Parakh Saxena writes: ये क्रांति हमें सकारात्मक रूप मे लेना चाहिए हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी को जिंदा जलाना बेहद अमानवीय था..
नेपाल मे जो हो रहा है वो गलत नहीं है, ये आज नहीं तो कल होना ही था। लोकतंत्र आवश्यकता पड़ने पर लाया जाए तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन यहाँ लोकतंत्र कम्युनिस्टों ने थोपा था।
लोकतंत्र एशिया मे सिर्फ भारत और जापान मे ही सफल हुआ है, कारण की यहाँ आवश्यकता थी। भारत मे यदि अंग्रेज नहीं आते तो मराठा साम्राज्य यथावत चल रहा होता।
लेकिन नेपाल मे 2008 मे बस एक जूनून उठा और राजशाही उठाकर फेक दी गयी। इन 17 सालो मे लोकतंत्र से ऐसा क्या उखाड़ लिया ये तो समझ से बिल्कुल परे है।
इन्हे वापस राजशाही ही लाना चाहिए, ज्ञानेंद्र शाह को वापस गद्दी पर बैठना चाहिए। लोकतंत्र अच्छा कांसेप्ट है मगर नेपाल के लिये बिल्कुल नहीं, क्योंकि ये हमेशा से राजशाही रही है और इनका नेतृत्व नेपाल के लोगो के अनुकूल था।
नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हालात देखने के बाद अब भारत को लेकर सुकून है। ऐसे घटनाक्रम के प्रयास भारत मे होंगे मगर सफलता नहीं मिलेगी और इसका अपना राष्ट्रीय कारण है।
भारत मे हिन्दू के सोचने का तरीका अब तक श्राप था मगर आज वरदान है। मणिपुर मे यदि नस्लीयता किनारे की जाए तो वो दंगे हिन्दू ईसाईयों के थे, अब आप सोचिये कि मणिपुर के बाहर कितने हिन्दू ईसाई आपस मे भिड़े?
भारत मे तख्तापलट या आंदोलन लोकतान्त्रिक रूप से ही संभव है, दूसरा कोई तरीका नहीं है यदि भारत मे जनता राजा से बहुत ज्यादा त्रस्त होती है तो वो एक विकल्प ढूंढ़कर उसे दिल्ली के सिन्हासन पर बैठाती है।
यदि विकल्प नहीं होता तो जनता ढोना पसंद करती है, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी ये दो प्रधानमंत्री उसी संक्रांति का नतीजा थे जो कांग्रेस द्वारा हुए उत्पीड़न से जन्मी थी।
यदि मोदीजी के खिलाफ ऐसा कुछ करने का प्रयास होता तो असफल रहेगा क्योंकि ऐसी सफलता सिर्फ सेना, किसान और छात्रों को मिलती है। फिलहाल ये तीनो ही वर्ग बीजेपी से संतुष्ट नहीं अपितु अति संतुष्ट है।
भारत मे आवश्यकता लगी भी तो संघ की नर्सरी से निकला कोई पौधा ही वृक्ष का रूप लेगा। जहाँ तक नेपाल की बात है केपी ओली को आज महसूस हो रहा होगा कि भारत से पंगे लेकर उन्होंने कितनी बड़ी गड़बड़ की है।
जितनी देर मे शेख हसीना को निकाल लिया था उतनी देर मे ओली को भी निकाल लेते, लेकिन मोदी शाह राजनाथ और जयशंकर को बार बार नाराज करके ओली ने दिल्ली के दरवाजे खुद बंद करवाए।
ये क्रांति हमें सकारात्मक रूप मे लेना चाहिए हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री की पत्नी को जिंदा जलाना बेहद अमानवीय था।
ये दिन भारत विशेषकर बीजेपी के लिये यादगर रहा, उपराष्ट्रपति चुनाव मे 20 वोट इंडी वालो के तुड़वा लिये। जो राहुल गाँधी की कमजोरी दर्शाता है, दूसरी ओर एक भारत विरोधी सरकार पड़ोस मे गिर गयी अब आवश्यक है कि नए समीकरण भारत के अनुरूप हो।
मोदी है तो सेफ है…
(परख सक्सेना)