Friday, August 8, 2025
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Shivaji Maharaj: राष्ट्रभक्ति, धर्मप्रेम, शौर्य ही नहीं हमारे शिवाजी का परिचय है चरित्र भी !!

Shivaji Maharaj:  भारतपुत्र महावीर छत्रपति शिवाजी का जीवन ही उनका संदेश है आने वाली पीढ़ियों के लिए. छत्रपति शिवाजी महाराज की महानता के दृष्टांत एक नहीं अनेक हैं..

Shivaji Maharaj:  भारतपुत्र महावीर छत्रपति शिवाजी का जीवन ही उनका संदेश है आने वाली पीढ़ियों के लिए. छत्रपति शिवाजी महाराज की महानता के दृष्टांत एक नहीं अनेक हैं..
एक बार जब उपहार स्वरुप शिवाजी महाराज के सामने किसी सुंदर स्त्री को प्रस्तुत किया गया तब शिवाजी महाराज के यही शब्द थे कि काश ऐसी सुंदर मेरी जननी माता होती तो मैं भी ऐसा सुंदर रूप पाता …… शब्दों का तात्पर्य वह हर पराई स्त्री को अपनी बहन व माता के समान मानते थे.
छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में कभी भी किसी औरत का नाच गाना नहीं हुआ l महिलाओं का हमेशा सम्मान किया जाता था चाहे वह दुश्मन की पत्नी भी क्यों ना हो l महिलाओं की गरिमा हमेशा बनाए रखी। बेशक वह महिला किसी भी जाति या धर्म से हो क्यों ना हो.
28 फरवरी 1678 में, सुकुजी नामक सरदार ने बेलवाड़ी किले की घेराबंदी की। इस किले की किलेदार एक स्त्री थी।
उसका नाम सावित्रीबाई देसाई था। इस बहादुर महिला ने 27 दिनों तक किले के लिए लड़ाई लड़ी। लेकिन अंत में, सुकुजी ने किले को जीत लिया और सावित्रीबाई से बदला लेने के लिए उसका अपमान किया l
जब राजे ने यह समाचार सुना, तो वह क्रोधित हो गए । राजे के आदेशानुसार सुकुजी की आंखें फोड कर उसे आजीवन कैद कर दिया गया.
24 अक्टूबर 1657 को छत्रपति शिवाजी महाराज के आदेश पर सोने देव ने जब कल्याण के किले पर घेराबंदी की और उसको जीत लिया l उस समय मौलाना अहमद की पुत्रवधू यानी औरंगजेब की बहन और शाहजहां की बेटी रोशनआरा जो एक अभूतपूर्व सुंदरी थी l जिसको किले में कैद कर लिया गया उसके बाद सैनिकों ने उस रोशना आरा को जब छत्रपति शिवाजी महाराज के सामने पेश किया तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने सैनिकों को यह कहा था की यह तुम्हारी पहली और आखरी गलती है l उसके बाद अगर ऐसा अपमानित करने का कार्य किसी भी जाति और धर्म की औरत के साथ किया तो इसकी सजा मौत होगी l

इसके उपरान्त महावीर शिवाजी महाराज ने आदेश दिया और फिर एक पालकी सजा कर रोशनआरा को उसके इच्छा के अनुसार उसके महल में भेज दिया गया l

इसी प्रकार से शाइस्ता खान ने सन 1663 ईस्वी में कोंकण को जीतने के लिए अपने सेनापति दिलेर खान के साथ एक ब्राह्मण उदित राज देशमुख की पत्नी राय बाघिन( शेरनी) को भेजा तो छत्रपति शिवाजी महाराज ने राय बाघिन और मुगल दिलेरखान को रात में कोल्हापुर में ही घेर लिया और दिलेरखान अपनी जान बचा कर भाग गया l उस समय राय बाघिन को एक सजी हुई पालकी में बैठा कर वापसी उसके घर भेज दिया था.

अगर किसी दुश्मन की पत्नी भी चाहे वह किसी भी धर्म या जाति से हो लड़ाई में फंस जाती है, तो उसे परेशानी नहीं होना चाहिए l शिवाजी महाराज के इस तरह के आदेश पत्थर की लकीर होते थे.
(डॉक्टर विवेक आर्य)
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