Dr Raghav Jha reports: बिहार में श्रद्धा और उत्साह के साथ आज मनाया गया जुड़ शीतल एवं मेष संक्रांति— नववर्ष, परंपरा और लोकसंस्कृति का अभिनंदन पर्व..
“नववर्षं समायातं नवचेतन्यवर्धनम्।
नवजीवनप्रदं पुण्यं मङ्गलं शुभदायकम्॥”
बिहार की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और ऋतुचक्र से जुड़ा पारंपरिक पर्व ‘जुड़ शीतल’, जिसे मैथिली नववर्ष का प्रथम दिन भी माना जाता है, एवं भारतीय पंचांग के अनुसार ‘मेष संक्रांति’ — आज सम्पूर्ण प्रदेश में हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया गया।
यह पर्व केवल मिथिला क्षेत्र तक सीमित नहीं, बल्कि सम्पूर्ण बिहार के हृदय में रचा-बसा है। अंग क्षेत्र — भागलपुर, बांका, मुंगेर में इसे ‘सतवानी’, भोजपुर-मगध में ‘बैसाखी’ और ‘सतुआन’ तथा सीमांचल के ग्रामीण अंचलों में भी विविध नामों से मनाया जाता है। इस दिन ठंडा भात, बारी, गुड़-पूड़ी, सत्तू और आम का अचार का सेवन लोक परंपरा का एक आवश्यक अंग है, जो स्वास्थ्य, मौसम और प्रकृति के अनुरूप जीवनशैली को दर्शाता है।
“यथा वर्षे नवो मासः तथा जीवने नवम्।
प्रकृतिः स्मरयत्येतत् जीवने च समुन्नतिम्॥”
जुड़ शीतल और मेष संक्रांति का यह पर्व केवल खान-पान या तिथि परिवर्तन का प्रतीक नहीं, बल्कि यह प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने, नववर्ष की शुरुआत के साथ नवीन ऊर्जा और सजीवता का स्वागत करने का संदेश देता है। इस दिन समाज जल के महत्व को समझते हुए पेड़ों को सींचने, घरों के आंगन में पानी छिड़कने एवं ठंडा वातावरण बनाए रखने की परंपरा का पालन करता है। यह पर्व जल-संरक्षण, पर्यावरण संतुलन और पृथ्वी के प्रति मानवीय उत्तरदायित्व का स्मरण भी कराता है।
साथ ही इस दिन बिहार के गौरव, महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री ‘आर्यभट्ट’ जी की जयंती भी श्रद्धापूर्वक मनाई जाती है, जिन्होंने अपने ज्ञान से न केवल भारत, बल्कि सम्पूर्ण विश्व में खगोल और गणित विज्ञान को एक नई दिशा दी।
“आर्यभट्टः प्रज्ञानां दीपस्तेजः प्रभाकरः।
भारतीय गणितस्यायं विश्वगौरववर्धकः॥”
जुड़ शीतल, बैसाखी, सतवानी, सतुआन एवं मेष संक्रांति — ये सभी पर्व बिहार की एकता, कृषि परंपरा, ऋतु परिवर्तन और सामाजिक सौहार्द्र के प्रतीक हैं। यह पर्व नई फसल की प्राप्ति, स्वच्छता, नवचेतना और जीवन के नवीनीकरण का संदेश सम्पूर्ण समाज में प्रसारित करता है।
इस अवसर पर ज्योतिर्विद विज्ञान उपनिदेशक डॉ. राघवनाथ झा ने प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ देते हुए कहा —
“प्रकृति के सान्निध्य में जीवन का संतुलन ही मानव सभ्यता की असली उन्नति है। जुड़ शीतल और मेष संक्रांति जैसे पर्व हमें यह सिखाते हैं कि परंपराओं में छिपा विज्ञान, सामाजिक सद्भाव और प्रकृति का सम्मान — यही सतत विकास का आधार है। यह नववर्ष हम सभी के जीवन में नवीन ऊर्जा, समृद्धि और सुख-शांति लेकर आए।”
(डॉक्टर राघव झा)