Tuesday, October 21, 2025
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Life: हम ‘ऑटोपायलट’ पर ज़िंदगी जीते हैं & हमें लगता है जिन्दगी हमारे काबू में है

Life: क्यों ऐसा होता है कि हम ऑटोपायलट पर जीवन जीते हुए सोचते हैं कि जीवन बहुत कुछ हमारे चलाने से चल रहा है, पर वास्तव में ऐसा होता नहीं है..

Life: क्यों ऐसा होता है कि हम ऑटोपायलट पर जीवन जीते हुए सोचते हैं कि जीवन बहुत कुछ हमारे चलाने से चल रहा है, पर वास्तव में ऐसा होता नहीं है..

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि हमारी ज़्यादातर गतिविधियाँ हमारी आदतों (Habits) से संचालित होती हैं, न कि हमारे सचेत (Conscious) फैसलों से। हेलन कॉफी ने विशेषज्ञों से पूछा कि क्या हम ज़्यादा सजग होकर जी सकते हैं और कैसे अपनी दिनचर्या को बदलकर ज़िंदगी को बेहतर बना सकते हैं।

क्या हम सच में अपनी ज़िंदगी के मालिक हैं?

हम अक्सर सोचते हैं कि हम अपने जीवन की गाड़ी खुद चला रहे हैं। लेकिन हकीकत यह है कि हमारी रोज़मर्रा की कई क्रियाएँ बिना सोचे-समझे, एक आदत के रूप में होती हैं। उदाहरण के लिए—सुबह उठकर बाथरूम जाना और दाँत साफ करना। हम यह सोचकर निर्णय नहीं लेते, यह बस हमारी दिनचर्या का हिस्सा है।

यूनिवर्सिटी ऑफ़ सरे, साउथ कैरोलाइना और सेंट्रल क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, हमारी लगभग 65% गतिविधियाँ आदतन (autopilot) होती हैं, यानी हम उन्हें बिना विशेष सोच-विचार के करते हैं।

क्यों बनती हैं आदतें?

विशेषज्ञों का कहना है कि बार-बार एक जैसी ज़रूरतें (जैसे खाना, काम पर जाना, सोना) हमें ऐसी दिनचर्या बनाने पर मजबूर करती हैं, जो अपने आप चलती रहती है। यह हमारे दिमाग़ की ऊर्जा बचाने की रणनीति है। एक काम को ऑटोमेटिक बनाने का मतलब है कि हम दिमाग़ की शक्ति दूसरे जटिल कामों में लगा सकें।

क्या आदतें हमेशा बुरी होती हैं?

ज़रूरी नहीं। अगर हम हर छोटे-छोटे फैसले पर गहराई से सोचें, तो शायद हम कभी कुछ कर ही न पाएं। आदतें हमें रोज़ाना के छोटे निर्णयों से मुक्त करके बड़े कामों पर ध्यान देने का मौका देती हैं।

समस्या कब होती है?

जब कोई नकारात्मक आदत हमारे व्यवहार में घर कर जाती है। उदाहरण के लिए—काम करते-करते बोर होने पर मोबाइल उठाना और फिर बेवजह स्क्रॉल करते रहना। ऐसे में हमारा दिमाग़ सोचता है कि यह “मदद” कर रहा है, लेकिन हकीकत में यह हमें नुकसान पहुंचाता है।

आदतें बदलने के उपाय

विशेषज्ञ कहते हैं कि पुरानी आदतों को “तोड़ने” से बेहतर है उन्हें “नई और बेहतर आदत” से बदलना। इसके लिये कुछ कोशिशें की जा सकती हैं जैसे, अगर रोज़ शाम कॉफी के साथ केक खाने की आदत है, तो उसकी जगह कॉफी के साथ टहलना शुरू करें।

या फिर यदि देर रात मोबाइल स्क्रॉल करने की आदत है, तो फोन को कमरे से बाहर रखें और बिस्तर पर किताब रखें। इसी तरह सुबह दौड़ने की आदत डालनी है, तो रात को ही जूते और कपड़े तैयार कर लें।

छोटे कदमों से शुरुआत

एकदम बड़े लक्ष्य मत बनाइए। जैसे—5 किमी दौड़ने का लक्ष्य बनाने के बजाय, सिर्फ़ जूते पहनकर घर से बाहर निकलने का संकल्प लें। धीरे-धीरे आदत मजबूत हो जाएगी।

वातावरण (Environment) का असर

हमारी आदतें हमारे आस-पास के माहौल से भी प्रभावित होती हैं। अगर डेस्क पर चॉकलेट रखी हो तो हम ज़्यादा खाएंगे। अगर फल फ्रिज में सबसे आगे रखे हों, तो हम उन्हें ज़्यादा खाएँगे।

आदतों में आनंद जोड़ें

नई आदतें तभी टिकती हैं जब उनसे खुशी जुड़ी हो। जैसे—वर्कआउट करते समय पसंदीदा गाने सुनना या कुकिंग करते समय अपनी पसंदीदा वेब सीरीज़ देखना।

बड़े बदलाव का मौका

विशेषज्ञों का मानना है कि जीवन के बड़े बदलाव (जैसे नई नौकरी, घर बदलना, शादी, बच्चा होना, रिटायरमेंट) नई आदतें अपनाने का सबसे अच्छा समय होते हैं। क्योंकि उस समय पुरानी दिनचर्या वैसे भी टूट चुकी होती है।

कुल मिला कर कहा जा सकता है कि

हम जिन्दगी के मालिक नहीं बल्कि आदतों के गुलाम हैं। हम भले ही “ऑटोपायलट” पर ज़िंदगी जीते हों, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम ड्राइविंग सीट पर नहीं हैं। अगर हम सजग होकर सही आदतें बनाएँ, तो वही ऑटोमेटिक सिस्टम हमारी ज़िंदगी को बेहतर और आसान बना सकता है।

(प्रस्तुति -अर्चना शेरी)

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