1908 का साल… लक्ष्य था अंग्रेज़ अफ़सर किंग्सफोर्ड का खात्मा।
दो नौजवान क्रांतिकारी — खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद्र चाकी — मिशन पर निकले थे।
बम फेंका गया, गाड़ी ध्वस्त हो गई… लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। उसमें किंग्सफोर्ड नहीं, बल्कि दो अंग्रेज़ महिलाएं सवार थीं, जो मारी गईं।
हमले के बाद दोनों क्रांतिकारी अलग-अलग दिशाओं में निकल पड़े।
खुदीराम बोस को अंग्रेज़ों ने पकड़ लिया और फांसी पर चढ़ा दिया।
लेकिन प्रफुल्ल चंद्र चाकी… उनका अंत अलग था।
जब अंग्रेज़ सिपाहियों ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया,
तो उन्होंने बंदूक अपनी ही कनपटी पर रख दी और ट्रिगर दबा दिया —
क्योंकि गुलामी में जीना उन्हें मौत से भी बदतर लगता था।
“जो झुककर जिएं, उनसे महान वो हैं जो शान से मर जाएं।”
आज़ादी हमें यूं ही नहीं मिली —
किसी ने अपना सिर खुद उड़ा लिया,9
ताकि आने वाली पीढ़ियां सिर ऊंचा करके जी सकें
(प्रस्तुति -बलराम कुमार)