Hanuman Prasad Poddar: भारत के धार्मिक साहित्य को प्रकाशन का ऐतिहासिक मंच प्रदान करने का जितना श्रेय जयदयाल गोयंदका जी को जाता है उतना ही श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी को भी जाता है..दोनो महापुरुषों को हमारा नमन !
भाई साहब — यही नाम था जिससे लोग हनुमान प्रसाद पोद्दार को जानते थे। उनका जीवन किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं रहा: बम-पिस्तौल उठाने वाले क्रांतिकारी, असफल व्यापारी, लोकप्रिय कथावाचक, महात्मा गांधी के अनुयायी, हिंदू महासभा के स्तंभ, जुनूनी संपादक और मारवाड़ी समाज के धन्ना सेठ परिवारों के पंच। गीता प्रेस और कल्याण पत्रिका की चर्चा उनके बिना अधूरी मानी जाती है।
क्रांतिकारी दिनों से शुरुआत
21 जुलाई 1916, कलकत्ता। उस समय यह भारत में अंग्रेज़ी हुकूमत की राजधानी थी। सुबह-सुबह पुलिस ने घनश्याम दास बिड़ला के घर पर छापा मारा। बिड़ला उस वक्त केवल 22 साल के थे। वे तो पुलिस के हाथ नहीं लगे, लेकिन बड़े बाज़ार और आसपास के कई मारवाड़ी घरों पर छापेमारी हुई। इस दौरान पुलिस ने तीन युवकों को गिरफ़्तार किया और उनके पास से 31 माउज़र पिस्तौलें बरामद कीं।
इन गिरफ्तार युवकों में एक थे 23 साल के हनुमान प्रसाद पोद्दार। बाद में वही पोद्दार गीता प्रेस और कल्याण से जुड़े। उस समय बंगाल क्रांतिकारियों का गढ़ था। महर्षि अरविंदो की अनुशीलन समिति से प्रेरित होकर बिड़ला और पोद्दार ने भी मारवाड़ी युवाओं का एक उग्र राष्ट्रवादी ग्रुप खड़ा किया था। इस ग्रुप ने एक बार हथियारों के गोदाम से 50 पिस्तौल और 46,000 गोलियां गायब कर दीं।
कुख्यात रॉलट एक्ट के जस्टिस एस.ए.टी. रॉलट ने इसे “बंगाल में क्रांतिकारी गतिविधियों की सबसे बड़ी घटना” कहा। पत्रकार अक्षय मुकुल ने अपनी किताब गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया में इस घटना का विस्तार से जिक्र किया है।
गीता प्रेस और कल्याण का सफर
पोद्दार का जीवन बाद में करवट बदला। 1926 में जब कल्याण पत्रिका की शुरुआत हुई, तब से 1971 तक वे इसके संपादक रहे। अगर वे न होते, तो शायद गीता प्रेस और कल्याण उतनी ऊँचाइयाँ नहीं छू पाते।
कल्याण एक वाणिज्यिक पत्रिका नहीं, बल्कि हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार का मिशन थी। इसके बावजूद इसके लेखकों और सहयोगियों की सूची किसी भी पत्रिका को ईर्ष्या से भर सकती थी। पहले अंक में महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर के लेख छपे। आगे चलकर महर्षि अरविंद, आचार्य नरेंद्र देव, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, एस. राधाकृष्णन, एनी बेसेंट, विनोबा भावे और दीनबंधु एंड्रयूज जैसे नाम जुड़ते गए।
लाल बहादुर शास्त्री, पुरुषोत्तम दास टंडन, पट्टाभि सीतारमैया, के.एम. मुंशी, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, गुरु गोलवलकर और रघुवीर भी इसके पन्नों पर दिखे। साहित्यकारों में प्रेमचंद, निराला, जयशंकर प्रसाद और सुमित्रानंदन पंत जैसे दिग्गजों ने कल्याण के लिए लिखा। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी तक इसके नियमित पाठक और लेखक रहे।
जुनूनी संपादक और सांस्कृतिक योगदान
भाई साहब की संपादकीय शैली आक्रामक और जुनूनी थी। बड़े लेखकों से लिखवाने के लिए वे उनके पीछे पड़ जाते और तब तक चैन नहीं लेते जब तक लेख न मिल जाए।
गीता प्रेस ने कई अनोखे प्रकाशन किए। हरिवंश राय बच्चन ने उनके आग्रह पर जनगीता नाम से अवधी में गीता का अनुवाद किया। बाद में उन्होंने हिंदी में भी गीता का अनुवाद किया। 1956 में संगीत रामचरितमानस प्रकाशित हुई जिसमें 89 गीत थे, जिनमें खयाल, ठुमरी और दादरा सब शामिल थे। इसका संगीत-नोटेशन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने तैयार किया।
पोद्दार सालाना विशेषांकों के लिए भारतभर से विशेषज्ञों से लेख मंगवाते थे। लेख अक्सर संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला, मराठी और गुजराती में आते, जिन्हें अनुवाद करके छापा जाता। उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली था कि लोग अच्छी-खासी नौकरियां छोड़कर मामूली वेतन पर कल्याण में काम करने आ जाते।
चुंबकीय व्यक्तित्व और संपर्क
हनुमान प्रसाद पोद्दार के संपर्क इतने गहरे थे कि उनके जरिए कई काम निकलते थे। गांधीवादी जमनालाल बजाज उन्हें बहुत मानते थे। इंडियन एक्सप्रेस के मालिक रामनाथ गोयनका उनके मित्र थे। उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया उनसे इतने घनिष्ठ थे कि निजी जीवन की बातें तक साझा करते।
जब डालमिया घोटालों में जेल गए और टाइम्स ऑफ इंडिया से उनका संबंध टूट गया, तो पोद्दार ने तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से उनके पक्ष में सिफारिश की।
कई लोग उनसे छोटी-बड़ी समस्याओं के समाधान के लिए संपर्क करते। सेठ गोविंददास हों या राजा रामसिंह, सब उन्हें मार्गदर्शक मानते। कई समाजसेवी संस्थाओं को उनके जरिए आर्थिक मदद मिलती थी।
गीता घर-घर तक
इन्हीं संपर्कों और उनकी जिद का नतीजा था कि गीता प्रेस बहुत कम कीमत पर गीता जैसे ग्रंथ घर-घर पहुंचा सका। कल्याण पत्रिका लंबे समय तक हिंदू धर्म, इतिहास, कर्मकांड और आध्यात्म पर विमर्श का सबसे बड़ा मंच बनी रही।
हनुमान प्रसाद पोद्दार का जीवन बताता है कि कैसे एक क्रांतिकारी युवा, जिसने हथियार उठाए थे, बाद में गीता प्रेस जैसा संस्थान खड़ा करके करोड़ों लोगों के जीवन में आध्यात्मिकता और धर्म का प्रकाश फैला सकता है।