Sonam Wangchuk: क्या 3 इडियट्स सिर्फ एक #फिल्म थी, या सोनम वांगचुक के ‘विशेष नायकत्व’ की अंतरराष्ट्रीय ब्रांडिंग का सीक्रेट ऑपरेशन?..
सोनम वांगचुक की छवि का निर्माण भारतीय #सिनेमा के इतिहास में एक अद्वितीय ‘सोशल इंजीनियरिंग’ ऑपरेशन का उदाहरण है, जिसे ‘3 इडियट्स’ ने नए स्तर पर पहुँचा दिया ।
साल 2009—भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में “3 इडियट्स” फिल्म तूफान की तरह आई । आलोचकों ने इसे शिक्षा #परिवर्तन का ‘रोल मॉडल’, बच्चों और युवाओं ने ‘विद्रोह का आदर्श’, और पूरी व्यवस्था ने ‘मास अपील’ का नया कोड मान लिया ।
#चीन जैसे संप्रभु, कंट्रोल्ड-मीडिया वातावरण में भी, यह फिल्म न सिर्फ ब्लॉकबस्टर रही, बल्कि “युवा अवसाद” और “सिस्टम विद्रोह” का लोकप्रिय प्रतीक बन गई ।
यह फिल्म केवल एक मनोरंजन नहीं थी—बल्कि एक गहराई में छुपी हुई सांस्कृतिक #रणनीति, जिसमें “हीरो-मेकिंग” और सॉफ्ट पावर का खेल खुलकर सामने आया ।
इसका सबसे बड़ा असर चीन जैसे देशों में देखा गया, जहाँ इसने शिक्षा व्यवस्था, “parental pressure” और युवा आंदोलन को नई दिशा दी।
‘3 इडियट्स’ वैश्विक स्तर पर बेमिसाल हिट रही—460 करोड़ रुपये की कमाई, 32 देशों में रिलीज़, और चीन में तो इतना लोकप्रिय कि विश्वविद्यालयों ने इस फिल्म को “stress-relief study tool” जैसा दर्जा दिया ।
यही सफलता थी, जिसके सहारे “सोनम वांगचुक” के वास्तविक जीवन को फिल्म के मुख्य किरदार ‘फुनसुक वांगडू’ से जोड़ते हुए लगातार मीडिया कैम्पेन चलाया गया । जबकि तथ्य यह है कि फिल्म “चेतन भगत” के उपन्यास ‘”Five Point Someone” पर आधारित थी, न कि #वांगचुक की बायोग्राफी पर ।
2010-11 के बाद से मीडिया ने ‘रियल लाइफ रैंचो’ के नरेटिव को आगे बढ़ाया—जिसके तहत “सोनम वांगचुक” को देश- विदेश में शिक्षा सुधारक, विचारशील इनोवेटर और युवा आंदोलन के प्रेरणास्त्रोत के रूप में प्रचारित किया गया । यह वही पैटर्न है, जो #बांग्लादेश के मुहम्मद यूनुस के साथ इस्तेमाल हुआ—जहाँ पहले ‘बैन्कर टू द पुअर’, नोबेल प्राइज और फिर पॉलिटिकल एजेंडे के सेलिब्रिटी चेहरा बने गए ।
फिल्म इंडस्ट्री ने इस नायकत्व को सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रखा । चीन में इसकी ‘क्रांतिकारी’ छवि को गहराई से फैलाया गया—मूल्य प्रणाली, व्यवस्था-आलोचना और युवा विद्रोह को मंच प्रदान किया । यहाँ तक कि “तुम्हारा पैशन फॉलो करो” और “व्यवस्था का विरोध करो” जैसे #मैसेज भारतीय और चीनी दोनों युवाओं के लिए नया नैरेटिव बन गए, जबकि फिल्म का असली आधार एक इंजीनियरिंग कॉलेज का अनुभव था ।
इसके बाद सोनम वांगचुक को कई अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड मिले—2016 में रोलेक्स, 2018 में मैग्सेसे—और ‘अन्तरराष्ट्रीय मान्यता’ के जरिए #विदेशी फंडिंग व नेटवर्क को वैधता मिल गई । इसके बाद, स्थानीय आंदोलन हो या वैश्विक मंच—हर जगह इनके नायकत्व को एजेंडे के अनुरूप amplify (बढ़ाया चढ़ाया गया) किया गया ।
