Neha Murder: नेहा के भरोसे की दुखद कहानी है जिसने हर हिन्दू को सिखाया कि हिन्दू ही हिन्दू का भाई हो सकता है, और कोई नहीं !..
“उसे बड़े-बड़े सपने थे। कहती थी कि अच्छी नौकरी करूँगी, घर का सहारा बनूँगी… तौफीक ईद पर सेवइयाँ लाता था।”
नेहा की बड़ी बहन बार-बार आँसुओं में यही शब्द दोहरा रही है।
23 जून 2025 की सुबह, पूर्वोत्तर दिल्ली के अशोक नगर में 19 साल की नेहा की निर्मम हत्या कर दी गई। आरोपी तौफीक, जो मुरादाबाद से दिल्ली आकर पल्लेदारी करता था, ने उसे पाँचवीं मंज़िल से नीचे फेंक दिया।
जिसे भाई मानती थी, वही बना कातिल
तौफीक खुद को नेहा का भाई कहता था। रक्षाबंधन पर राखी बँधवाता, ईद पर सेवइयाँ लाता और तीन साल तक नेहा के परिवार से भाई जैसा रिश्ता निभाता रहा। लेकिन धीरे-धीरे उसकी नीयत बदल गई।
तीन साल बाद उसने नेहा से निकाह का प्रस्ताव रखा। नेहा और उसके परिवार ने साफ इनकार कर दिया। यही इनकार तौफीक को मंज़ूर नहीं था।
बुरखा पहनकर पहुँचा बिल्डिंग में, और फिर…
हत्या वाले दिन तौफीक बुरखा पहनकर नेहा की बिल्डिंग में चुपचाप घुसा। उसे पता था कि सुबह साढ़े सात बजे नेहा छत पर कपड़े धोने जाती है। वो पहले से ही छत पर मौजूद था।
नेहा के पिता भी उसी वक्त छत पर पहुँच गए। दोनों के बीच बहस हुई। तौफीक ने नेहा का गला दबाया और फिर पिता को धक्का देकर नेहा को पाँचवीं मंज़िल से नीचे फेंक दिया।
नेहा का संघर्ष, आखिरी साँस तक
नेहा खाली प्लॉट में गिरी। उसकी हड्डियाँ टूट चुकी थीं, लेकिन वो होश में थी। दर्द से तड़पती हुई बस पानी माँग रही थी।
लोगों ने दरवाज़ा तोड़कर उसे निकाला और अस्पताल पहुँचाया, लेकिन 5 घंटे बाद उसकी मौत हो गई।
तीन साल पहले आई थी ज़िंदगी में
तौफीक मुरादाबाद से तीन साल पहले दिल्ली आया था। इलाके के दुकानदारों के पास पल्लेदारी करता था।
खुद को अकेला बताकर मोहल्ले में नेहा के परिवार से नज़दीकी बढ़ाई – खाना माँगा, फिर ठंडा पानी, और धीरे-धीरे घर का हिस्सा बन गया।
नेहा ने उसे भाई मान लिया, राखी बाँधी, लेकिन तौफीक के इरादे कुछ और ही थे।
भाई से प्रेमी, और फिर कातिल बनने तक की कहानी
नेहा के लिए तौफीक ‘भइया’ था। लेकिन तौफीक ने उसे बीवी बनाना चाहा। जब नेहा ने इंकार किया, तो वो गुस्से से पागल हो गया।
परिवार ने उससे दूरी बना ली, लेकिन वो चोरी-छिपे नेहा से मिलता रहा। नेहा को शायद अंदाजा नहीं था कि ये अंत इतना भयावह होगा।
“पता नहीं था कि वो ऐसा दरिंदा निकलेगा” – पिता का दुख
ऑपइंडिया की टीम जब नेहा के घर पहुँची, तो वहाँ मातम पसरा था। नेहा के पिता फूट-फूट कर रो रहे थे, बोल नहीं पा रहे थे।
“हमें क्या पता था कि वो ऐसा निकलेगा? हम तो बस एक भूखे-प्यासे को पानी दे रहे थे। लेकिन इसकी सजा मेरी बेटी की जान बन गई।”
एक सवाल जो रह गया: क्या भरोसे की कोई कीमत नहीं?
नेहा की कहानी सिर्फ एकतरफा प्यार या जबरन निकाह की नहीं है। ये उस भरोसे के टूटने की कहानी है, जहाँ एक परिवार ने इंसानियत दिखाई और बदले में मिली मौत की सजा।
नेहा की बड़ी बहन की बातों में सिर्फ आँसू नहीं थे, एक समाज से सवाल था –
“अगर पानी पिलाना इतना बड़ा गुनाह बन गया, तो फिर हम इंसानियत कहाँ निभाएँगे?” जवाब इसका ये है – इन्सानियत इन्सानों से निभाइये, हैवानों से नहीं !