23 जनवरी 2025*. सर्वत्र संस्कृतम् एवं विहार संस्कृत संजीवन समाज, पटना के तत्त्वावधान में “आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान” के अन्तर्गत आयोजित महर्षि श्री अरविन्द घोष स्मृति अन्तर्जालीय दशदिवसात्मक अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत सम्भाषण शिविर का समापन समारोह भव्यता और गरिमा के साथ सम्पन्न हुआ।
*अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉ. मुकेश कुमार ओझा*, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान, संस्कृत-विभागाध्यक्ष, फिरोज गाँधी महाविद्यालय; पाटलिपुत्र एवं महासचिव, विहार संस्कृत संजीवन समाज; पटना ने महर्षि श्री अरविन्द घोष को भारतीय चेतना के महान योद्धा के रूप में संबोधित किया। उन्होंने कहा, “महर्षि अरविन्द ने भारतीय संस्कृति और दर्शन को न केवल राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित किया, बल्कि इसे वैश्विक स्तर पर भी सम्मान दिलाया।
*उद्घाटनकर्ता डॉ. अनिल कुमार सिंह*, उत्तरप्रदेश गृह विभाग के सचिव और इस अभियान के प्रधान संरक्षक, ने अपने वक्तव्य में कहा, “महर्षि अरविन्द ने योग, अध्यात्म और राष्ट्रनिर्माण में जो योगदान दिया, वह अद्वितीय है। उनका दृष्टिकोण समय और सीमाओं से परे है। संस्कृत भाषा को उनके विचारों और दर्शन को समझने का माध्यम बनाना, उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।”
*मुख्य अतिथि धर्मेन्द्र पति त्रिपाठी*, संयुक्त निदेशक, पेंशन विभाग, उत्तर प्रदेश, ने कहा, “महर्षि अरविन्द ने भारत को आत्मनिर्भर और शक्तिशाली बनाने का स्वप्न देखा। उन्होंने योग और ध्यान के माध्यम से आत्मिक उन्नति की बात की। संस्कृत भाषा उनके दर्शन का मुख्य आधार रही।”
*विशिष्ट अतिथि एवं संस्कृत गीतकार डॉ. अनिल कुमार चौबे* ने अपने उद्बोधन में कहा, “महर्षि अरविन्द का जीवन संस्कृत साहित्य के प्रति उनके गहरे लगाव का प्रमाण है। उनके काव्य और ग्रंथों में संस्कृत भाषा की समृद्धता झलकती है। हमें उनके विचारों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए।”
*स्वागत भाषण में डॉ. रागिनी वर्मा*, गङ्गा देवी महिला कॉलेज की सह आचार्या और अभियान की राष्ट्रीय संयोजिका, ने कहा, “महर्षि अरविन्द का जीवन इस बात का प्रमाण है कि भारत का आध्यात्मिक धरोहर मानवता के कल्याण के लिए कितना प्रासंगिक है। इस शिविर ने उनके विचारों को एक बार फिर नई पीढ़ी तक पहुंचाने का माध्यम बनाया।”
*मंच संचालन का दायित्व राष्ट्रीय संयोजक पिंटू कुमार* ने कुशलतापूर्वक संपन्न किया. आप दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत शोधार्थी हैं। उन्होंने कहा, “महर्षि अरविन्द ने हमें आत्मा और शरीर के संतुलन के महत्व को सिखाया। संस्कृत उनके लिए न केवल भाषा थी, बल्कि आत्मा का आह्वान था। यह शिविर उनके प्रति हमारी श्रद्धा का प्रतीक है।”

*धन्यवाद ज्ञापन डॉ. लीना चौहान*, राष्ट्रीय उपाध्यक्षा, ने किया। उन्होंने कहा, “महर्षि अरविन्द का योगदान केवल भारत तक सीमित नहीं है। उन्होंने विश्व को शांति, आत्मा और आध्यात्मिकता का मार्ग दिखाया। संस्कृत के माध्यम से हम उनके विचारों को और अधिक प्रभावी ढंग से प्रचारित कर सकते हैं।”
इस शुभावसर पर संस्कृत संभाषण प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार असम विश्वविद्यालय के संस्कृत शोधार्थी सुजाता घोष एवं पवन छेत्री, द्वितीय पुरस्कार- बिहार के संस्कृत शिक्षक मुरलीधर शुक्ल एवं भोपाल के तारा विश्वकर्मा तथा तृतीय पुरस्कार बिहार के संस्कृत शिक्षक रामनाथ पाण्डेय व दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत शोधार्थी विजेंद्र सिंह को प्राप्त हुआ। साथ ही विशेष पुरस्कार बिहार की तन्नु कुमारी एवं रम्भा कुमारी को प्रदान किया गया।
इस अवसर पर विविध संस्कृत विद्वान यथा दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत शोधार्थी सौरभ शर्मा, बिहार के संस्कृत शिक्षक सुनील कुमार चौबे, अभियान के उपाध्यक्ष उग्र नारायण झा ने भी अपने अपने विचार व्यक्त किए।समापन समारोह में उपस्थित सभी विद्वानों ने इस प्रयास को एक ऐतिहासिक पहल बताया।
दस दिवसीय इस शिविर में प्रतिभागियों ने संस्कृत भाषा में संवाद और विचार-विमर्श के माध्यम से महर्षि अरविन्द के विचारों और दर्शन को समझने का प्रयास किया। यह शिविर महर्षि अरविन्द के दर्शन को जीवन में आत्मसात करने और संस्कृत भाषा को आधुनिक युग में प्रासंगिक बनाने के प्रयास के रूप में हमेशा याद किया जाएगा।
इस शिविर का उद्देश्य संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के साथ-साथ महर्षि श्री अरविन्द घोष के विचारों और दर्शन को जन-जन तक पहुंचाना था। समापन समारोह में विद्वानों और अतिथियों ने महर्षि श्री अरविन्द के योगदान और संस्कृत भाषा के महत्व पर गहन विचार-विमर्श किया।
(ऑनलाइन संस्कृत संभाषण सीखने हेतु संपर्क करें: 9430588296, 6299476166 ,9555642611)