Multiverse Theory: बहुत दिलचस्प है स्पेस साइन्टिस्ट्स की मल्टीवर्स थ्योरी..जितना इसमें उतरते जाओ उतना ही गहरा होता जाता है इसका सस्पेन्स..
वैज्ञानिकों की मल्टीवर्स थ्योरी पर एक नज़र
क्या आपने कभी सोचा है कि कहीं और भी कोई “आप” मौजूद हो सकता है? कहीं और भी एक दुनिया हो, जहाँ सबकुछ थोड़ा-सा अलग हो लेकिन लोग बिल्कुल हमारी तरह हों? अगर यह सवाल आपके दिमाग में आया है तो यकीन मानिए, आप अकेले नहीं हैं। वैज्ञानिकों की एक दिलचस्प थ्योरी – मल्टीवर्स – इसी सवाल का जवाब खोजती है।
हॉलीवुड से हकीकत तक
पैरेलल यूनिवर्स का जिक्र आपने फिल्मों और वेब सीरीज़ में तो खूब देखा होगा, लेकिन अब वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं कि ऐसा हो सकता है। मशहूर लेखक आर्थर सी. क्लार्क ने कहा था – “या तो हम इस ब्रह्मांड में अकेले हैं, या फिर नहीं। और दोनों ही बातें उतनी ही डरावनी हैं।” सोचिए, अगर सचमुच और भी ब्रह्मांड हैं, तो उनमें रहने वाले लोग हमारे जैसे ही होंगे, बस वहाँ के नियम और परिस्थितियाँ अलग होंगी।
दिलचस्प बात ये है कि कुछ धार्मिक ग्रंथ भी कहते हैं कि हर ब्रह्मांड का अपना “ब्रह्मा” होता है और उसके अपने नियम।
आखिर मल्टीवर्स है क्या?
वैज्ञानिकों का कहना है कि हमारा ब्रह्मांड अकेला नहीं, बल्कि बहुत सारे ब्रह्मांडों में से एक है। हर ब्रह्मांड के अपने कानून हैं और हो सकता है कि वे किसी न किसी रूप में आपस में जुड़े भी हों।
यानी जो अब तक फिल्मों की कल्पना लगती थी, वह वैज्ञानिक शोध का विषय बन चुकी है।
कितना बड़ा है ये खेल?
हमारे ब्रह्मांड में अरबों आकाशगंगाएँ मौजूद हैं। वैज्ञानिक मानते हैं कि यह ब्रह्मांड करीब 700 करोड़ प्रकाशवर्ष तक फैला हुआ है। बिग बैंग के समय (लगभग 1300 करोड़ साल पहले) निकला पदार्थ इतनी दूर तक फैल चुका था कि इससे अनगिनत ब्रह्मांड बनने की संभावना है।
2011 के एक शोध के मुताबिक, ब्रह्मांड फैलने की प्रक्रिया हर जगह एक साथ खत्म नहीं हुई। नतीजा? कई अलग-अलग ब्रह्मांडों का जन्म।
हर फैसले से बनती है नई दुनिया!
1957 में वैज्ञानिक ह्यूग एवरेट ने एक हैरान कर देने वाली थ्योरी दी – मैनी वर्ल्ड्स इंटरप्रिटेशन। उनके मुताबिक, जब भी कोई घटना होती है तो उसका सिर्फ एक नतीजा नहीं निकलता। बल्कि हर विकल्प से एक नई दुनिया बनती है।
जैसे एक पेड़ से कई शाखाएँ निकलती हैं, वैसे ही हर स्थिति से कई संभावित दुनिया निकल सकती हैं। इसका मतलब – आपके कई रूप अलग-अलग ब्रह्मांडों में मौजूद हो सकते हैं। सोचिए, कहीं और एक “आप” अभी वही कॉफी पी रहे हों, लेकिन अलग फ्लेवर की!
क्या आप सचमुच किसी और दुनिया में भी हैं?
वैज्ञानिकों की मानें तो अगर ब्रह्मांड हमेशा चलता रहा, तो इसकी हर चीज़ दोबारा बन सकती है। यानी कहीं न कहीं आपका बिल्कुल वैसा ही जीवन दोहराया जा सकता है।
लेकिन ट्विस्ट ये है – अगर हर ब्रह्मांड अलग-अलग समय पर बना है, तो हो सकता है कि वह दुनिया जिसमें आपका दूसरा रूप मौजूद है, अभी बनी ही न हो!
इसका मतलब है कि अगली बार जब आप आसमान की ओर देखें, तो सोचिए – क्या कहीं कोई दूसरा “आप” भी उसी आसमान की तरफ देख रहा होगा?
(प्रस्तुति -त्रिपाठी इन्द्रनील)