Dhurandhar: पाकिस्तान के एनकाउन्टर स्पेशलिस्ट पर बनी ये फिल्म खुश कर देगी दिल आपका क्योंकि इसमें है – दमदार विषय, यादगार अभिनय और अधूरी कसक..
करीब आधा दर्जन बड़े सितारों से सजी इस फिल्म को देखने की सबसे बड़ी वजह इसके निर्देशक आदित्य धर हैं। वही आदित्य धर, जिन्होंने साल 2019 में उरी जैसी फिल्म बनाकर जबरदस्त हलचल मचा दी थी। इसलिए धुरंधर से भी वैसी ही तीव्रता और असर की उम्मीद स्वाभाविक थी। यह फिल्म सच्ची घटनाओं से प्रेरित एक काल्पनिक कहानी पेश करती है, जो विचार के स्तर पर मजबूत है। कहानी का दायरा बड़ा होने के कारण इसे दो भागों में दिखाने का फैसला लिया गया, और इसी वजह से फिल्म में कुछ कमियां भी महसूस होती हैं।
कंधार विमान अपहरण और 2001 के संसद हमले के बाद भारत की खुफिया एजेंसियां एक बेहद गोपनीय जासूसी अभियान शुरू करती हैं, जिसका नाम रखा जाता है— धुरंधर। इस मिशन का मकसद पाकिस्तान जाकर, वहां के माहौल में घुल-मिलकर आतंकवाद की जड़ें खत्म करना है। सुनने में यह जितना आसान लगता है, असल में उतना ही खतरनाक और जटिल है, और फिल्म इसी चुनौती को पर्दे पर दिखाने की कोशिश करती है।
फिल्म का पहला पार्ट करीब दो घंटे का है, जिसमें कुछ बेहतरीन दृश्य जरूर आते हैं, लेकिन कहानी लगातार दर्शक को बांधकर नहीं रख पाती। इंटरवल के बाद फिल्म की रफ्तार तेज होती है और यहां रोमांच, देशभक्ति, एक्शन और भावनाएं—सब कुछ देखने को मिलता है। फिल्म का अंत ऐसे मोड़ पर किया गया है कि दर्शकों के मन में दूसरे पार्ट को देखने की बेचैनी साफ तौर पर रह जाती है।
धुरंधर का असली नायक और खलनायक एक ही किरदार है— रहमान डकैत। इस रोल को अक्षय खन्ना ने जिस तरह निभाया है, वह लंबे समय तक याद किया जाएगा। बिना किसी भारी-भरकम कद-काठी के, एक खौफनाक और निर्दयी रहमान बलोच (असल नाम) के रूप में अक्षय खन्ना पूरी फिल्म पर छा जाते हैं। उनका हर सीन और हर संवाद गहरी छाप छोड़ता है। रोल लंबा है और कई जगह वह बिना कुछ बोले ही भावनाएं और खतरा दोनों जाहिर कर देते हैं, जो उनके सशक्त अभिनय का सबसे बड़ा प्रमाण है। छावा में औरंगजेब के बाद रहमान डकैत का यह किरदार भी उनकी बेहतरीन फिल्मों की सूची में ऊपर रहेगा।
फिल्म में कई संवाद ऐसे हैं जो असरदार बन पड़े हैं। संजय दत्त का अभिनय औसत लगता है, जैसा कि हाल के दिनों में उनके कई किरदारों में देखने को मिला है। वहीं भारतीय अफसर की भूमिका में आर. माधवन ने शानदार काम किया है—उन्हें पहचानना तक मुश्किल हो जाता है। पाकिस्तानी मेजर इकबाल के रूप में अर्जुन रामपाल भले ही कम समय के लिए नजर आते हैं, लेकिन उनका किरदार बेहद ताकतवर है और गहरी छाप छोड़ता है। अगला भाग मुख्य रूप से उन्हीं के किरदार पर केंद्रित होगा।
रणवीर सिंह ने अपने रोल में पूरी तरह उतरने की कोशिश की है, जिसके लिए वह जाने जाते हैं, और यहां भी वह इस मामले में सफल रहे हैं। अभिनेत्री सारा अर्जुन और उनके पिता की भूमिका निभा रहे राकेश बेदी ने भी अच्छा काम किया है। सारा को फिल्म में कई क्लोज-अप शॉट्स मिले हैं, जिससे उनकी मासूमियत और खूबसूरती अच्छे से उभरकर सामने आती है।
फिल्म में मसाला ज्यादा है और क्लास अपेक्षाकृत कम, इसी वजह से यह उतनी प्रभावशाली नहीं लगती, जितनी उम्मीद ट्रेलर देखने के बाद बनती है। एडिटिंग और ज्यादा कसी हुई हो सकती थी, और फिल्म की लंबाई भी थोड़ी कम रखी जानी चाहिए थी। हालांकि, 350 करोड़ रुपये के भारी बजट के कारण इसे दो भागों में रिलीज करने का फैसला लिया गया, जो व्यावसायिक रूप से ठीक लगता है।
इन तमाम बातों के बावजूद धुरंधर एक बार जरूर देखी जा सकती है। फिल्म में गालियां काफी हैं, हालांकि उन्हें म्यूट कर दिया गया है। एक्शन सीन बेहद क्रूर और दर्दनाक हैं, इसलिए बच्चों के लिए यह फिल्म उपयुक्त नहीं है। बैकग्राउंड म्यूजिक प्रभावशाली है और “गहरा हुआ” गीत भी अच्छा बन पड़ा है। खास तौर पर अक्षय खन्ना के शानदार अभिनय के लिए यह फिल्म देखी जानी चाहिए।
(प्रस्तुति -आशीष जय)



