Jal Jeevan Mission में भ्रष्टाचार को लेकर उत्तर प्रदेश में मिलीं सबसे ज़्यादा शिकायतें — 14,264, जो कुल शिकायतों का 85 प्रतिशत से भी अधिक हैं; असम और त्रिपुरा काफी पीछे रहे..
जल जीवन मिशन में भ्रष्टाचार पर सख्त कदम उठाया है केंद्र सरकार ने। जल जीवन मिशन के तहत ग्रामीण घरों में नल से पेयजल पहुंचाने की योजना में भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों को लेकर बड़ी कार्रवाई की गई है। कम-से-कम 596 अधिकारियों, 822 ठेकेदारों और 152 थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन एजेंसियों (TPIAs) पर कार्रवाई हुई है।
यह कदम उन शिकायतों के बाद उठाया गया, जिनमें पैसों की गड़बड़ी और घटिया काम किए जाने के आरोप लगे थे।
यह जानकारी द इंडियन एक्सप्रेस को सूत्रों के हवाले से मिली है। सूत्रों के अनुसार, इस मामले से जुड़े सात केस अब CBI, लोकायुक्त और अन्य भ्रष्टाचार विरोधी एजेंसियों द्वारा जांच के अधीन हैं। इन 15 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में कुल 16,634 शिकायतें मिलीं और 16,278 मामलों की जांच रिपोर्टें जमा की गई हैं।
शिकायतों में उत्तर प्रदेश सबसे आगे
शिकायतों की संख्या के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर रहा। यहां से 14,264 शिकायतें दर्ज की गईं, जो कुल शिकायतों का 85 प्रतिशत से भी ज़्यादा हैं। इसके बाद असम में 1,236 और त्रिपुरा में 376 शिकायतें मिलीं।
अधिकारियों और ठेकेदारों पर की गई कार्रवाई में भी उत्तर प्रदेश अग्रणी रहा।
यूपी ने 171 अधिकारियों पर कार्रवाई की, जबकि राजस्थान में 170 और मध्य प्रदेश में 151 अधिकारियों के खिलाफ कदम उठाए गए। ठेकेदारों के मामलों में त्रिपुरा पहले स्थान पर रहा, जहां 376 ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई हुई।
इसके बाद उत्तर प्रदेश (143) और पश्चिम बंगाल (142) का स्थान रहा। जिन 15 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने इस संबंध में रिपोर्ट दी है, उनमें छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, लद्दाख, मणिपुर, मेघालय, मिज़ोरम और उत्तराखंड भी शामिल हैं।
केंद्र का आदेश और राज्यों की प्रतिक्रिया
राज्यों की यह रिपोर्ट पीने के पानी और स्वच्छता विभाग (DDWS) को भेजे गए अक्टूबर महीने के निर्देश के जवाब में आई है। यह विभाग जल शक्ति मंत्रालय के अधीन काम करता है। कुछ महीनों पहले केंद्र सरकार ने देशभर में जल जीवन मिशन की परियोजनाओं की मैदानी जांच के लिए 100 से ज़्यादा नोडल अधिकारियों की टीमें भेजी थीं।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की जांच रिपोर्ट का खुलासा
द इंडियन एक्सप्रेस ने 21 मई 2025 को प्रकाशित अपनी एक जांच रिपोर्ट में यह खुलासा किया था कि तीन साल पहले जल जीवन मिशन के दिशा-निर्देशों में किए गए बदलावों की वजह से खर्च पर नियंत्रण कमजोर हो गया था।
इसके परिणामस्वरूप परियोजनाओं की लागत काफी बढ़ गई। जांच में यह पाया गया कि 14,586 योजनाओं की अनुमानित लागत में 14.58 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई, जिससे कुल अतिरिक्त खर्च 16,839 करोड़ रुपये तक पहुंच गया।
योजना की पृष्ठभूमि और विस्तार
जल जीवन मिशन की शुरुआत 2019 में इस उद्देश्य से की गई थी कि हर ग्रामीण घर को 2024 तक नल से शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराया जाए। यह मिशन 2024 में समाप्त हो गया, लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 1 फरवरी 2025 को दिए गए बजट भाषण में इस योजना को 2028 तक जारी रखने और इसके लिए अधिक वित्तीय सहायता देने की घोषणा की थी। हालांकि, इस प्रस्ताव को अभी केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी नहीं मिली है।
जिन राज्यों ने पूरी जानकारी नहीं दी
सूत्रों के अनुसार, छह अन्य राज्य और केंद्रशासित प्रदेश — अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, गोवा, लक्षद्वीप और सिक्किम — ने भी केंद्र के आदेश का जवाब भेजा, लेकिन उन्होंने प्राप्त शिकायतों और की गई कार्रवाई का विवरण साझा नहीं किया। वहीं, दादरा और नगर हवेली और दमन एवं दीव, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, नागालैंड, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब और तमिलनाडु से कोई जानकारी प्राप्त नहीं हुई, ऐसा सूत्रों ने बताया। बिहार और तेलंगाना ने भी शिकायतों का ब्यौरा नहीं दिया, क्योंकि इन दोनों राज्यों ने अपनी खुद की योजनाओं के तहत नल कनेक्शन उपलब्ध कराए थे।
केंद्र की अगली कार्रवाई और सख्त रुख
सूत्रों के अनुसार, DDWS के अधिकारियों ने पिछले सप्ताह इन 15 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से आई रिपोर्टों की समीक्षा की और बाकी राज्यों से जानकारी जुटाने के लिए प्रयास जारी रखे हैं। पिछले महीने DDWS ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र भेजकर यह निर्देश दिया था कि वे 20 अक्टूबर तक अपनी रिपोर्ट जमा करें। इस रिपोर्ट में यह बताया जाए कि लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (PHED) के किन अधिकारियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई, निलंबन, पद से हटाने या FIR दर्ज करने जैसी कार्रवाई की गई है।
खासकर उन मामलों में जहां काम की गुणवत्ता खराब थी या पैसों में गड़बड़ी के आरोप लगे थे। विभाग ने राज्यों से यह भी कहा था कि वे ठेकेदारों और थर्ड पार्टी एजेंसियों (TPIAs) के खिलाफ की गई कार्रवाइयों की जानकारी दें — जैसे जुर्माना कितना लगाया गया, कितने ठेकेदार ब्लैकलिस्ट किए गए, किन पर FIR दर्ज हुई, और कहां रिकवरी की कार्रवाई शुरू की गई है। DDWS का यह निर्णय अक्टूबर के पहले सप्ताह में हुई एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक के बाद लिया गया था।
यह पूरी रिपोर्ट यह दिखाती है कि जल जीवन मिशन जैसी बड़ी और महत्वाकांक्षी योजना में पारदर्शिता और जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार अब भ्रष्टाचार के मामलों पर सख्त रुख अपना रही है — खास तौर पर उन राज्यों में जहां सबसे ज़्यादा शिकायतें मिलीं और परियोजनाओं की गुणवत्ता को लेकर गंभीर सवाल उठे।
(न्यूज़हिन्दूग्लोबल ब्यूरो)



