Lord Shiva: Shani Mahadasha Story: शनिदेव हैं ही कुछ ऐसे कि उनका नाम सुनते ही लोगों के मन में प्रायः उनके प्रकोप का भय उत्पन्न हो जाता है. इसी कारण सभी लोग उन्हें प्रसन्न रखना चाहते हैं और इसके लिए वे कई प्रकार के उपाय भी करते हैं. धार्मिक मान्यता बताती है कि शनिदेवन न्याय के देवता हैं. वे हर मनुष्य को उसके कर्मों के आधार पर फल प्रदान करते हैं.
परन्तु यह बताना सबके लिए कठिन है कि शनिदेव को दंडाधिकारी बनने की जिम्मेदारी कैसे प्राप्त हुई? ऐसा क्या हुआ कि न्याय के देवता शनि देव ही बने? इसके लिए जाननी होगी एक पौराणिक कथा.
एक पौराणिक कथा के अनुसार, शंकर भगवान ने शनि देव को उन्नीस सालों तक पीपल के वृक्ष पर उल्टा लटकाकर रखा था. ऐसा आखिर हुआ क्या था कि भोलेनाथ को इतना क्रोध आया कि उन्होंने शनिदेव पर अपना गुस्सा इस तरह निकला? आइये, इस कथा को विस्तार से जानते हैं.
सूर्यदेव की समस्या और शनिदेव का अहंकार
इस घटना से संबंधित पौराणिक कथा बताती है कि सूर्यदेव ने अपने पुत्रों को विभिन्न लोकों का दायित्व उनकी योग्यता के आधार पर सौंप दिया. लेकिन उनके पुत्र शनिदेव अहंकारी हो गए थे. उनको अपनी अद्वितीय शक्तियों का अभिमान हो गया था. इतने घमंड में डूब कर शनिदेव ने अपने पिता के इस निर्णय पर प्रसन्नता व्यक्त नहीं की.
इस असंतोष के कारण शनिदेव ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हुए दुसरे लोकों पर अधिकार करना प्ररम्भ कर दिया. शनि की इस प्रकार के कार्यों से पिता सूर्यदेव को बहुत दुःख पहुंचा. उन्होंने इस समस्या के समाधान के लिए भगवान शिव के पास जा कर उनसे शनिदेव को रोकने की प्रार्थना की.
भगवान शिव और शनिदेव का युद्ध
भगवान् शंकर ने सूर्यदेव की प्रार्थना सुन कर उनसे कहा कि वे निश्चिन्त रहें. इसके अनन्तर उन्होंने अपने गणों को शनिदेव को सही रास्ते पर लाने के लिए लिए भेजा. लेकिन, शनिदेव के पास बड़ी भयंकर शक्तियां थीं जिनकी मदद से उन्होंने शिव के गणों को परास्त कर वापस भेज दिया.
ये देख कर भगवन भोलेनाथ को बहुत क्रोध आया और वे स्वयं शनिदेव से युद्ध करने के लिए सामने आ गए. महादेव को क्रोध से भर कर लड़ने के लिए आते देख कर शनिदेव ने अपनी वक्र दृष्टि उन पर डाली. परन्तु महादेव ने अपने तीसरे नेत्र का प्रयोग कर शनिदेव के मद को चूर-चूर कर डाला.
पीपल के वृक्ष पर उन्नीस वर्षों का दंड
भगवान शंकर ने शनिदेव को बाँध लिया और फिर उनके अहंकार के लिए उनको सीख देने का विचार किया. इसके उपरान्त भगवान शिव ने शनि को पीपल के पेड़ पर उल्टा लटका दिया और उन्नीस वर्षों तक उनको वहां लटकाये रखा.
उलटे लटके लटके शनिदेव की दुर्बुद्धि पलट गई और सुबुद्धि के आते ही उन्होंने बह भगवान शिव की उपासना करनी प्रारम्भ कर दी. यही वह कारण है जिससे शनि की महादशा की अवधि 19 वर्षों की हो गई.
इसलिए कहलाते हैं न्याय के देवता
सूर्यदेव को बाद में बहुत दुःख हुआ जब उन्हें पता चला कि उनका पुत्र शनि पीपल के पेड़ पर उलटा लटका हुआ है. उनको इस दशा में देखकर अत्यंत दुखी मन से सूर्य देव ने भगवान शिव से शनिदेव को क्षमा करने की याचना की.
भगवान शिव मुस्कुराये और सूर्यदेव के मन की दशा जान कर उन्होंने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली. भोलेनाथ ने शनिदेव को पेड़ से उतार कर बंधन-मुक्त कर दिया. इतना ही नहीं उन्होंने उनको क्षमा भी कर दिया और ऊपर से उनको न्याय का देवता भी बना दिया. किन्तु इसके पहले उन्होंने शनिदेव को निर्देश दिया कि न्याय के आधार पर तुम अपनी शक्तियों का उपयोग किया करो.
इस दिन के बाद से ही शनिदेव भगवान शिव से निरंतर मार्गदर्शन प्राप्त करते और महादेव के निर्देशानुसार न्याय करने के लिए ही अपनी शक्तियों का उपयोग करते हैं. इस दिन के बाद से ही तीनों लोकों में शनिदेव न्यायाधीश के तौर पर जाने जाने लगे.
शनि-दोष हो जाए तो मुक्ति का उपाय
धार्मिक मान्यता बताती है कि यदि मनुष्य शनि दोष से युक्त हो जाए अर्थात शनि देव उस पर कुपित हो जाएँ तो ऐसे व्यक्ति को इस शनिदोष से मुक्ति पाने के लिए भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. माना जाता है कि पूजा के परिणाम स्वरुप भगवान भोलेनाथ की प्रसन्नता देख कर शनिदेव का क्रोध शांत होता है. शनिदेव के शांत होते ही व्यक्ति को शनि दोष से राहत मिल जाती है.
शनिदेव भगवान शिव से जितना भयभीत रहे हैं उतनी ही गहरी श्रद्धा भी वे उनके प्रति रखते हैं. यही वह कारण है जिसकी वजह से भगवान शिव की आराधना शनिदेव के आशीर्वाद में बदल जाती है.