Rajesh Khanna: उनकी फिल्में, उनके डायलॉग, और उनकी मुस्कान आज भी लोगों को प्रेरणा देती हैं। जब पुरानी फिल्मों की बात होती है — ‘काका’ का नाम ज़रूर आता है..
राजेश खन्ना वो अभिनेता थे जिन्होंने अपनी अदायगी, डायलॉग डिलीवरी और रोमांटिक अंदाज़ से सिनेमा के परदे पर जादू बिखेरा। उनकी फिल्में जब सिनेमाघरों में चलती थीं तो दर्शक तालियों से स्वागत करते थे। उन्होंने एक ऐसा रिकॉर्ड बनाया, जिसे आज तक कोई नहीं तोड़ पाया — लगातार 17 सुपरहिट फिल्मों का सिलसिला।
जब ‘काका’ पर्दे पर होते थे, दर्शक साँस रोककर देखते थे
राजेश खन्ना की सबसे खास बात थी उनकी आँखों की बात, मुस्कान, और डायलॉग बोलने का अंदाज़। जैसे फिल्म ‘आनंद’ का यह डायलॉग —
“बाबू मोशाय, ज़िंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है…”
यह लाइन आज भी लोगों को भावुक कर देती है। उनकी फिल्मों में ऐसा जादू था कि लोग एक ही फिल्म को बार-बार देखने के लिए टिकट खरीदते थे।
एक स्टार जिसका रिकॉर्ड अब तक कोई नहीं तोड़ सका
बॉलीवुड में कई दिग्गज हुए — दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन — लेकिन “सुपरस्टार” का टैग सबसे पहले राजेश खन्ना को मिला। उन्होंने नाम कमाया, प्यार पाया और फिर करियर में उतार-चढ़ाव भी देखा। लेकिन कभी हार नहीं मानी।
सिर्फ अभिनय नहीं, स्टाइल और मुस्कान से भी जीते दिल
उनके बालों को झटकने का अंदाज़ और हल्की सी मुस्कान ने उन्हें खास बना दिया। खासकर महिला दर्शकों के बीच उनकी जबरदस्त फैन फॉलोइंग थी। 1971 की फिल्म ‘आनंद’ में गंभीर बीमारी से जूझते किरदार को उन्होंने ऐसा निभाया कि लोग आज तक उस भूमिका को याद करते हैं।
पर्दे से संसद तक: राजनीति में भी चमका नाम
राजेश खन्ना ने डिंपल कपाड़िया से शादी की — जो उस समय केवल 16 साल की थीं और उनकी जबरदस्त फैन थीं। हालांकि, उनके वैवाहिक जीवन में बाद में कई उतार-चढ़ाव आए। उन्होंने फिल्म निर्माण में भी कदम रखा और बाद में राजनीति में कांग्रेस पार्टी से सांसद बने। दोस्तों के अनुसार वे “यारों के यार” थे — मदद करने में कभी पीछे नहीं हटते।
फिल्मों के गानों में भी था राजेश खन्ना का जादू
ज्यादातर फिल्मों में किशोर कुमार की आवाज उनके लिए चुनी जाती थी — जैसे ‘अमर प्रेम’, ‘कटी पतंग’, ‘मेरे जीवन साथी’ — जिनके गाने आज भी लोगों की पसंद हैं।
आज भी ज़िंदा हैं ‘काका’ की यादें
राजेश खन्ना का जन्म 29 दिसंबर 1942 को अमृतसर में हुआ था और 18 जुलाई 2012 को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हुआ। लेकिन उनकी फिल्में, उनके डायलॉग, और उनकी मुस्कान आज भी लोगों को प्रेरणा देती हैं। जब पुरानी फिल्मों की बात होती है — ‘काका’ का नाम ज़रूर आता है।
(प्रस्तुति – अंजू डोकानिया)