द न्यूयॉर्क टाइम्स ने 1930 में “आइंस्टीन और टैगोर प्लंब द ट्रुथ” शीर्षक के साथ एक लेख लिखा और “मैनहट्टन में एक गणितज्ञ और एक रहस्यवादी की मुलाकात” कैप्शन लिखकर एक यादगार तस्वीर (उनकी न्यूयॉर्क बैठक की) के साथ छापा।
रवींद्रनाथ टैगोर और अल्बर्ट आइंस्टीन (1930) मैनहट्टन में मिले थे थे। यह मुलाकात इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है, क्योंकि यह दो महान विचारकों—एक रहस्यवादी कवि और एक वैज्ञानिक के बीच एक गहरे बौद्धिक संवाद का उदाहरण थी।
यह मुलाकात आइंस्टीन के जर्मनी से अमेरिका आने के बाद हुई थी, और टैगोर अमेरिका यात्रा पर थे। दोनों के बीच बातचीत मुख्यतः विज्ञान और दर्शन के बीच के संबंधों को लेकर हुई।
टैगोर, जो एक दार्शनिक दृष्टिकोण रखते थे, उन्होंने आइंस्टीन से ब्रह्मांड, सृष्टि और अस्तित्व के अर्थ पर चर्चा की, जबकि आइंस्टीन, जो एक सख्त वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते थे, उन्होंने भौतिक विज्ञान के सिद्धांतों और उनके ब्रह्मांड के बारे में दृष्टिकोण को साझा किया।
इस मुलाकात के दौरान टैगोर ने आइंस्टीन से कहा कि उनका मानना है कि ब्रह्मांड केवल भौतिक और गणितीय नियमों से संचालित नहीं होता, बल्कि उसमें एक दिव्य और रहस्यमय तत्व भी है।
टैगोर ने कहा कि मानव चेतना और अनुभव के ऊपर कोई सूक्ष्म और अदृश्य शक्ति काम करती है। वहीं, आइंस्टीन ने विज्ञान के माध्यम से ब्रह्मांड के कार्य करने के तरीके को समझाने की कोशिश की.
आइंस्टीन ने कहा कि भौतिक नियम ही ब्रह्मांड के अस्तित्व का सत्य हैं, लेकिन वे इस बात से भी सहमत थे कि कुछ तत्वों को पूरी तरह से समझ पाना हमारे लिए संभव नहीं है।
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इस मुलाकात का मुख्य बिंदु यह था कि एक ओर जहां टैगोर ने ब्रह्मांड के रहस्य और आत्मा की अवधारणा को समझने की कोशिश की, वहीं आइंस्टीन ने उसे गणितीय और भौतिक दृष्टिकोण से देखने का प्रयास किया।
दोनों ही महापुरुषों के दृष्टिकोण में अंतर था, लेकिन इस मुलाकात ने यह स्पष्ट किया कि विज्ञान और आध्यात्मिकता दोनों के बीच गहरा संबंध हो सकता है।
यह मुलाकात एक ऐतिहासिक चर्चा का हिस्सा बन गई, जो न केवल दर्शन और विज्ञान के बीच संबंध को समझने की कोशिश करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि दोनों क्षेत्रों के बीच विचारों का आदान-प्रदान मानवता के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
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