(जय श्री राम)
सौ वर्ष पूर्व सन् 1925 में परम पूज्यनीय डॉक्टर साहब ने जिस संघ की स्थापना की वह 1948 आते आते देश में एक बहुत बड़ा संगठन बन चुका था।
देश विरोधी और संघ विरोधी ताकतें विभिन्न अखबारों के माध्यम से देश और संघ के विषय में नकारात्मक बातें लिखा करते थे। ऐसे में संघ को भी अपनी बात और इस देश की सही बातें रखने के लिए एक समाचार पत्र की आवश्यकता महसूस हुई।
उस समय संघ के प्रचारक दीनदयाल उपाध्याय जी ने तब के सरसंघचालक पूज्यनीय गुरु जी से विचार विमर्श के बाद 14 जनवरी 1948, मकर संक्रांति के दिन लखनऊ में साप्ताहिक समाचार पत्र का शुभारंभ किया।
नाम रखा गया – पाञ्चजन्य एवं पाञ्चजन्य के प्रथम संपादक नियुक्त किये गए श्री अटल बिहारी वाजपेई जी।
तब से यह साप्ताहिक समाचार पत्र देश में हिंदुओं को जागृत करने के कार्य में निरंतर गतिशील है।
आज यह साप्ताहिक समाचार पत्र हमें साप्ताहिक पत्रिका के रूप में उपलब्ध है। हजारों की संख्या में इसकी प्रतियां देश भर में पढ़ी जाती हैं।
आज के सोशल मीडिया के दौर में हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए गलत जानकारी के साथ विभिन्न लेख लिखे जाते हैं, ऐसे में पाञ्चजन्य हमें हिन्दू धर्म एवं देश के विभिन्न विषयों पर सही जानकारी प्रदान करता है।
इसलिए हम सबको पाञ्चजन्य अवश्य पढ़ना चाहिए। साथ ही अपने परिवार के सदस्यों को भी पढ़ने के लिए प्रेरित करना चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी को सही जानकारी एवं सूचनाएं मिलती रहें और हम एवं हमारी आने वाली पीढ़ी विरोधियों द्वारा लिखे गए गलत लेखों के जाल में न फंस पाएं।
हम सभी हिन्दू मूल रूप से माँ भारती के बेटे भी हैं और राष्ट्र के प्रति समर्पित स्वयंसेवक भी हैं. जो स्वयं आगे बढ़ कर सेवा करे वही तो है स्वयंसेवक. हम सब स्वयंसेवकों के परिवार में तो पाञ्चजन्य पत्रिका अवश्य आनी ही चाहिए।
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(अशोक कुमार)