पहचान, वैधता, फंडिंग, प्लेटफॉर्म, और फिर—राजनैतिक मुहिम ।
अब यह दुनियाभर में अमेरिकी गुप्त अभियानों का ओपन सीक्रेट है ।
ऐसा “हीरो निर्माण मॉडल” अब #ग्लोबल टेम्पलेट बन गया है—ग्रेटा थनबर्ग (क्लाइमेट एक्टिविज़्म), मलाला यूसुफजई (एजुकेशन राइट्स), यूनुस (माइक्रोफाइनेंस), अरविंद केजरीवाल (एंटी करप्शन), वांगचुक (एजुकेशन इनोवेशन)—सभी में पहले पहचान, फिर वैधता, फिर फंडिंग, और आखिर में पॉलिटिक्स ; सबकुछ ‘नोबल कॉज़’ और ‘मास अपील’ के आवरण में ।‘
3 इडियट्स’ इफेक्ट का सबसे बड़ा दुष्प्रभाव यह हुआ कि —
भारतीय युवा तेजी से #पश्चिमी आइडियोलॉजी, एंटी- एस्टैब्लिशमेंट मानसिकता और इंडिविज़ुअल जीनियस के मिथक से जुड़ते जाते हैं (अर्थात वो व्यक्ति जो अलग सोचता है, सिस्टम को तोड़ता है, अकेले रचनात्मक समाधान देता है।); भारतीय शिक्षा प्रणाली, संस्थागत व्यवस्था का सम्मान कम होता है ; और जब कोई व्यक्ति अचानक #अवॉर्ड व फंडिंग के माध्यम से नायक बना दिया जाए—तो वह लोकतांत्रिक आलोचना से परे एक ‘मोरल अथॉरिटी’ के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है ।
सोनम वांगचुक और ‘3 इडियट्स’ के नायकत्व का यह मास्टर -स्ट्रोक—बांग्लादेश के यूनुस मॉडल की तरह—एक ‘manufactured hero’ का ग्लोबल उदाहरण है । भारत को ऐसे सांस्कृतिक infiltration और हीरो मैन्युफैक्चरिंग के पैटर्न को पहचानना, उसका विश्लेषण और जबाब देना अनिवार्य है, क्योंकि यह सीधा सैन्य खतरे से भी ज्यादा खतरनाक हथियार साबित हो सकता है ।
ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या आमिर खान ‘selective activism’, ‘soft propaganda’, ‘cultural influencer’ या किसी बड़े एजेंडे का टूल तो नहीं ?
ऐसा प्रश्न इसलिए उठना स्वाभाविक है, क्योंकि—
पहले तो चेतन भगत के #उपन्यास के नायक को सोनम वांगचुक से ना केवल जोड़ा, बल्कि चेहरा मोहरा भी वैसे ही बनाया गया ।
फिर 2020 में जब वे ‘लाल सिंह चड्ढा’ की शूटिंग के लिए तुर्की गए, तो तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान की पत्नी एमिन एर्दोगान से अंतरराष्ट्रीय मीडिया-हाइलाइटेड मुलाकात की । वही #तुर्की, जिसने बार-बार भारत के खिलाफ पाकिस्तान का खुला समर्थन किया, भारत की नीति का UN में विरोध किया, और हिन्दुस्तान विरोधी बयानों की झड़ी लगाई ।
ये वही आमिर खान थे, जो #इजरायल के प्रधानमंत्री के खास बॉलीवुड कार्यक्रम से गायब रहे, पर तुर्की के खिलाफ भारत की संवेदनशीलता की अनदेखी की। और पिछले दिनों गिरगिट की तरह रंग बदल टीका लगाये, कलावा बांधे प्रधानमंत्री मोदी को जन्म दिन की बधाई देते दिखे ।
(मनोज कुमार)