One Minute Read by Devendra Sikarwar: एक गहन सत्य को उजागर करने वाला संक्षिप्त-सार ध्यान देने योग्य है विशेषकर मराठी भाषा वाले हमारे आज के राजनीतिज्ञों के लिये..
म न से और राज ठाकरे अपने काका बाल ठाकरे की तर्ज पर उत्तर भारतीय विशेषतः पुरबियों को मराठी भाषा सिखाने की ओट में मराठावाद का जहर फैलाने निकले हैं।
मगर इससे पहले मराठों के आदर्श छत्रपति शिवाजी और हुतात्मा शंभाजी महाराज के इतिहास को ही ठीक से पढ़ लिया होता।
मराठा अस्मिता की पीठ में छुरा भोंकने वाले गणोजी शिर्के, सूर्याजी पिसाल जैसे सैकड़ो मराठा सरदार मराठी भाषा ही बोलते थे।
दूसरी ओर अपनी अंतिम सांस तक वीर शंभाजी के साथ तिल-तिल कर कट जाने वाला ‘कुलेश’ जिसे जीवन भर मराठा सरदारों ने ‘बाहरी’ और ‘कलुष’ कहकर लांछित किया, वह शंभाजी का ‘सहचर’ छँदोगामात्य कवि कलश’ ब्रजभाषी उत्तर भारतीय कन्नौज का पूरबिया ही था।
हालाँकि मेरे जैसे नगण्य मानुष के कहने से भला किसी को क्या ही फर्क पड़ेगा लेकिन अगर कोई इस पोस्ट को मराठी में अनुवाद करके उधर मराठियों विशेषतः राज ठाकरे तक इन पंक्तियों को पहुँचा सके तो जरूर पहुंचाना —
“जब भी किसी परप्रांतीय व्यक्ति का गला मराठी अस्मिता के नाम पर पकड़ो तो यह याद कर लेना कि गणोजी शिर्के व सूर्या जी पिसाल जैसे देशद्रोही कौन सी भाषा व जाति के थे और कवि कलश किस भाषा व क्षेत्र के थे!”
(देवेन्द्र सिकरवार)