Sarvesh Tiwari के संक्षिप्त आलेख से जानिये शूरवीर महाराणा सांगा क्या थे..
पुराने भारत का का मानचित्र निकाल कर देखिये तो आप पाएंगे कि राजस्थान के तीन ओर तीन बड़े साम्राज्य थे। उत्तर की ओर दिल्ली का लोदी सल्तनत, दक्षिण की ओर गुजरात में अफगान और तीसरी ओर मालवा में खिलजी। तीनों के तीनों कट्टर शत्रु थे, शक्तिशाली थे, और बस मौके की तलाश में बैठे थे। महाराणा को तीनों ओर देखना था।
सन 1517 में दिल्ली की ओर एक बार देखा भर था उन्होंने। इब्राहिम लोदी से भेंट हुई, खतौली का युद्ध कहते हैं इसे। केवल पांच घण्टे की लड़ाई में इतना मारा राजपूतों ने कि दिल्ली की सेना भाग पड़ी, और उसी के बीच में छिपकर, किसी तरह जान बचा कर भागे थे सुल्तान! उनका बेटा फिर भी धर लिया गया। बाप ने ढेर सारा धन दिया, जमीन दी, गिड़गिड़ाया तो छोड़ा गया उसे। दयालु लोग थे न, छोड़ दिया। इसी युद्ध में राणा सांगा की बांह गयी थी।
इब्राहिम ने फिर तैयारी की। मालवा और गुजरात की मदद ली और निकल पड़ा महाराणा से बदला लेने। भेंट हुई धौलपुर में। सन 1518 में। राणा की सेना से दोगुनी सेना के साथ आये थे लोदी बादशाह! फिर? बुरी तरीके से कूटे गए। इधर वालों ने आगरा तक खदेड़ कर मारा। और जहां तक खदेड़ा वहाँ तक की जमीन भी अपने नाम की। लोदी इतने कमजोर हो गए कि उसके बाद से बाबर के आक्रमण तक लगभग आठ वर्षों में इब्राहिम लोदी ने कोई बड़ी लड़ाई नहीं लड़ी थी। दिल्ली अब बस नाम की दिल्ली थी।
सन 1519 में राणा के सामने आए मालवा के सुल्तान महमूद शाह खिलजी द्वितीय। गागरौन का युद्ध कहते हैं इसे। राणा सांगा महमूद शाह को पुत्र समेत बांध कर ले आये मेवाड़! खिलजी कैद में रहे। बाद में उन्हें छोड़ा गया, तब जीवन भर स्वामिभक्ति के वादे के साथ महमूद शाह के सुपुत्र कुछ दिन राणा के दरबार में रहे…
अच्छा रुकिये! आपको याद होगा कि अकबर ने जजिया कर हटाया था। थोड़ा सा सुधार कर लीजिये, कम से कम मालवा से जजिया हटाने का श्रेय महाराणा सांगा को जाता है। तब अकबर का जन्म भी नहीं हुआ था।
मालवा के साथ हुए युद्ध के समय गुजरात की सेना मालवा के साथ खड़ी थी। राणा की सेना ने उन्हें उसी समय तहस नहस कर दिया था। फिर कुछ महीनों बाद सन 1520 में राणा फिर मुड़े गुजरात की ओर! मुहम्मद शाह द्वितीय से भेंट हुई। उसका शाही खजाना लिया, बड़ा भूभाग लिया और अहमदाबाद तक धकेल दिया।
1520 आते आते मालवा, गुजरात और दिल्ली तीनों को लगभग ध्वस्त कर दिया था महाराणा ने। राणा का साम्राज्य बहुत बड़ा हो चुका था, और सुरक्षित भी था।
बाबर की सेना से राणा का सामना हुआ बयाना में। सन 1527 ई.। राणा की सेना किस तरह जीती और क्या क्या हुआ यह छोड़िये, शर्मा जी अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि इस युद्ध के बाद राजपूतों ने मुगल सेना को दौड़ा दौड़ा कर पीटा था। मतलब समझ रहे हैं? मने दौड़ा दौड़ा कर… कूट के रख दिया था।
लोदी को हराने के लिए राणा को किसी की मदद की जरूरत ही नहीं थी। वे उसे दो बार हरा चुके थे और हर बार हराने की क्षमता रखते थे।
(सर्वेश कुमार तिवारी, गोपालगंज, बिहार)