Chhava Film: यदि इको सिस्टम मे सबसे ज्यादा कही सुधार हुआ है या यूँ कहे सुधार दिखा है तो वो बॉलीवुड है।
पिछले कुछ वर्षो मे ऐसी कई फिल्मे आकर गयी जिन्होंने कांग्रेस द्वारा प्रायोजित हिन्दू विरोध को किनारे करके सच्चाई दिखाई है। अब आवश्यक नहीं है कि हिन्दू को सहिष्णु दिखाने के लिये एक अच्छा मुस्लिम किरदार घुसाया जाए। जिसे सहिष्णु समझना है समझें वरना अपना रास्ता नापे।
इतिहास को ज्यादा गहराई मे नहीं लिखूंगा क्योंकि फ़िल्म देखने योग्य है और देखी ही जाना चाहिए। मुग़ल आधिपत्य के समय कई हिन्दू शक्तियां थी जिनके मन मे स्वतंत्रता की आग उठ रही थी। ज़ब शिवाजी ने औरंगजेब को आगरा के तख़्त पर बैठा देखा तो उनके मन मे यही स्वर गूंजा:
“तू जिस तख्त पर बैठा है वो प्रभु श्री राम, धर्मराज युधिष्ठिर, चन्द्रगुप्त और पृथ्वीराज का है। उस नाते इसका उत्तराधिकार मेरे पास है, इसलिए औरंगजेब नीचे उतर।”
इसी भावना के साथ 1674 मे मराठा साम्राज्य की स्थापना की गयी, रघुवंश कालीन छत्रपति उपाधि पुनः जीवित की गयी। 1680 मे शिवाजी की मृत्यु हो गयी, तमाम आंतरिक षड्यंत्रो से जूझकर उनके बेटे संभाजी अगले छत्रपति बने।
छत्रपति के रूप मे संभाजी का डेब्यू इतना भयावह था कि औरंगजेब खुद आगरा से निकल पड़ा और यही औरंगजेब की जिंदगी की सबसे बड़ी भूल साबित हुई क्योंकि इसके बाद वो दोबारा कभी उत्तर भारत नहीं लौट सका।
संभाजी 1681 से 1689 तक औरंगजेब से लड़ते रहे, हर युद्ध मे जीते और अंत मे धोखे से पकडे गए। कई दिनों की यातना के बाद उन्हें मार दिया गया, ये यातनाये फ़िल्म मे पूरी तरह दिखाई गयी है।
संभाजी को इतनी बेरहमी से मारा गया था कि हिन्दुओ के पास सिर्फ दो विकल्प बचे थे, या तो डरकर हथियार रख देते या फिर मुगलो की कब्र खुदने तक लड़ते, महाराष्ट्र मे हिन्दुओ ने दूसरा विकल्प चुना और लड़ाई जारि रखी। संभाजी को मारकर भी औरंगजेब वापस नहीं लौट सका और 27 वर्ष दक्खन मे बर्बाद करके मर गया।
ये इतना समय था कि उत्तर मे मेवाड़ के जय सिंह, भरतपुर के चुड़ामन जाट और गुरु गोविन्द सिंह जी ने हिन्दुओ की एक नई फ़ौज खड़ी करके मुगलो का सिरदर्द बढ़ा दिया। 1707 मे औरंगजेब महाराष्ट्र मे ही मर गया, आगे चलकर मराठा साम्राज्य मे भी छत्रपति की जगह उनके पेशवा प्रधान बन गए।
हालांकि स्वराज की अवस्था अभी दूर थी और 1757 मे जब पेशवा ने दिल्ली से अब्दाली को खदेड़कर अपना गवर्नर बैठाया तब जाकर पूर्ण स्वराज का सपना साकार हुआ। हालांकि 1803 मे अंग्रेजो ने मराठा साम्राज्य के सेनापति दौलतराव सिंधिया को हराकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया।
किताबो मे आज भी यही पढ़ाया जाता है कि मुगलो ने 1857 तक राज किया मगर ये नहीं पढ़ाया जाता कि 1757 से ही उनकी शक्ति शून्य थी और वे एक हिन्दू साम्राज्य के अधीन थे।
खैर, मराठा साम्राज्य 144 वर्ष शासन मे रहा, संभाजी का कार्यकाल इसमें 5% ही है मगर ये साम्राज्य के फाउंडिंग फिगर मे से एक है। यदि वे नहीं होते तो हमारे आज की कल्पना नहीं हो सकती थी शायद इसीलिए ही इन्हे इतिहास मे स्थान नहीं मिला।
लेकिन बॉलीवुड की ये अच्छी पहल रही, जब सेक्युलरिज्म के आधार पर पाठ्यक्रम बनाये जा रहे थे तो बनाने वालो ने सोचा भी नहीं होगा कि सच डिजिटल गलियारों मे रास्ता बनाकर हिन्दुओ के सामने खड़ा हो जाएगा।
उसी सच को जानने के लिये यह फ़िल्म जरूर देखिये, जो देख चुके है वे पूर्ण रेटिंग दे। ये भी एक प्रकार का इनफार्मेशन वॉरफेयर ही है।
विशेषार्थ – ये फ़िल्म बंटेंगे तो कटेंगे की अगली कड़ी है, इस पर चर्चा करते समय जातियों के नाम का प्रयोग करने से बचे, पोस्ट मे मराठा शब्द साम्राज्य के लिये प्रयोग हुआ है, किसी जाति के लिये नहीं। हमें जातिवाद मे उलझें बिना सिर्फ हिन्दू एकता पर केंद्रित होना है।
(परख सक्सेना)