश के रूप में देखा है जो सदा पश्चिम से आर्थिक व सैन्य सहायता के लिए गिड़गिड़ाता रहता था। इसीलिये अधिकांश अमेरिकी जनता भारत को एक कमजोर देश के रूप में देखती है।
पिछले तीन दशक से अमेरिका, सोवियत संघ के विघटन के बाद से एक ध्रुवीय सत्ता का आनंद उठा रहा है और एशिया व दक्षिण अमेरिका में जिसने भी सिर उठाया, उसे उन्होंने कुचल दिया।
अर्जेन्टीना, ईरान व ईराक इसके उदाहरण हैं।
इन सबके बीच चीन स्वयं को सोवियत रूस के प्रतिद्वन्द्वी के रूप में प्रस्तुत कर एक परजीवी की तरह पश्चिम के साये में पनपता रहा और अब एक ऐसे महाशक्तिशाली देश के रूप में उभरा है जो पश्चिम को भी आर्थिक व सैन्य चुनौती देने की क्षमता रखता है।
इस बीच भारत स्व.पी वी नरसिम्हाराव ने जिन आर्थिक सुधारों की नींव रखी उसे 2014 के बाद मोदी सरकार ने तीव्र रूप में लागू किया और गंदगी व नियोजन को छोड़कर भारत का अन्य सभी क्षेत्रों में कायाकल्प हो गया।
भारत की इस शक्ति को देखकर अमेरिकी थिंक टैंक ने उसे चीन के विरुद्ध वर्ल्ड ऑर्डर में ‘उपयोग’ करना तय किया जैसा कि कुख्यात हेनरी किसिंजर की मोदी जी से मुलाकातों के संदर्भ में माना जाता है।
‘क्वाड’ का गठन इसी प्रक्रिया का हिस्सा था।
पर भारत के इरादे कुछ और ही थे।
कोविड और फिर रूस यूक्रेन युद्ध में भारत ने अपने बदले तेवरों का परिचय दिया और यहाँ तक कि चीन के साथ गलवान घाटी संघर्ष के दौरान अमेरिकी मदद (हस्तक्षेप) से इनकार कर दिया।
अमेरिका व पश्चिम के लिए भारत का यह आत्मविश्वासी रूप अनपेक्षित था लेकिन यूरोप उसकी उपेक्षा कर नहीं सकता था क्योंकि भारत का बाजार बहुत बड़ा है, लेकिन अमेरिका के लिए यह असहनीय था कि कल का गिड़गिड़ाता भारत सोवियत संघ जैसी बैसाखी के बिना भी अकेला तनकर खड़ा था।
उन्हें चीन के विरुद्ध एक ‘असेट’ के रूप में भारत की जरूरत थी न कि बराबरी के सहयोगी की।
इसीलिये बिडेन के काल में डीप स्टेट व चीन के भारत स्थिति असेट जैसे कांग्रेस और लिबरल गिरोह के माध्यम से मोदी के विरुद्ध षड्यंत्र रचे गये, किसान (ख़ालिस्तानी) आंदोलन व मणिपुर हिंसा द्वारा एनार्की उत्पन्न करने का प्रयत्न किया गया और बांग्लादेश में तख्तापलट कर दिया गया।
इस सारे घटनाक्रमों के मूल में और भारत अमेरिकी संबंध में अमेरिकी जनता, अमेरिकी नौकरशाही, राजनेता और डीप स्टेट की दुर्योधन वाली श्रेष्ठताबोध की मानसिकता सबसे बड़ी रुकावट है और इस मानसिकता में ट्रम्प अपवाद नहीं हैं।
इस बीच बिडेन के काल में अमेरिका में प्रोटोकॉल के तहत मोदी द्वारा ट्रम्प से मिलने से इनकार करने की भूल के चलते, ट्रंप ने इसे व्यक्तिगत अपमान के रूप में लिया जिसे डीप स्टेट भुना रहा है।
ट्रंप, मोदी एवं भारत को उसका अतीत याद दिलाने की कोशिश कर रहे हैं और भारत अमेरिका को वर्तमान की वास्तविकता दिखा रहा है।
चूँकि ट्रंप परिवार का मोटा निवेश भी पाकिस्तान में लगा है और अमेरिकी थिंक टैंक का एक वर्ग पाकिस्तान को भारत पर अंकुश लगाए रखने के उपकरण के रूप में देखता है इसलिए ऑपरेशन सिंदूर व टेरिफ के संदर्भ में उनकी नीतियाँ प्रोपाकिस्तानी दिखाई दे रही हैं और वह भारत से बेपरवाह दिखने की कोशिश कर रहे हैं।
चूँकि अमेरिका को सऊदी अरब से हथियार डील के रूप में एक मोटा ऑर्डर मिला है अतः वह रक्षा खरीददारी में भारत की नाराजगी की परवाह नहीं करेगा। ट्रंप द्वारा खुले आम एप्पल के टिम कुक को भारत में प्रॉडक्शन यूनिट लगाने से रोकने का निर्देश देना वास्तव में भारत को उसका स्थान दिखाने की कोशिश है।
अब ये शीतयुद्ध लम्बा चल सकता है क्योंकि ट्रंप मोदी को झुकाना चाहते हैं और ऐसा संभव हो नहीं पायेगा।
यह शीतयुद्ध तभी रुकेगा जब पश्चिम विशेषतः अमेरिका भारत को बराबर के स्तर पर स्वीकार करे।
()
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments