RSS: विश्व के सबसे बड़े राष्ट्रभक्त संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक परमपूज्य डॉक्टर हेडगेवार का संक्षिप्त परिचय जानिये..
वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का उल्लेख प्रायः सुनने में आता रहता है। ऐसे में यह जानना महत्वपूर्ण है कि जब भी आरएसएस की बात होगी, तब केशव बलिराम हेडगेवार का नाम अवश्य लिया जाएगा। उन्होंने 1925 में 17 सहयोगियों के साथ मिलकर इस संगठन की नींव रखी थी।
डॉ. हेडगेवार का पूर्ण नाम केशव बलिराम हेडगेवार था। डॉक्टर साहब बचपन से ही क्रांतिकारी विचारधारा के थे और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मुखर थे। उनके जीवन से जुड़ा एक महत्वपूर्ण किस्सा उनके निधन के 14 दिन बाद सामने आया, जब गुरु गोलवलकर ने उनके द्वारा लिेखे अंतिम पत्र को पढ़ा। सबको चौंकाते हुए इस पत्र में हेडगेवार डी ने गुरू जी को संघ का उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।
अंतिम पत्र का रहस्य
डॉ. हेडगेवार का 21 जून 1940 को नागपुर में देहावसान हुआ। उन्होंने अपने निधन से एक दिन पहले गुरु माधव सदाशिव गोलवलकर को एक पत्र सौंपा था। यह पत्र 3 जुलाई 1940 को खोला गया और इसमें संघ के अगले सरसंघचालक के रूप में गुरु गोलवलकर का नाम सामने आया।
उस समय संघ में अप्पाजी जोशी को उत्तराधिकारी माना जा रहा था, लेकिन हेडगेवार के इस निर्णय ने सभी को चौंका दिया। अपने इस महत्वपूर्ण व अंतिम पत्र में डॉक्टर साहब ने गुरू जी के लिये लिखा था कि “संघ को आगे बढ़ाने की पूरी जिम्मेदारी अब तुम्हारी होगी।”
प्रारंभिक जीवन
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डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल 1889 को नागपुर में हुआ था।
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वह बचपन से ही क्रांतिकारी सोच के थे और अंग्रेजी शासन से नफरत करते थे।
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10 वर्ष की उम्र में उन्होंने रानी विक्टोरिया के राज्यारोहण की 50वीं जयंती पर बांटी गई मिठाई फेंक दी थी और ब्रिटिश शासन का जश्न मनाने से इनकार कर दिया था।
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16 वर्ष की उम्र में, जब स्कूल में अंग्रेजी निरीक्षक आया, तो उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर “वंदे मातरम्” का नारा लगाया। इसके चलते उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया।
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उन्होंने पूना के नेशनल स्कूल से मैट्रिक तक की पढ़ाई की और 1910 में मेडिकल की पढ़ाई के लिए कोलकाता गए, जहां वह क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ गए।
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1915 में नागपुर लौटने के बाद, उन्होंने कांग्रेस में सक्रिय भूमिका निभाई।
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1920 में नागपुर कांग्रेस अधिवेशन में उन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखा, लेकिन इसे स्वीकार नहीं किया गया।
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1921 में असहयोग आंदोलन में भाग लिया और एक वर्ष की जेल भी काटी, लेकिन बाद में उनका कांग्रेस और महात्मा गांधी से मोहभंग हो गया।
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उनके विचारों पर बाल गंगाधर तिलक और वीर सावरकर का गहरा प्रभाव था।
प्रेरणादायक विचार
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संघ का उद्देश्य लोगों को जोड़ना है, तोड़ना नहीं।
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अच्छे संस्कारों के बिना सच्ची देशभक्ति संभव नहीं।
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हिंदू समाज को संगठित और जागरूक करना ही राष्ट्र जागरण है।
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भावनाओं में बहकर सामाजिक कार्यों में जुड़ने वाले लोग अक्सर कठिनाइयों में पीछे हट जाते हैं, ऐसे लोगों के साथ समाज को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।
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राष्ट्रसेवा सर्वोपरि है।
आरएसएस की स्थापना
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की स्थापना विजयादशमी के दिन 1925 में नागपुर में हुई थी।
इसके संस्थापक सदस्यों में शामिल थे:
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विश्वनाथ केलकर
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भाऊजी कावरे
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अण्णा साहने
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बालाजी हुद्दार
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बापूराव भेदी
संघ अपना स्थापना दिवस विजयादशमी उत्सव के रूप में मनाता है और इस दिन शक्ति की उपासना की जाती है।