Wednesday, October 22, 2025
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Satish Chandra Mishra writes: शराब और मांस को स्पर्श न करने वाले भारत कुमार सनातन प्रेमी थे

Satish Chandra Mishra की कलम से जानिये मूल परिचय उन भारत कुमार का जो अब हमारी चिर-स्मृतियों मे रहेंगे..

Satish Chandra Mishra की कलम से जानिये मूल परिचय उन भारत कुमार का जो अब हमारी चिर-स्मृतियों मे रहेंगे..
भारत का रहने वाला हूं… भारत की बात सुनाता हूं… गाते हुए भारत को आज अलविदा कह गए… मनोज कुमार।
उनको तब तक भुलाना असंभव होगा… जबतक यह देश है। आज पचास और साठ वर्ष पश्चात् भी, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर बजने वाले गीतों का विकल्प देश नहीं ढूंढ सका है. “मेरे देश की धरती सोना उगले… हो या पूरब पश्चिम फिल्म में भारत की बात सुनाने वाला भारत कुमार… जिसे फिल्मी दुनिया मनोज कुमार के नाम से जानती थी और घरवाले हरिकृष्ण गोस्वामी के नाम से।
देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी उनके निधन पर उनको श्रद्धांजलि देते हुए यही लिखा है कि, “वे भारतीय सिनेमा के प्रतीक थे, जिन्हें विशेष रूप से उनकी देशभक्ति की भावना के लिए याद किया जाता है, जो उनकी फिल्मों में भी झलकती थी। मनोज जी के कामों ने राष्ट्रीय गौरव की भावना को प्रज्वलित किया और वे पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे।”
आधी सदी तक फिल्मी दुनिया में जीवन गुजारने वाले मनोजकुमार ने शराब और मांस को छुआ तक नहीं था। सनातन धर्म के प्रति ऐसी आस्था थी कि, समुद्र पार नहीं करने की प्राचीन सनातनी मान्यता के तहत कभी विदेश यात्रा ही नहीं की। संभवतः क्रांति फिल्म के किसी तकनीकी मसले के कारण वो जापान गए थे।
मनोज कुमार इसलिए भी अद्वितीय थे, क्योंकि उनकी बनाई हर फिल्म में “देश” का दिल, देश की मस्ती धड़कती थी।
याद करिए 1974 का वो वातावरण जब देश में लोकतंत्र की धज्जियां उड़ाते हुए इंदिरा गांधी नाम की तानाशाह पूरी तरह आकार ले चुकी थी, इंदिरा गांधी के कुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ बिरली आवाज़ें ही सुनाई देती थी। उस दौर में इंदिरा गांधी द्वारा इमरजेंसी लगाए जाने से पूर्व मनोजकुमार की फिल्म “रोटी कपड़ा और मकान” ने अमर हो चुके गीत “…. बाकी कुछ बचा तो महंगाई मार गई” से तत्कालीन व्यवस्था पर प्रचंड प्रहार करने का साहस दिखाया था… इसकी कीमत भी उन्होंने चुकाई। साढ़े पांच करोड़ के बजट से बनी रोटी कपड़ा और मकान ने 157 करोड़ रू की कमाई की थी। आज के हकले, बौने, मुष्टंडे सुपरस्टारों के लिए ऐसी सफलता पाना आज भी एक सपना मात्र ही है।
लेकिन इंदिरा गांधी के खिलाफ उस विरोध की कीमत भी मनोज कुमार को चुकानी पड़ी थी। रोटी कपड़ा और मकान सरीखी सुपरहिट फिल्म के बाद संन्यासी और दस नंबरी के बाद 1981 में “क्रांति” के साथ ही मनोज कुमार का फिल्मी सितारा ऐसा डूबा या डुबोया गया… कि वो फिर उबर नहीं सका।
मनोज कुमार पर लिखना या बोलना हो तो समय हमेशा कम पड़ेगा, रात में मनीष ठाकुर शो में चर्चा करूंगा भी।लेकिन फिल्मों को उनके एक योगदान का जिक्र किए बिना बात नहीं खत्म कर सकता।
फिल्म दुनिया के सर्वकालीन सर्वश्रेष्ठ खलनायक प्राण को चरित्र अभिनेता के रूप में प्रस्तुत करने का जो साहस मनोज कुमार ने दिखाया था वह अतुलनीय था.
केवल उस एक फिल्म के एक रोल ने रातोंरात प्राण के जीवन में सकारात्मक बदलाव किया था। उसका लाभ फिल्म दुनिया को तीन दशकों तक मिला। ऐसा पारखी और राष्ट्रप्रेमी फिल्म निर्माता निर्देशक कलाकार आज जब भारत को अलविदा कह कर गया तो दुःख होना स्वाभाविक है।
ईश्वर उनकी आत्मा को शांति और मोक्ष प्रदान करे।
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