Tuesday, October 21, 2025
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Poetry: कभी-कभी नहीं.. अक्सर ही मेरे दिल में खयाल आता है!

कभी-कभी नहीं..अक्सर ही मेरे दिल में खयाल आता है... कि शहर के हर चौराहे पर, हर एक नुक्कड़ पर..चाय की एक गुमटी औरतों के लिए भी होनी चाहिए..

 

कभी-कभी नहीं..
अक्सर ही मेरे दिल में खयाल आता है…
कि शहर के हर चौराहे पर,
हर एक नुक्कड़ पर..
चाय की एक गुमटी
औरतों के लिए भी होनी चाहिए
जहाँ खड़ी हो कर
कभी अकेले तो कभी अपने दोस्तों के संग
बीच बाज़ार, भरे चौराहे, ठहाके लगा सकें, साझा कर पाएं
अपनी घुमक्कड़ी के किस्से,
नौकरी की परेशानियां,
नज़रंदाज़ कर दी गयी फब्तियां,
देश की इकॉनॉमी पर अपने विचार,
वायरल हुए जोक और मीम्स
और वो सब कुछ
जो उनके मन की चारदीवारी में
खरबों युगों से ज़ब्त है..
एक धौल में सारी मायूसी लापता हो जाये
चाय की चुस्कियों की मिठास में
गुम हो जाये…
बेटी के इंजीनियरिंग एंट्रेंस की चिंता,
नौकरीपेशा बेटे के लिए
अपनी जैसी हूबहू बहू लाने का सपना..
बंद हो जाये…
इतनी देर कैसे हो गयी,
इतनी देर कहाँ रह गयी
घर का कुछ ध्यान है या नहीं
जैसे अनगिनत सवालों का गूंजना..
और सबसे बड़ा सवाल
कि ”आज खाने में क्या पकेगा?”
की पकाहट से कुछ पल के लिए सही
मिल जाये मुक्ति..
औरतें अपनी सारी फ़िक्र,
सारी परेशानियां
पास पड़े कूड़े के डब्बे में फेंक दें
और मुस्कुराते हुए कहें…
चल यार! कल मिलते हैं
इसी समय
अपने इसी चाय के नुक्कड़ पर !..
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